छत्तीसगढ़-झारखंड में नक्सलियों पर करारी चोट, 37 लाख के इनामी तीन माओवादी ढेर

छत्तीसगढ़ और झारखंड की सीमा पर सुरक्षा बलों ने एक बड़ी कार्रवाई की है। एक संयुक्त अभियान में, सुरक्षा बलों ने तीन इनामी माओवादियों को मार गिराया, जिन पर कुल 37 लाख रुपये का इनाम था।

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Krishna Kumar Sikander
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Naxalites suffer a big blow in Chhattisgarh-Jharkhand the sootr
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छत्तीसगढ़ और झारखंड की सीमाओं पर सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के खिलाफ एक और निर्णायक कार्रवाई को अंजाम दिया है। संयुक्त अभियान में तीन कुख्यात इनामी माओवादियों को मार गिराया गया, जिन पर कुल 37 लाख रुपये का इनाम था। यह मुठभेड़ छत्तीसगढ़ के कांकेर-बस्तर सीमा पर मंडा पहाड़ के जंगलों और झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले में हुई। इस ऑपरेशन ने नक्सलियों की रीढ़ तोड़ने की दिशा में सुरक्षा बलों की ताकत को एक बार फिर साबित किया है।

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मंडा पहाड़ पर भारी बारिश में मुठभेड़

छत्तीसगढ़ के मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी जिले के मंडा पहाड़ क्षेत्र में बुधवार, 13 अगस्त 2025 को दोपहर के समय भारी बारिश के बीच जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की संयुक्त टीम ने नक्सल विरोधी अभियान चलाया। खुफिया सूचना के आधार पर शुरू किए गए इस ऑपरेशन में माओवादियों ने सुरक्षा बलों पर गोलीबारी शुरू कर दी, जिसके जवाब में जवानों ने भी त्वरित कार्रवाई की।

यह मुठभेड़ शाम तक चली, जिसमें दो कुख्यात नक्सली, विजय रेड्डी और लोकेश सलामे, मारे गए। विजय रेड्डी, जिन पर 25 लाख रुपये का इनाम था, माओवादी संगठन की राजनांदगांव-कांकेर बॉर्डर (आरकेबी) डिवीजन की सेंट्रल कमेटी का सचिव था। वह नक्सली गतिविधियों के लिए फंडिंग और रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाता था। 

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मारे गए नक्सलियों का प्रभाव 

रेड्डी का प्रभाव न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के गढ़चिरौली क्षेत्र तक फैला हुआ था। दूसरी ओर, लोकेश सलामे, जिस पर 10 लाख रुपये का इनाम था, आरकेबी डिवीजनल कमेटी का सदस्य था। पुलिस के अनुसार, सलामे पिछले दो वर्षों से आत्मसमर्पण की प्रक्रिया में शामिल होने की कोशिश कर रहा था, लेकिन वह नक्सली गतिविधियों में सक्रिय रहा।

मुठभेड़ के बाद, सुरक्षा बलों ने घटनास्थल से दोनों नक्सलियों के शव बरामद किए, साथ ही बड़ी मात्रा में हथियार और नक्सली साहित्य भी जब्त किया। देर रात दोनों शव मोहला पहुंचाए गए, जहां पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया शुरू की गई। पुलिस अधीक्षक वाई.पी. सिंह ने इस मुठभेड़ की पुष्टि करते हुए बताया कि क्षेत्र में तलाशी अभियान अभी भी जारी है। जल्द ही इस ऑपरेशन के संबंध में एक विस्तृत प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की जाएगी, जिसमें पूरी जानकारी साझा की जाएगी।

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झारखंड में कोबरा बटालियन की कार्रवाई

उधर, झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के चाईबासा क्षेत्र में एक अन्य अभियान में कोबरा 209 बटालियन और स्थानीय पुलिस ने माओवादी संगठन के एरिया कमांडर अरुण करकी को मार गिराया। करकी पर 2 लाख रुपये का इनाम था और वह स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हिंसक वारदात को अंजाम देने की योजना बना रहा था।

खुफिया सूचना के आधार पर शुरू किए गए इस ऑपरेशन में सुरक्षा बलों ने करकी को घेर लिया और मुठभेड़ में उसे ढेर कर दिया। उसके पास से एक सेल्फ-लोडिंग राइफल (एसएलआर) बरामद हुई। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि क्षेत्र में सर्च ऑपरेशन अभी भी जारी है ताकि अन्य संदिग्ध नक्सलियों का पता लगाया जा सके।

नक्सल विरोधी अभियानों में बढ़ती सफलता

यह मुठभेड़ छत्तीसगढ़ और झारखंड में नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे अभियानों की एक और बड़ी सफलता है। छत्तीसगढ़ में इस वर्ष अब तक विभिन्न मुठभेड़ों में 229 नक्सली मारे जा चुके हैं, जिनमें से 208 बस्तर संभाग के बीजापुर, बस्तर, कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, सुकमा और दंतेवाड़ा जिलों में ढेर किए गए हैं। माओवादी संगठनों के लिए यह एक बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि विजय रेड्डी जैसे वरिष्ठ नेता का खात्मा संगठन की रणनीति और वित्तीय ढांचे को कमजोर करेगा। 

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सुरक्षा बलों की रणनीति और चुनौतियां

मंडा पहाड़ जैसे घने जंगलों और बारिश के बीच चलाए गए इस ऑपरेशन ने सुरक्षा बलों की दक्षता और समन्वय को दर्शाया। भारी बारिश और जटिल भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद डीआरजी और आईटीबीपी की संयुक्त टीम ने नक्सलियों को घेरने में सफलता हासिल की। दूसरी ओर, झारखंड में कोबरा बटालियन की त्वरित कार्रवाई ने स्वतंत्रता दिवस जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर संभावित खतरे को टाल दिया। 

भविष्य की दिशा

यह ऑपरेशन नक्सलवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम है। पुलिस और सुरक्षा बलों का कहना है कि नक्सली गतिविधियों को पूरी तरह खत्म करने के लिए ऐसे अभियान लगातार जारी रहेंगे। हालांकि, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ग्रामीणों के बीच विश्वास बहाल करना और आत्मसमर्पण की नीतियों को और प्रभावी बनाना भी उतना ही जरूरी है। लोकेश सलामे जैसे नक्सलियों के आत्मसमर्पण के प्रयासों से यह संकेत मिलता है कि कई नक्सली संगठन छोड़ने को तैयार हैं, बशर्ते उन्हें उचित अवसर और सुरक्षा प्रदान की जाए। 

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