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सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में NDPS (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances) एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए एक आरोपी की विशेष अनुमति याचिका (SLP) को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई 12 साल की कठोर कारावास की सजा को सही ठहराया है। यह फैसला छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट द्वारा दी गई राहत को उलटते हुए आया है, जिसमें सजा को घटाकर 10 वर्ष कर दिया गया था।
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क्या है मामला?
याचिकाकर्ता को NDPS एक्ट की धारा 21(c) के तहत दोषी ठहराया गया था। उसके कब्जे से कोडीन फॉस्फेट युक्त 236 शीशियाँ (एक प्रतिबंधित साइकोट्रोपिक पदार्थ) बरामद की गई थीं। NDPS के विशेष न्यायाधीश ने उसे और एक अन्य आरोपी को 12 वर्ष कठोर कारावास और 1 लाख रुपये जुर्माना की सजा सुनाई थी।
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हाई कोर्ट का फैसला और उसका आधार
इस फैसले को आरोपी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा लेकिन सजा को घटाकर 10 साल कर दिया। हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में रफीक कुरैशी बनाम नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो (2019) केस का हवाला देते हुए कहा कि यदि NDPS एक्ट की धारा 32B में वर्णित गंभीर कारक मौजूद नहीं हैं, तो न्यूनतम 10 साल से अधिक की सजा नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्णय
हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल की। उसने यह दलील दी कि जब्त की गई सामग्री दूषित थी और वह गंभीर बीमारी से पीड़ित है। सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने SLP को खारिज करते हुए साफ कहा कि हाई कोर्ट ने धारा 32B की व्याख्या गलत तरीके से की है।
कोर्ट ने कहा कि धारा 32B ट्रायल कोर्ट की शक्ति को सीमित नहीं करती, बल्कि यह केवल न्यूनतम सजा से अधिक देने के लिए मार्गदर्शन करती है।
यदि निषिद्ध पदार्थ की मात्रा अधिक है या उसकी प्रकृति अत्यंत घातक है, तो ट्रायल कोर्ट अपने विवेक से न्यूनतम से अधिक सजा दे सकता है, भले ही 32B के कारक स्पष्ट रूप से मौजूद न हों।
इस आधार पर हाई कोर्ट द्वारा सजा को 12 से घटाकर 10 साल करना विवेकहीन था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 32B में सूचीबद्ध कारक बाध्यकारी नहीं हैं, और ट्रायल कोर्ट अन्य प्रासंगिक कारकों के आधार पर भी कठोर सजा दे सकता है। न्यायालय ने कहा कि मादक पदार्थ की मात्रा और उसकी प्रकृति, अपने आप में न्यूनतम से अधिक सजा देने का ठोस आधार हो सकते हैं।
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यह निर्णय NDPS मामलों में ट्रायल कोर्ट की स्वायत्तता और विवेकाधिकार को पुनः पुष्टि करता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भविष्य में NDPS मामलों में कठोर सजा देने की प्रक्रिया और उसमें न्यायालय की भूमिका को और स्पष्ट करेगा।
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