आंध्रप्रदेश की महत्वाकांक्षी पोलावरम बहुउद्देशीय परियोजना को लेकर छत्तीसगढ़ और ओडिशा में बढ़ते विरोध और अंतर-राज्यीय विवाद के बीच केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई 2025 को एक उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता करेंगे, जिसमें आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय, केंद्रीय जल आयोग और पोलावरम प्राधिकरण के अधिकारी शामिल होंगे। इस बैठक में डूब क्षेत्र, आदिवासी विस्थापन और पुनर्वास जैसे जटिल मुद्दों पर चर्चा होगी, जो लंबे समय से विवाद का कारण बने हुए हैं।
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छत्तीसगढ़ के लिए खतरा, आंध्र को लाभ
पोलावरम बांध गोदावरी नदी पर बन रही एक राष्ट्रीय परियोजना है, जिससे आंध्रप्रदेश को 2 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि की सिंचाई, 900 मेगावाट बिजली उत्पादन और औद्योगिक इकाइयों के लिए पानी की आपूर्ति जैसे लाभ होंगे। लेकिन इस परियोजना से छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले की कोंटा तहसील के 9 गांवों बंजाममुड़ा, मेटागुंडा, पेदाकिसोली, आसीरगुंडा, इंजरम, फंदीगुंडा, ढोढरा, कोंटा और वेंकटपुरम के डूबने का खतरा है। इन गांवों की कुल आबादी करीब 18,510 है। डूब से न केवल हजारों आदिवासियों की जमीन और आजीविका छिन जाएगी, बल्कि कोंडा रेड्डी जैसे लुप्तप्राय आदिवासी समुदायों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है।
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विरोध और चिंताएं
छत्तीसगढ़ और ओडिशा में इस परियोजना के खिलाफ विरोध तेज हो गया है। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जल संसाधन विभाग की एक टीम गठित की थी, जिसने सुकमा में पोलावरम के प्रभावों का आकलन किया। टीम ने पाया कि बांध बनने से बस्तर के वनांचल और ग्रामीण क्षेत्रों को भारी नुकसान होगा, जिसमें आदिवासियों की बांस शिल्प जैसी आजीविका भी प्रभावित होगी। ओडिशा में भी डूब क्षेत्रों को लेकर विरोध के स्वर मुखर हैं।
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बैठक से समाधान की उम्मीद
28 मई की बैठक से इस गतिरोध को तोड़ने की उम्मीद है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सर्वसम्मति बनती है, तो परियोजना को गति मिलेगी और आदिवासी पुनर्वास व पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों का समाधान निकल सकता है। इस बैठक से प्रभावित गांवों के पुनर्वास, मुआवजे और पर्यावरणीय संतुलन के लिए ठोस कदम उठाए जाने की उम्मीद है। सभी की नजरें अब इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह बैठक पोलावरम विवाद का कोई स्थायी हल निकाल पाएगी।
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पोलावरम परियोजना का इतिहास
1978 में शुरू हुई यह परियोजना 2014 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित हुई। आंध्रप्रदेश में एनडीए सरकार के सत्ता में लौटने के बाद इस पर काम में तेजी आई है। केंद्र सरकार इसे समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
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