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छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य विभाग को सिकलसेल के मरीजों की चिंता ही नहीं। इसीलिए तो प्रदेश में अब तक केवल 26 हजार मरीज ही खोज पाए। जबकि पूर्व में हुए एक रिसर्च के मुताबिक प्रदेश में आबादी के करीब 10 से 12 फ़ीसदी जनसंख्या सिकल सेल से प्रभावित है। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि हमने प्रदेश में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों की स्क्रीनिंग कर दी है।
लेकिन द सूत्र के पड़ताल में यह सामने आया कि टारगेट पूरा करने के लिए फर्जी आंकड़े दर्ज किए जा रहे हैं, क्योंकि जांच करने के लिए स्वास्थ्य विभाग के पास संसाधन ही नहीं। फर्जी डेटा होने के कारण ही हितग्राहियों के कार्ड तो बन गए लेकिन जिलों के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के कार्यालय में लाखों की संख्या में हितग्राही कार्ड पड़े हुए हैं। जबकि इन्हें लोगों तक पहुंचाना था, लेकिन दिए गए पते पर ना तो ऐसा व्यक्ति रहता है और ना ही मोबाइल नंबर ही सही है।
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इतना ही नहीं प्रदेश के जिन केंद्रों को सिकल सेल मरीज के जांच का जिम्मा दिया गया था। उनके पास रिएजेन्ट ही नहीं है। आवश्यक मरीजों को निजी लैब भेज कर जांच करवाई जा रही है। जबकि सरकार ने स्क्रीनिंग के लिए स्वास्थ्य विभाग को 1 करोड़ 85 लाख रुपए दिए हैं। इधर स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि रिएजेंट्स के खरीदी की प्रक्रिया करने वाले हैं। उनका यह भी कहना है कि कई सारे लोग जांच कराने के बाद माइग्रेट हो चुके हैं जिसके कारण से कार्ड वितरित नहीं हो सका है। लोगों के पता लगाने की कोशिश की जा रही है।
बिना संसाधन जांच कैसे संभव
साल 2023 में छत्तीसगढ़ में सिकल सेल के व्यापक जांच के लिए प्रदेश के 27 जिलों के डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में सिकल सेल यूनिट बनाया गया। तत्कालीन भूपेश सरकार ने इसके लिए विभाग को 1 करोड़ 85 लाख रुपए भी दिए गए हैं, जिससे स्क्रीनिंगके तेजी लाई जा सके। लेकिन 2 साल बीतने के बाद सिकल सेल की राज्य नोडल अधिकारी कह रहीं कि संसाधनों की खरीदी के लिए प्रक्रिया कर रहे, सम्भावित रूप से जून महीने से जांच शुरू भी हो जाएगी। जब सवाल पूछा गया कि योजना 2023 की है क्यों तो बोली, स्क्रीनिंग के मामले में हम देश मे तीसरे नम्बर पर है।
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बजट को खपाने की साजिश
मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकार ने 2023 में सिकल सेल प्रोग्राम के लिए स्वास्थ्य विभाग को एक करोड़ 85 लाख रुपए दिए थे। पड़ताल में यह भी सामने आया कि रिकॉर्ड में स्क्रीनिंग होना बताया जा रहा है, लेकिन किन लोगों का सैम्पल लिया गया है या मरीज कहाँ है इसके बारे में किसी को जानकारी ही नहीं, ऐसे में फर्जी स्क्रीनिंग का शक गहराता है। जांच करवाने के बजाय राज्य नोडल अधिकारी जिलों से आने वाले डेटा पर ही भरोसा कर रहीं।
3 तरह के होते हैं जांच
सिकल सेल मरीजो का पता लगाने की लिए 3 तरह की जांच होती है। आसान भाषा मे पहले जांच में सामान्य लोगों में से मरीजों को अलग कर लिया जाता है। इसके बाद दूसरी जांच में बीमार और सिकल सेल कैरियर को वर्गीकृत किया जाता है। कैरियर की काउंसिलिंग होती है, जबकि बीमार का इलाज शुरू होता है। मरीज की तीसरी जांच में उनके प्रभावित क्रोमोसोम के लिए होती है।
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स्वास्थ्य विभाग के पास पहली जांच या स्क्रीनिंग का रिकॉर्ड बता रहा लेकिन राज्य में दूसरी जांच नहीं होना बताया जा रहा। सवाल यह है कि जब रिएजेंट्स ही नहीं तो स्क्रीनिंग या मरीजों का इलाज किस आधार पर हो रहा? ऐसा क्यों हो रहा इसका जवाब I've पास नहीं। ऐसा इसलिए भी सम्भव है कि दूसरी जांच में मरीज के बाद इन्हें मरीजो का डेटा केंद्र सरकार को देना होगा। जिसकी फॉल्स रिपोर्ट नहीं हो सकती। क्योंकि केंद्र इन मरीजो का खुद से फॉलोअप लेता है।
कोशिश जारी का दावा
संसाधन खरीदने की प्रक्रिया कर रहे हैं, वैसे जांच के मामले में छत्तीसगढ़ देश में तीसरे नम्बर पर हैं, जहां तक जांच कार्ड बंटने का सवाल है, हमारे पास जो डेटा आता है उसी आधार पर कार्ड बनाया जाता है। बांटने की जिम्मेदारी जिलों की है। फर्जी देता नहीं लोग माइग्रेट हो जाते हैं, इसलिए नहीं मिल रहे होंगे।
डॉ नेहा ग्वालरे, राज्य नोडल अधिकारी, सिकल सेल
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