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छत्तीसगढ़, विशेष रूप से रायपुर, में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की मौजूदगी लंबे समय से चिंता का विषय रही है, लेकिन इनके खिलाफ कार्रवाई अब तक ठंडे बस्ते में पड़ी है। पुलिस के अनुसार, रायपुर में लगभग 20 हजार अवैध बांग्लादेशी रह रहे हैं। इन अवैध बांग्लादेशियों ने का मुख्य ठिकाना भाटागांव, अमलीडीह, राजेंद्र नगर, कुशालपुर, शिव कॉलोनी, न्यू राजेंद्र नगर, पुराना धमतरी रोड, लालपुर और संतोषी नगर हैं।
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कांग्रेस शासन में मिला संरक्षण
आरोप है कि कांग्रेस शासनकाल में इन अवैध प्रवासियों को न केवल बसाया गया, बल्कि स्थानीय पार्षदों और छोटे-मोटे नेताओं ने पैसे लेकर आधार कार्ड, पैन कार्ड और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज भी उपलब्ध कराए। इन घुसपैठियों की मौजूदगी न केवल छत्तीसगढ़ तक सीमित है, बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों जैसे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, गुजरात और पश्चिम बंगाल में भी इनका जाल फैला हुआ है। पश्चिम बंगाल में भाषाई समानता के कारण इन्हें स्थानीय लोगों के बीच घुलमिल जाना आसान हो जाता है।
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अवैध गतिविधियों में संलिप्तता
पुलिस के अनुसार, ये घुसपैठिए जुआ, सट्टा, नशा तस्करी और ऑनलाइन बैंक धोखाधड़ी जैसे अपराधों में लिप्त हैं, जिससे स्थानीय लोग आर्थिक संकट में फंस रहे हैं, जबकि घुसपैठिए मोटी कमाई कर रहे हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर बांग्लादेशी महिलाएं वेश्यावृत्ति और रील्स-ब्लॉग के जरिए कमाई कर रही हैं। कोलकाता के रेड लाइट एरिया में ऐसी महिलाओं की संख्या काफी है, जो स्थानीय पहचान पत्रों की आड़ में अपनी पहचान छिपाती हैं।
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नेताओं का संरक्षण और दस्तावेजों का खेल
छोटे-मोटे नेता और पार्षद कथित तौर पर इन अवैध प्रवासियों को आधार, वोटर और राशन कार्ड बनवाकर संरक्षण देते हैं। ये प्रवासी न केवल सामान्य कामकाज में भारतीय नागरिकों की तरह शामिल होते हैं, बल्कि कुछ को चियर्स गर्ल्स के रूप में पार्टियों, फार्म हाउस और सरकारी आयोजनों में भी भेजा जाता है। नेताओं के संरक्षण के कारण इनके खिलाफ कार्रवाई मुश्किल हो जाती है।
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पुलिस की कार्रवाई और चुनौतियां
हाल ही में भिलाई पुलिस ने अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के खिलाफ अभियान चलाते हुए दो लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें अभय शर्मा (चंदौली, यूपी) और शशि उपाध्याय शामिल हैं। पुलिस ने शशि के मकान से दो अवैध बांग्लादेशी महिलाओं को भी पकड़ा। हालांकि, पुलिस कार्रवाई के बाद कई घुसपैठिए अपने आकाओं के ठिकानों पर छिप गए हैं और मामला शांत होने का इंतजार कर रहे हैं।
1971 से चली आ रही समस्या
1971 में बांग्लादेश के गठन के बाद से हिंदू शरणार्थियों के साथ-साथ रोजगार की तलाश में बांग्लादेशी घुसपैठिए भारत में प्रवेश कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा जैसे सीमावर्ती राज्यों में इनका विरोध कई बार हिंसक रूप ले चुका है। स्थानीय लोग इन्हें मूल निवासियों के हक पर अतिक्रमण करने वाला मानते हैं और इन्हें वापस भेजने की मांग करते हैं।
सख्त कार्रवाई और पारदर्शी जांच जरूरी
पुलिस ने सत्यापन अभियान शुरू किया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक इनके संपर्कों और ठिकानों पर गहन छापेमारी नहीं होगी, तब तक इस समस्या का स्थायी समाधान मुश्किल है। केंद्र सरकार की अवैध प्रवासियों को नागरिकता देने की घोषणा के बाद इनकी संख्या में और इजाफा हुआ है। ऐसे में सख्त कार्रवाई और पारदर्शी जांच की जरूरत है ताकि इस जटिल समस्या से निपटा जा सके।
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