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छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में महारानी अस्पताल के पीछे स्थित शासकीय नर्सिंग कॉलेज में धार्मिक आस्था को लेकर तनाव की स्थिति बन गई। कॉलेज परिसर में स्थापित शिव मंदिर को हटाने के प्राचार्या के फैसले ने छात्राओं के बीच आक्रोश पैदा कर दिया। इस निर्णय के विरोध में छात्राओं ने एकजुट होकर भूख हड़ताल शुरू की और भगवान शिव की प्रतिमा को पूर्व स्थान पर पुनः स्थापित करने की मांग की। घंटों चले इस तनावपूर्ण माहौल और छात्राओं के दबाव के बाद आखिरकार प्राचार्या को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। इसके बाद भगवान शिव की प्रतिमा को उसी स्थान पर सम्मानपूर्वक पुनर्स्थापित किया गया।
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विवाद की शुरुआत
नर्सिंग कॉलेज में कुछ छात्राओं के बीच धार्मिक मुद्दों को लेकर बहस छिड़ गई। इस बहस की खबर जब कॉलेज की प्राचार्या तक पहुंची, तो उन्होंने स्थिति को नियंत्रित करने के इरादे से परिसर में स्थापित शिव मंदिर को हटाने का निर्णय लिया। मंदिर को हटाकर भगवान शिव की प्रतिमा को परिसर के एक अन्य हिस्से में स्थानांतरित कर दिया गया। इस फैसले की जानकारी जैसे ही छात्राओं को मिली, उन्होंने इसे अपनी धार्मिक भावनाओं पर आघात मानते हुए तीव्र विरोध शुरू कर दिया।
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छात्राओं का आक्रोश और भूख हड़ताल
प्राचार्या के इस फैसले से नाराज छात्राओं ने एकजुट होकर कॉलेज परिसर में भूख हड़ताल शुरू कर दी। उनकी एकमात्र मांग थी कि भगवान शिव की प्रतिमा को उसी स्थान पर पुनः स्थापित किया जाए, जहां वह पहले थी। छात्राओं का कहना था कि मंदिर परिसर में धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, और इसे हटाना उनकी आस्था का अपमान है। हड़ताल के दौरान छात्राओं ने नारेबाजी की और प्राचार्या के खिलाफ अपना रोष व्यक्त किया।
विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल का हस्तक्षेप
इस घटना की खबर फैली तो विश्व हिन्दू परिषद (VHP) और बजरंग दल के स्थानीय पदाधिकारी भी कॉलेज परिसर पहुंच गए। उन्होंने छात्राओं का समर्थन करते हुए कॉलेज प्रबंधन के साथ बातचीत शुरू की। संगठनों ने प्राचार्या से मंदिर को हटाने के निर्णय पर स्पष्टीकरण मांगा और इसे वापस लेने की मांग की। इस बीच, छात्राओं की भूख हड़ताल और संगठनों का दबाव बढ़ता गया, जिससे कॉलेज प्रशासन पर स्थिति को शांत करने का दबाव बढ़ गया।
प्राचार्या का यू-टर्न और मंदिर की पुनर्स्थापना
कई घंटों तक चले विरोध और तनाव के बाद प्राचार्या ने आखिरकार अपना फैसला वापस ले लिया। कॉलेज प्रशासन ने भगवान शिव की प्रतिमा को पुनः उसी स्थान पर स्थापित करने का आदेश दिया। इसके बाद मंदिर को पूर्ववत स्थिति में लाया गया, और छात्राओं ने अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी। इस घटना के बाद परिसर में शांति बहाल हुई, लेकिन यह विवाद स्थानीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया।
विवाद का व्यापक प्रभाव
यह घटना न केवल धार्मिक आस्था और प्रशासनिक निर्णय के बीच टकराव को दर्शाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे सामूहिक विरोध और एकजुटता का दबाव प्रशासनिक निर्णयों को बदलने में प्रभावी हो सकता है। इस मामले ने धार्मिक संवेदनाओं के प्रति संवेदनशीलता और शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक प्रतीकों के महत्व पर भी सवाल उठाए हैं।
कॉलेज प्रबंधन ने साधी चुप्पी
कॉलेज प्रशासन ने इस घटना के बाद कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, भविष्य में इस तरह के विवादों से बचने के लिए प्रबंधन और छात्रों के बीच बेहतर संवाद स्थापित करने की कोशिश की जाएगी। इस घटना ने एक बार फिर धार्मिक आस्था और प्रशासनिक नीतियों के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
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