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Raipur. सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के चर्चित शराब घोटाले की जांच कर रही प्रवर्तन निदेशालय (ED) को कठोर शब्दों में फटकार लगाई है। अदालत ने पूछा कि आखिर वह कौन-सी जांच है जो इतने महीनों बाद भी पूरी नहीं हो सकी। कोर्ट ने टिप्पणी की— “एक तरफ आप कहते हैं बेल नहीं देनी, दूसरी तरफ कहते हैं जांच बाकी है। आखिर कौन-सी जांच अभी भी लंबित है?”
ED को सुप्रीम कोर्ट के दो बड़े निर्देश
शीर्ष अदालत ने जांच अधिकारी को व्यक्तिगत एफिडेविट दाखिल करने का आदेश दिया है, जिसमें स्पष्ट रूप से बताया जाए—
- पूर्व मंत्री कवासी लखमा के खिलाफ कौन-सी जांच अभी चल रही है?
- इस जांच को पूरा करने में कितना समय और लगेगा?
मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी।
लखमा पहले से ED और EOW दोनों की गिरफ्तारी में रहे
15 जनवरी को ED ने पूर्व मंत्री कवासी लखमा को गिरफ्तार किया था। इसी मामले में EOW ने भी एक अलग केस दर्ज किया था। जांच आगे बढ़ने और चार्जशीट दाखिल होने के बाद अब लखमा को इसी मामले में EOW ने भी गिरफ्तार किया है। दोनों एजेंसियों की कार्रवाई से मामला और गंभीर हो गया है, क्योंकि अब आरोपों की कानूनी जांच दो स्तरों पर आगे बढ़ेगी।
अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत— गिरफ्तारी सुरक्षा स्थायी हुई
इसी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में आबकारी विभाग के अधिकारियों को दी गई अंतरिम गिरफ्तारी सुरक्षा को स्थायी कर दिया। यह आदेश मनी लॉन्ड्रिंग व भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की सुनवाई के बाद दिया गया। दो-सदस्यीय पीठ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह फैसला सुनाया।
ED का दावा: लखमा सिंडिकेट के मुख्य कड़ी थे
ED ने अदालत को बताया कि कवासी लखमा शराब सिंडिकेट का अहम हिस्सा थे। सिंडिकेट उनके निर्देशों पर काम करता था। शराब नीति में हुए बदलावों में लखमा की प्रमुख भूमिका रही, विशेषकर FL-10 लाइसेंस की शुरुआत में। उन्हें विभाग की अनियमितताओं की जानकारी थी, पर उन्होंने उसे रोकने की कोशिश नहीं की।
ED का बड़ा आरोप: हर महीने 2 करोड़ मिलता था कमीशन
ED के वकील सौरभ पांडेय ने कहा कि 3 साल तक चलने वाले इस सिंडिकेट में लखमा को हर महीने 2 करोड़ रुपए दिए जाते थे। कुल राशि लगभग 72 करोड़ रुपए बताई गई। यह पैसा लखमा के बेटे हरीश कवासी के घर के निर्माण और सुकमा कांग्रेस भवन के निर्माण में खर्च हुआ।
2161 करोड़ का शराब घोटाला— ED का दावा
ED के अनुसार, छत्तीसगढ़ में संचालित शराब सिंडिकेट ने राज्य सरकार को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाया और लगभग 2,161 करोड़ रुपए की अवैध कमाई आपस में बांटी गई। एजेंसी का दावा है कि इस पूरे सिंडिकेट का संचालन अनवर ढेबर, अनिल टुटेजा और उनके साथ जुड़े अन्य प्रभावशाली लोगों द्वारा किया जा रहा था। जांच में सामने आया है कि अवैध कमाई के लिए सिस्टम को संगठित तरीके से प्रभावित किया गया, जिससे सरकार को राजस्व का बड़ा हिस्सा नहीं मिल पाया।
ED का निष्कर्ष
ED का कहना है कि 2019 से 2022 के बीच संचालित इस कथित अवैध कमाई के दौरान कवासी लखमा को हर महीने POC के माध्यम से कमीशन दिया जाता था। जांच में सामने आए लेनदेन और बयान इस बात की ओर इशारा करते हैं कि लखमा भी इस अवैध वितरण श्रृंखला का हिस्सा थे। एजेंसी का दावा है कि नियमित रूप से होने वाले इन भुगतानों के प्रमाण उनके पास मौजूद हैं, जिनके आधार पर कार्रवाई आगे बढ़ाई जा रही है।
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