Government School Book Scam : छत्तीसगढ़ में हर साल करोड़ों का किताब घोटाला हो रहा है। ये वे किताबें हैँ जो बच्चों को पढ़ने के लिए सरकार की तरफ से मुफ्त दी जाती हैं। यानी ये किताबें पहली से आठवीं तक के कोर्स की हैं।
इनमें से लाखों किताबें रद्दी में बेची जाती हैं। जितने बच्चे स्कूल में हैं उनसे ज्यादा किताबें पाठ्य पुस्तक निगम छापता है। इस शिक्षण सत्र में 40 लाख किताबें ऐसी हैं जो बच्चों तक पहुंची ही नहीं और रद्दी में चली गईं। क्योंकि ये बच्चे स्कूल में पढ़ते ही नहीं हैं।
सूत्रों की मानें तो प्रदेश में 10 लाख बच्चे ऐसे हैं जो स्कूल में पढ़ते नहीं, लेकिन उनके नाम पर किताबें छाप दी जाती हैं। द सूत्र ने इस पूरे मामले की पड़ताल की तो हैरान करने वाली जानकारी सामने आई। आइए आपको बताते हैं छत्तीसगढ़ का करोड़ों का किताब घोटाला।
ऐसे होता है किताब घोटाला
प्रदेश सरकार सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले पहली से आठवीं कक्षा के बच्चों को मुफ्त किताबें बांटती है। एक बच्चे को कोर्स की चार किताबें दी जाती हैं। प्रदेश में 48 हजार 547 स्कूल सरकारी स्कूल हैं। इनमें 60 लाख 31 हजार 207 बच्चे पढ़ाई करते हैं।
ये रिकॉर्ड पूरी तरह से सरकारी है यानी यह जानकारी प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार को दी है। करीब 50 लाख बच्चों के लिए 2 करोड़ की किताबें छापी गईं। अब यहीं से घोटाला शुरू होता है। सरकार बच्चों की संख्या 50 लाख दिखाती है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार छह फीसदी बच्चे ड्रॉपआउट हैं। लेकिन असलियत कुछ और है। शिक्षा विभाग से जुड़े सूत्रों की मानें तो 20 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते, उनके लिए भी किताबें छापी जाती हैं।
इस हिसाब से 10 लाख बच्चों के लिए चालीस लाख किताबें रद्दी में चली गईं। यह बच्चे या तो ड्रॉपआउट हैं या फिर सीजी बोर्ड से मान्यता प्राप्त प्रायवेट स्कूल में पढ़ते हैं। इनके लिए भी सरकार किताबें छपवाती है लेकिन प्रायवेट स्कूल तो अपने पब्लिशर्स से किताबें लेते है इसलिए यह किताबें रद्दी में चली जाती हैं।
करोड़ों का होता है घोटाला
अब हम आपको बताते हैं किताबों का वितरण सिस्टम। पाठ्य पुस्तक निगम किताबें छापता है। निगम का बजट 150 करोड़ का है। इसमें 80_90 करोड़ का कागज खरीदा जाता है और 30 करोड़ रुपए छपाई के लगते हैं। पाठ्य पुस्तक निगम से ये किताबें प्रिंटर तक पहुंचती हें। प्रिंट होने के बाद संभागीय डिपो भेजी जाती हैं।
संभागीय डिपो से जिला, जिले से संकुल और संकुल केंद्र से स्कूलों में किताबें पहुंचती हैं। हाल ही में लाखों किताबें सिलयारी के डंपिंग केंद्र में मिली हैं। कांग्रेस के पूर्व विधायक विकास उपाध्याय ने इस असलियत को उजागर किया।
यह किताबें साल इसी शिक्षण सत्र की थीं। यहां पर करीब 7 टन से ज्यादा किताबें थीं। दूसरे जिलों में भी रद्दी में बेची गई किताबें मिली हैं। अब तक 40 लाख किताबों में से 12 लाख किताबें जब्त हो चुकी हैं।
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संकुल से सरकार तक पहुंचे तार
इस घोटाले के तार संकुल से सरकार तक पहुंचते हैं। पूरे प्रदेश में इसका रैकिट काम कर रहा है। यह रैकिट संकुल से अतिरिक्त किताबें उठाता है और उनको डंपिंग केंद्र यानी पेपर मिल तक पहुंचाता है।
इसमें संकुल से लेकर निगम तक के अधिकारी,कर्मचारी और ठेकेदारों की मिली भगत है। पहले तो ज्यादा किताबें छपती हैं फिर संकुल से स्कूल तक पहुंचती हैं। स्कूल से अतिरक्त किताबें फिर वापस संकुल में आती हैं। यहीं से इन किताबों का डंप करने लिए उठाने का सिलसिला शुरु हो जाता है।
निगम के महाप्रबंधक को हटाकर खानापूर्ति
सरकार ने इस घोटाले के सामने आने पर निगम के महाप्र
FAQ
बंधक को हटा दिया है। वहीं इसकी पूरी जांच के निर्देश भी दिए गए हैं। लेकिन सवाल ये है कि यदि इसमें शामिल लोग ही इसकी जांच करेंगे तो सच्चाई सामने कैसे आएगी। वहीं जब ये सालों से चल रहा है तो फिर सरकार इसको रोक क्यों नहीं पा रही है।
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