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छत्तीसगढ़ में आरएसएस की सबसे पहली शाखा दुर्ग में लगी थी। इस शाखा की स्थापना रामराव परांजपे ने की थी। दिवंगत परांजपे डॉ. हेडगेवार की पहली टीम का हिस्सा थे। इस टीम में 8 लोग शामिल थे। ये लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में संघ का कार्य खड़ा करने के लिए गए। इनमें से परांजपे छत्तीसगढ़ के दुर्ग आए। उस समय दुर्ग वर्तमान राजधानी रायपुर से बड़ा केंद्र था। संघ के 100 साल पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम में सरसंघचालक मोहन भागवत शामिल होने रायपुर आए हैं। भागवत यहां 27 से 31 दिसंबर तक रहेंगे।
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छत्तीसगढ़ में आरएसएस का इतिहास
द सूत्र ने छत्तीसगढ़ के आरएसएस के प्रांत प्रचार प्रमुख संजय तिवारी से बात की। इस दौरान उन्होंने आरएसएस से जुड़ी कई जानकारियां दी। प्रांत प्रचार प्रमुख ने बताया कि छत्तीसगढ़ में आरएसएस की स्थापना 1940 के दशक में की गई थी। इसकी सबसे पहली शाखा दुर्ग जिले में लगी थी।
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छत्तीसगढ़ में आरएसएस की सक्रियता
आरएसएस द्वारा छत्तीसगढ़ में मातृ छाया समेत कई महत्वपूर्ण संगठन चलाए जा रहे हैं। मातृ छाया केंद्र प्रदेश के कई जिलों में स्थापित है। दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर, अंबिकापुर, राजनांदगांव और जगदलपुर मातृ छाया के केंद्र हैं। मातृ छाया नवजात अनाथ बच्चों के पालन-पोषण का काम करती है।
इसके साथ ही हर जिले में आरएसएस के संस्कार केंद्र हैं। पिछले 70 साल से अधिक आरएसएस चांपा जिले में कुष्ठ निवारक संघ नामक संस्था चला रही है। यहां बेघर कुष्ठ रोगियों की सेवा की जाती है। इसके साथ ही कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी संघ कराती है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव राव बलीराम हेडगेवार
आरएसएस के 100 साल पूरे
आरएसएस का गठन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर, महाराष्ट्र में की थी। इसका उद्देश्य भारतीय समाज को संगठित करना, सांस्कृतिक पुनर्जागरण करना और राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत करना था। हेडगेवार ने आरएसएस को एक गैर-राजनीतिक संगठन के रूप में शुरू किया, जो हिंदू समाज को संगठित करने पर केंद्रित था। 1930-40 के दशक में संघ ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग किया।
40 से अधिक देशों में पहुंचा संघ
आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यह नाम ही धर्म और राष्ट्र के प्रति भक्ति की भावना को परिभाषित करती है। विजयदशमी यानी दशहरे के दिन साल 1925 को गठित हुए इस संगठन को लगभग 100 साल पूरे हो गए। एक दौर था कि जब महज 5 से 6 लोग आरएसएस के सदस्य थे। अब यह संख्या करोड़ों का आंकड़ा पार कर चुकी है। अब आरएसएस भारत समेत 40 से अधिक देशों में सक्रीय है। विदेशों में आरएसएस ( हिंदू स्वयंसेवक संघ HTS) के नाम से काम करती है।
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