पीएम आवास योजना में घोटालेबाजी, फर्जी जियो टैगिंग से करोड़ों की हेराफेरी

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीबों के लिए मकान बनाने का सपना अधिकारियों और कर्मचारियों की भ्रष्ट आदतों का शिकार हो रहा है। फर्जी जियो टैगिंग और बोगस रिपोर्टिंग में अधूरे मकानों को पूरा दिखाकर सरकारी धन की बंदरबांट की गई।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत गरीबों के लिए मकान बनाने का सपना अधिकारियों और मैदानी कर्मचारियों की भ्रष्ट आदतों का शिकार हो रहा है। फर्जी जियो टैगिंग और बोगस रिपोर्टिंग का खेल सामने आया है, जिसमें अधूरे मकानों को पूरा दिखाकर सरकारी धन की बंदरबांट की गई। यह घोटाला न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि अधिकारियों की मिलीभगत और जवाबदेही की कमी को भी रेखांकित करता है।

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फर्जी जियो टैगिंग का गोरखधंधा

देवभोग और मैनपुर जनपद क्षेत्रों में मैदानी कर्मचारियों ने हदें पार कर दीं। बीते 15 दिनों में 1366 आवासों को कागजों में पूरा बताया गया, लेकिन जांच में 400 से ज्यादा मकानों की स्थिति संदिग्ध पाई गई। कई मकानों की छत तक नहीं ढली, फिर भी उन्हें जियो टैगिंग कर पूर्ण दर्शाया गया। उदाहरण के लिए, झाखरपारा के सुंदरसिंह और दहीगांव के परमेश्वर सिंह के मकानों को बिना छत के ही पूरा दिखाया गया। सबसे चौंकाने वाला मामला दहीगांव के यादराम का है, जिनका मकान डोर लेबल तक नहीं पहुंचा, लेकिन किसी और के मकान की तस्वीर खींचकर उसे पूरा बता दिया गया। 

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एक मकान, दो हितग्राही: लूट का नया तरीका

जांच में खुलासा हुआ कि एक ही मकान को दो हितग्राहियों के नाम पर जियो टैग कर सरकारी फंड हड़पने का खेल खेला गया। पुरनापानी गांव में चूमन लाल और जय सिंह के नाम पर एक ही मकान को जियो टैग किया गया। झाखरपारा में भी एक मकान को अलग-अलग एंगल से फोटो खींचकर दो हितग्राहियों के नाम पर दर्ज किया गया। ऐसे करीब 30 मामलों में इस तरह की हेराफेरी सामने आई है। यह साफ तौर पर दर्शाता है कि मैदानी कर्मचारी और संबंधित अधिकारी मिलकर योजनाबद्ध तरीके से भ्रष्टाचार को अंजाम दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेराफेरी, कार्रवाई से बचने की जुगत

मुख्यमंत्री के सख्त निर्देशों के बाद जिला प्रशासन ने आवास योजना की प्रगति पर नजर रखना शुरू किया। लेकिन शो-कॉज नोटिस के डर से कर्मचारियों ने बोगस आंकड़े पेश किए। देवभोग ब्लॉक में 1 मई को 2700 मकान अप्रारंभ थे, जो 15 मई तक घटकर 2157 बताए गए। पूर्ण मकानों की संख्या 1200 से बढ़कर 1658 दर्शाई गई। जिले में 17 अप्रैल को 34138 स्वीकृत आवासों में केवल 5339 पूर्ण थे, लेकिन 15 मई तक यह आंकड़ा 7214 हो गया। ब्लॉक-वार प्रगति में भी असामान्य उछाल देखा गया—देवभोग में 17% से 23.09%, फिंगेश्वर में 24.85% से 32.43%, और मैनपुर में 8.82% से 12.62%। ये आंकड़े जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं और साफ तौर पर हेराफेरी की ओर इशारा करते हैं।

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जिम्मेदारों पर कार्रवाई, लेकिन कितनी सख्त?

जिला पंचायत सीईओ जीआर मरकाम ने सफाई दी कि यदि एक ही परिवार के दो हितग्राही मानक से बड़े मकान बना रहे हैं, तो दो जियो टैगिंग संभव है। लेकिन जानबूझकर गलत रिपोर्टिंग की पुष्टि होने पर कार्रवाई की बात कही। अब तक फिंगेश्वर में 18, छुरा में 13, गरियाबंद में 16, मैनपुर में 34 और देवभोग में 25 जिम्मेदारों को शो-कॉज नोटिस जारी किए गए हैं। जनपद सीईओ और पीओ को भी जवाबदेह ठहराया गया है। यदि फर्जीवाड़ा सिद्ध होता है, तो निलंबन की कार्रवाई की बात कही जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को उखाड़ पाएगी?

भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें

यह घोटाला केवल फर्जी जियो टैगिंग तक सीमित नहीं है। यह अधिकारियों और कर्मचारियों की उस मानसिकता को दर्शाता है, जो सरकारी योजनाओं को लूट का जरिया बना लेती है। गरीबों के लिए बने मकानों के नाम पर फर्जीवाड़ा कर सरकारी खजाने को चूना लगाना और हितग्राहियों के सपनों को कुचलना इनके लिए आम बात हो गई है। प्रशासनिक सख्ती के बावजूद आंकड़ों में हेराफेरी और बोगस रिपोर्टिंग का यह खेल रुकने का नाम नहीं ले रहा।

पीएम आवास योजना में हुआ यह घोटाला गरियाबंद जिले के प्रशासनिक तंत्र की नाकामी और भ्रष्टाचार की गहरी पैठ को उजागर करता है। जब तक दोषियों पर कठोर कार्रवाई और पारदर्शी निगरानी व्यवस्था लागू नहीं होगी, तब तक गरीबों के हक पर डाका डालने का यह सिलसिला जारी रहेगा। जरूरत है ऐसी व्यवस्था की, जो भ्रष्ट अधिकारियों की लूट की आदत को जड़ से खत्म करे और योजना का लाभ सही हितग्राहियों तक पहुंचाए।

 

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