पीएम जनमन के गांव अंधेरे में, धरती आबा अभियान की नई उम्मीद

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी पीएम जनमन योजना, जिसे आदिवासी बहुल क्षेत्रों के विकास के लिए शुरू किया गया था, अपने लक्ष्यों से भटकती नजर आ रही है। इस योजना के तहत चयनित गांव आज भी बिजली, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।

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Krishna Kumar Sikander
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PM Janman's villages are in darkness, new hope for Dharti Aaba Abhiyan the sootr
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केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी पीएम जनमन योजना, जिसे आदिवासी बहुल क्षेत्रों के विकास के लिए शुरू किया गया था, अपने लक्ष्यों से भटकती नजर आ रही है। इस योजना के तहत चयनित गांव आज भी बिजली, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। इस बीच, जनजातीय कार्य मंत्रालय ने नवंबर 2024 में धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान शुरू कर नई उम्मीद जगाई है। 

धरती आबा अभियान 

धरती आबा अभियान के तहत खैरागढ़ और छुईखदान विकासखंडों के 16 आदिवासी बहुल गांवों को चुना गया है। खैरागढ़ के गातापार जंगल, लक्षना, भरतपुर, नवागांव कवर, चंगुर्दा, सिवनी, उरईडबरी और छुईखदान के नचनिया, लालपुर, बंजारपुर, गोलरडीह, गेरूखदान, बेलगांव, दरबानटोला, मुंडाटोला, सरोधी गांव शामिल हैं। इन गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दिया जा रहा है। अभियान का मकसद न केवल सुविधाएं देना, बल्कि आदिवासी समुदायों को शासकीय योजनाओं की मुख्यधारा से जोड़कर उनका सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण करना है।

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वादे कागजों तक सीमित

पीएम जनमन योजना के तहत खैरागढ़ जिले की 47 बैगा बस्तियों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का वादा किया गया था, लेकिन हकीकत निराशाजनक है। इन बस्तियों में न सड़कें बनीं, न स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचीं, और न ही शिक्षा-रोजगार के अवसर मिले। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 9 गांव ग्वालगुण्डी, आमाटोला, झिलमिली, सिंगबोरा, निजामडीह, संजारी, कोहकाझोरी, लवातरा और टिंगीपुर आज भी बिजली से वंचित हैं। बिजली विभाग ने वनबाधा और दूरी का हवाला देकर इन गांवों में सौर ऊर्जा के लिए क्रेडा को पत्र लिखा, लेकिन अब तक कोई प्रगति नहीं हुई। आजादी के 78 साल बाद भी ये बस्तियां अंधेरे में जीने को मजबूर हैं।

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नई उम्मीद, पुरानी चुनौतियां

जिला प्रशासन का दावा है कि धरती आबा अभियान को मिशन मोड में लागू किया जा रहा है। पिछली योजनाओं की कमियों को ध्यान में रखकर नई कार्ययोजना बनाई गई है। प्रशासन का कहना है कि इस बार गलतियां नहीं दोहराई जाएंगी। हालांकि, पीएम जनमन जैसी योजनाओं की अधूरी कहानी सरकारी वादों पर सवाल उठाती है। जब तक योजनाएं कागजों से निकलकर गांवों तक नहीं पहुंचतीं, समावेशी विकास का सपना अधूरा ही रहेगा।

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आदिवासी समुदायों में नई उम्मीद 

धरती आबा अभियान से आदिवासी समुदायों में नई उम्मीद जगी है, लेकिन पीएम जनमन की नाकामी सबक है कि बिना ठोस अमल के वादे हवा-हवाई साबित होते हैं। सरकार को चाहिए कि पुरानी योजनाओं की कमियों को दुरुस्त कर नए अभियान को सफल बनाए, ताकि आदिवासी बस्तियां अंधेरे से उजाले की ओर बढ़ सकें।

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