नक्सलियों के गढ़ अबूझमाड़ में रक्षाबंधन की नई तस्वीर, डर की जगह बंधा विश्वास का धागा

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में स्थित अबूझमाड़, जो कभी नक्सलवाद के लिए जाना जाता था, अब बदल रहा है। सरकार के प्रयासों और सुरक्षा बलों की तैनाती से यहां के लोग बम-बारूद के डर से निकलकर त्योहारों का आनंद ले रहे हैं।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले का अबूझमाड़, जो कभी नक्सलवाद के साये में डूबा था, अब बदलाव की नई कहानी लिख रहा है। दशकों तक बम, बारूद और डर के बीच जीने वाले लोग अब त्योहारों की रौनक और भाईचारे का आनंद ले रहे हैं।

सरकार के नक्सल उन्मूलन के दृढ़ संकल्प और सुरक्षा बलों की अटल मौजूदगी ने इस दुर्गम क्षेत्र में विश्वास और सुरक्षा की बयार बहा दी है। रक्षाबंधन के पर्व ने इस बदलाव को और उजागर किया, जब अबूझमाड़ के गांवों की महिलाओं और बालिकाओं ने सुरक्षा बलों के जवानों की कलाई पर राखी बांधकर भाई-बहन का रिश्ता मजबूत किया।

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रक्षाबंधन में बंधा भरोसा

सोनपुर, डोड़रीबेड़ा, होरादी और गारपा जैसे नक्सल प्रभावित गांवों में रक्षाबंधन के दिन एक अनोखा नजारा देखने को मिला। गांवों की 106 बालिकाएं, 13 शिक्षक और 18 ग्रामीणों समेत 200 लोग पुलिस कैंप पहुंचे। उन्होंने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की 133वीं वाहिनी के जवानों को राखी बांधी।

जवानों की आंखों में गर्व और भावुकता थी, क्योंकि यह राखी सिर्फ एक धागा नहीं, बल्कि ग्रामीणों का अटूट विश्वास थी। जवानों ने भी वादा किया कि वे हर हाल में ग्रामीणों की रक्षा करेंगे। यह दृश्य अबूझमाड़ के लिए एक भावनात्मक बदलाव का प्रतीक था, जहां डर की जगह भाईचारे ने ले ली।

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सुरक्षा के साथ विकास की पहल

बीएसएफ की भूमिका सिर्फ नक्सलियों से मुकाबला करने तक सीमित नहीं है। वे अबूझमाड़ के दुर्गम जंगलों में सड़क, स्कूल और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने में जुटे हैं। जहां पहले स्कूल जर्जर थे, वहां अब बच्चों की पढ़ाई शुरू हो रही है।

चिकित्सा सुविधाएं भी धीरे-धीरे इन क्षेत्रों तक पहुंच रही हैं। हालांकि, नक्सली विकास कार्यों में बाधा डालने के लिए हमले, आईईडी और आगजनी की कोशिश करते हैं, लेकिन सुरक्षा बल हर चुनौती का जवाब देने को तैयार हैं।

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त्योहारों में लौटी रौनक

अबूझमाड़ में अब नक्सलवाद कमजोर पड़ रहा है और ग्रामीण आजादी का असली मतलब समझने लगे हैं। रक्षाबंधन के अलावा दीपावली, होली और स्वतंत्रता दिवस जैसे पर्व अब उत्साह से मनाए जा रहे हैं। ग्रामीणों के लिए सुरक्षा बल अब सिर्फ रक्षक नहीं, बल्कि परिवार का हिस्सा बन गए हैं। ढोल-नगाड़ों और हंसी की आवाजों ने अबूझमाड़ में गोलियों की गूंज को पीछे छोड़ दिया है। यह बदलाव न केवल विश्वास की जीत है, बल्कि अबूझमाड़ के उज्जवल भविष्य की नींव भी है।

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FAQ

अबूझमाड़ में रक्षाबंधन के अवसर पर क्या खास नजारा देखने को मिला?
अबूझमाड़ के गांवों की महिलाएं और बालिकाएं सुरक्षा बलों के जवानों की कलाई पर राखी बांधकर भाई-बहन का रिश्ता मजबूत करती हुईं दिखीं। यह राखी अबूझमाड़ में ग्रामीणों और जवानों के बीच विश्वास और सुरक्षा का प्रतीक बन गई।
सुरक्षा बल अबूझमाड़ के विकास के लिए कौन-कौन से कदम उठा रहे हैं?
सुरक्षा बल नक्सलियों से मुकाबले के साथ-साथ अबूझमाड़ में सड़क, स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने में भी जुटे हैं। वे दुर्गम इलाकों में शिक्षा और चिकित्सा सेवाएं पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।
अबूझमाड़ में नक्सलवाद के कमजोर पड़ने के क्या प्रभाव नजर आ रहे हैं?
नक्सलवाद के कमजोर पड़ने से अबूझमाड़ में त्योहारों जैसे रक्षाबंधन, दीपावली, होली और स्वतंत्रता दिवस उत्साहपूर्वक मनाए जा रहे हैं। ग्रामीण सुरक्षा बलों को अपने परिवार का हिस्सा मानने लगे हैं और डर की जगह भाईचारे और विश्वास का माहौल बन गया है।

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