छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सूरजपुर गैंगरेप केस की सुनवाई करते हुए साफ कहा कि अगर किसी ग्रुप में एक व्यक्ति दुष्कर्म करता है और बाकी लोग उसकी मदद करते हैं, तो सभी को दोषी माना जाएगा। सिर्फ इसलिए कि वीडियो नहीं मिला या डीएनए रिपोर्ट किसी से मेल नहीं खाई, इससे आरोपियों को बरी नहीं किया जा सकता।
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रेप पीड़िता को हाई कोर्ट का सहारा
पीड़िता की गवाही, गर्भावस्था और बच्चे का जन्म घटना की पुष्टि करते हैं, ऐसा कहते हुए कोर्ट ने कहा कि केवल वीडियो न मिलना या डीएनए रिपोर्ट मैच न होना दोषियों को नहीं बचा सकता। हाई कोर्ट ने सूरजपुर गैंगरेप केस के पांच दोषियों को आंशिक राहत दी है। कोर्ट ने पाक्सो, एससी/एसटी और आईटी एक्ट के तहत दोषमुक्त किया, लेकिन आईपीसी की गंभीर धाराओं में सजा को बरकरार रखा।
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हाई कोर्ट ने माना कि पीड़िता की उम्र 18 साल से कम साबित नहीं हो पाई और जाति प्रमाण पत्र घटना के 10 महीने बाद बना। वीडियो भी मोबाइल से बरामद नहीं हुआ। इसलिए कोर्ट ने पॉक्सो, एससी/एसटी और आईटी एक्ट की सजा हटा दी, लेकिन गैंगरेप और अपहरण जैसी IPC की धाराओं के तहत पहले जैसी सजा बरकरार रखी। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रजनी दुबे की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की स्पष्ट, सुसंगत और चिकित्सकीय रूप से पुष्ट गवाही के आधार पर गैंगरेप सिद्ध होता है।
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यह है पूरा मामला
पीड़िता ने शिकायत में बताया कि 19 दिसंबर 2021 को आरोपित मासूक रजा उसे बुलाकर एक सुनसान जगह ले गया, जहां पहले से मौजूद चार अन्य आरोपित अब्बू बकर उर्फ मोंटी, अशरफ अली उर्फ छोटू, मोहित कुमार और विनीत कुमार ने उसके साथ गैंगरेप किया। आरोपितों ने घटना का वीडियो भी बना लिया और वायरल करने की धमकी दी। जनवरी और फरवरी 2022 में भी अलग-अलग जगहों पर पुनः गैंगरेप की घटनाएं हुईं। डर की वजह से उसने किसी को कुछ नहीं बताया, लेकिन जब वह गर्भवती हुई, तब परिजनों को बताया और पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई।
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रेप में मदद करने वाला भी रेपिस्ट... गैंगरेप केस में हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सूरजपुर गैंगरेप केस की सुनवाई करते हुए साफ कहा कि अगर किसी ग्रुप में एक व्यक्ति दुष्कर्म करता है और बाकी लोग उसकी मदद करते हैं, तो सभी को दोषी माना जाएगा।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सूरजपुर गैंगरेप केस की सुनवाई करते हुए साफ कहा कि अगर किसी ग्रुप में एक व्यक्ति दुष्कर्म करता है और बाकी लोग उसकी मदद करते हैं, तो सभी को दोषी माना जाएगा। सिर्फ इसलिए कि वीडियो नहीं मिला या डीएनए रिपोर्ट किसी से मेल नहीं खाई, इससे आरोपियों को बरी नहीं किया जा सकता।
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रेप पीड़िता को हाई कोर्ट का सहारा
पीड़िता की गवाही, गर्भावस्था और बच्चे का जन्म घटना की पुष्टि करते हैं, ऐसा कहते हुए कोर्ट ने कहा कि केवल वीडियो न मिलना या डीएनए रिपोर्ट मैच न होना दोषियों को नहीं बचा सकता। हाई कोर्ट ने सूरजपुर गैंगरेप केस के पांच दोषियों को आंशिक राहत दी है। कोर्ट ने पाक्सो, एससी/एसटी और आईटी एक्ट के तहत दोषमुक्त किया, लेकिन आईपीसी की गंभीर धाराओं में सजा को बरकरार रखा।
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हाई कोर्ट ने माना कि पीड़िता की उम्र 18 साल से कम साबित नहीं हो पाई और जाति प्रमाण पत्र घटना के 10 महीने बाद बना। वीडियो भी मोबाइल से बरामद नहीं हुआ। इसलिए कोर्ट ने पॉक्सो, एससी/एसटी और आईटी एक्ट की सजा हटा दी, लेकिन गैंगरेप और अपहरण जैसी IPC की धाराओं के तहत पहले जैसी सजा बरकरार रखी। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रजनी दुबे की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की स्पष्ट, सुसंगत और चिकित्सकीय रूप से पुष्ट गवाही के आधार पर गैंगरेप सिद्ध होता है।
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पीड़िता ने शिकायत में बताया कि 19 दिसंबर 2021 को आरोपित मासूक रजा उसे बुलाकर एक सुनसान जगह ले गया, जहां पहले से मौजूद चार अन्य आरोपित अब्बू बकर उर्फ मोंटी, अशरफ अली उर्फ छोटू, मोहित कुमार और विनीत कुमार ने उसके साथ गैंगरेप किया। आरोपितों ने घटना का वीडियो भी बना लिया और वायरल करने की धमकी दी। जनवरी और फरवरी 2022 में भी अलग-अलग जगहों पर पुनः गैंगरेप की घटनाएं हुईं। डर की वजह से उसने किसी को कुछ नहीं बताया, लेकिन जब वह गर्भवती हुई, तब परिजनों को बताया और पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई।
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