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छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों के कंधों पर बस्ते के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए राज्य सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाया है। नर्सरी से आठवीं कक्षा तक के छात्रों के स्कूल बैग में अब केवल चार विषयों की किताबें और कॉपियां ही होंगी, और बस्ते का वजन 3 से 4 किलोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही, स्कूलों में साफ पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए 500 मिलीलीटर से बड़ी पानी की बोतल ले जाने पर भी रोक लगा दी गई है। इस नई व्यवस्था को लागू करने के लिए जिला और ब्लॉक स्तर पर विशेष जांच कमेटियों का गठन किया गया है, जो स्कूलों के बाहर और बसों में बस्तों की जांच करेगी।
नई व्यवस्था का उद्देश्य
यह पहल बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर शुरू की गई है। भारी बस्तों के कारण बच्चों में पीठ दर्द, कंधे की समस्याएं और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही थीं, खासकर निजी स्कूलों में। हर साल पालकों द्वारा जिला शिक्षा कार्यालय में भारी बस्तों को लेकर शिकायतें दर्ज की जाती थीं, लेकिन निजी स्कूलों द्वारा बार-बार जारी दिशा-निर्देशों की अनदेखी की जाती थी। अब सरकार ने सख्ती बरतते हुए नई नीति लागू की है, जिसके तहत।
एक दिन में केवल चार विषयों की पढ़ाई होगी, और उसी के अनुसार किताबें बस्ते में रखी जाएंगी।
अतिरिक्त वर्कबुक, गाइड या अन्य सामग्री बस्ते में नहीं होगी।
बस्ते का वजन निर्धारित सीमा (3-4 किलो) में रखना अनिवार्य होगा।
निजी स्कूलों पर विशेष नजर
शासकीय स्कूलों में पाठ्यपुस्तक निगम (पापुनि) की किताबों से पढ़ाई होती है, जिसके कारण वहां बस्ते का वजन आमतौर पर नियंत्रित रहता है। लेकिन निजी स्कूलों में पालकों को हर साल निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे बस्ते का बोझ बढ़ जाता है। कई निजी स्कूल दोहरी किताबों की व्यवस्था अपनाते हैं। एक सेट पापुनि की किताबों का और दूसरा निजी प्रकाशकों का। इससे बच्चों के बस्ते का वजन दोगुना हो जाता है।
नई व्यवस्था के तहत
यदि निजी स्कूल एक दिन में चार से अधिक विषय पढ़ाना चाहते हैं, तो अतिरिक्त किताबों की व्यवस्था स्कूल को स्वयं करनी होगी।
स्कूल परिसर में ही छात्रों की किताबें रखने की सुविधा दी जाएगी, ताकि बच्चों को अतिरिक्त बोझ न उठाना पड़े।
पापुनि की किताबों के उपयोग की नियमित जांच होगी, ताकि निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगे।
साफ पानी की व्यवस्था अनिवार्य
भारी बस्तों का एक प्रमुख कारण बड़ी पानी की बोतलें भी हैं, क्योंकि कई स्कूलों में साफ पेयजल की सुविधा उपलब्ध नहीं होती। पालक बच्चों को 1 से 1.5 लीटर की बोतलें देते हैं, जो बस्ते का वजन बढ़ाती हैं। अब स्कूलों को साफ पेयजल की व्यवस्था करनी होगी, और छात्र केवल 500 मिलीलीटर की बोतल ही ले जा सकेंगे। स्कूल प्रबंधन को बोतल रीफिल करने की जिम्मेदारी लेनी होगी।
जांच का नया तरीका
बस्तों की जांच को पारदर्शी और प्रभावी बनाने के लिए सरकार ने नया दृष्टिकोण अपनाया है। जांच स्कूल परिसर के अंदर नहीं, बल्कि बसों में, स्कूल गेट के बाहर, या रास्ते में होगी, ताकि स्कूल प्रबंधन लीपापोती न कर सके। जांच कमेटी के पास वजन मापने की मशीन होगी, जो बस्ते का वजन मापेगी। यदि किसी स्कूल के छात्रों के बस्ते का वजन निर्धारित सीमा से अधिक पाया गया, तो उस स्कूल के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
पालकों और बच्चों को राहत
यह निर्णय पालकों और बच्चों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है। पालक लंबे समय से भारी बस्तों की शिकायत कर रहे थे, क्योंकि इससे बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा था। जिला शिक्षा अधिकारी, रायपुर ने कहा, "हमारा उद्देश्य बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखना है। भारी बस्ते न केवल बच्चों की सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि उनकी पढ़ाई के प्रति रुचि भी कम करते हैं।"
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