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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में रिश्वतखोरी के मामले में मृत थाना प्रभारी (TI) गणेशराम शेंडे के मामले में राहत दी है। इस केस की खास बात यह है कि पीड़ित थाना प्रभारी की केस लड़ते-लड़ते मौत हो गई थी, लेकिन उनकी पत्नी ने हार नहीं मानी और करीब 26 साल तक लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार उन्हें न्याय मिला।
यह मामला तब का है जब छत्तीसगढ़ अलग राज्य नहीं बना था और यह क्षेत्र मध्यप्रदेश का हिस्सा था।
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क्या था पूरा मामला?
शिकायत और एफआईआर:
8 अप्रैल 1990 को महासमुंद जिले के बसना थाने में थुरीकोना गांव निवासी जैतराम साहू ने सहनी राम, नकुल और भीमलाल साहू के खिलाफ मारपीट की शिकायत दर्ज कराई थी।
रिहाई और रिश्वत का आरोप:
तीनों आरोपियों को उसी दिन मुचलके पर रिहा कर दिया गया, लेकिन दो दिन बाद एक आरोपी भीमलाल साहू ने लोकायुक्त को शिकायत दी कि उसे रिहा करने के एवज में ₹1000 की रिश्वत मांगी गई थी।
लोकायुक्त की रेड और गिरफ्तारी:
शिकायत पर रायपुर लोकायुक्त टीम ने कार्रवाई करते हुए थाना प्रभारी गणेशराम शेंडे को रंगेहाथों रिश्वत लेते पकड़ा और केस दर्ज कर लिया गया।
ट्रायल कोर्ट का फैसला
1999 में ट्रायल कोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत थाना प्रभारी गणेशराम शेंडे को दोषी माना और उन्हें 3 साल की सजा व ₹2000 जुर्माना सुनाया गया। इस फैसले के खिलाफ गणेशराम शेंडे ने उच्च न्यायालय में अपील की, लेकिन अपील की सुनवाई के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई।
पत्नी ने लड़ा पति का केस
पति की मौत के बाद उनकी पत्नी ने केस को आगे बढ़ाया और अदालत से न्याय की गुहार लगाई। उन्होंने कोर्ट में यह दलील दी कि उनके पति को झूठा फंसाया गया था और वे निर्दोष थे।
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हाईकोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने पाया कि आरोपियों को पहले ही जमानत मिल गई थी, इसलिए बाद में उसी जमानत के एवज में रिश्वत मांगने का कोई औचित्य नहीं बनता। कोर्ट ने यह भी माना कि शिकायतकर्ता थाना प्रभारी से नाराज था, क्योंकि उसकी शिकायत पर कार्रवाई नहीं हुई थी, इसी कारण उसने बदले की भावना से आरोप लगाया।
गवाहों और दस्तावेजों के आधार पर कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई तीन साल की सजा को रद्द कर दिया और दिवंगत थाना प्रभारी को दोषमुक्त घोषित किया।
इस ऐतिहासिक फैसले ने एक बार फिर यह साबित किया है कि देर से ही सही, न्याय जरूर मिलता है। एक पत्नी की अडिग लड़ाई और विश्वास ने 26 साल बाद उसके दिवंगत पति को समाज में सम्मान वापस दिलाया। अदालत का यह फैसला उन सभी के लिए एक मिसाल है, जो झूठे आरोपों का सामना कर रहे हैं और न्याय के लिए संघर्षरत हैं।
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