बस्तर की समस्याओं के समाधान के लिए संघ और आदिवासियों को मिलकर काम करना जरूरी

बस्तर में व्याप्त दो प्रमुख समस्याओं माओवादी हिंसा और मतांतरण पर वरिष्ठ कांग्रेस और आदिवासी नेता तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री अरबिंद नेताम ने गंभीर चिंता जताई। इन जटिल समस्याओं के समाधान के लिए आरएसएस और आदिवासी समुदाय को एकजुट होकर काम करना होगा।

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Krishna Kumar Sikander
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To solve the problems of Bastar, it is necessary for the Sangh and the tribals to work together the sootr
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नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ता विकास वर्ग (द्वितीय) के समापन समारोह में वरिष्ठ कांग्रेस और आदिवासी नेता तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री अरबिंद नेताम ने बस्तर में व्याप्त दो प्रमुख समस्याओं माओवादी हिंसा और मतांतरण पर गंभीर चिंता जताई। मुख्य अतिथि के रूप में इस समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इन जटिल समस्याओं के समाधान के लिए आरएसएस और आदिवासी समुदाय को एकजुट होकर काम करना होगा। नेताम ने यह भी जोर देकर कहा कि अब तक कोई भी सरकार इन मुद्दों को गंभीरता से नहीं ले रही है, जिसके चलते बस्तर का विकास अवरुद्ध हो रहा है।

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बस्तर में माओवाद और मतांतरण की समस्या

अरबिंद नेताम ने अपने संबोधन में बताया कि बस्तर में माओवादी हिंसा और मतांतरण लंबे समय से क्षेत्र के विकास में बाधा डाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले इन मुद्दों पर खुलकर चर्चा नहीं होती थी, लेकिन अब समय आ गया है कि इन समस्याओं का सामना किया जाए। नेताम ने स्पष्ट किया कि माओवादी हिंसा ने बस्तर के आदिवासी समुदायों को हिंसा और अस्थिरता के चक्र में फंसा दिया है, वहीं मतांतरण ने उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को प्रभावित किया है। इन दोनों समस्याओं ने क्षेत्र के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर किया है और विकास की प्रक्रिया को बाधित किया है।

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आरएसएस की भूमिका

नेताम ने आरएसएस की कार्यप्रणाली की सराहना करते हुए कहा कि पिछले दो दिनों में उन्हें संगठन के कार्यों को करीब से समझने का अवसर मिला। उन्होंने जोर देकर कहा कि बस्तर की इन जटिल समस्याओं का समाधान आरएसएस के सहयोग के बिना संभव नहीं है। आरएसएस के पास संगठनात्मक ढांचा, सामाजिक जागरूकता और समुदायों को एकजुट करने की क्षमता है, जो बस्तर में माओवाद और मतांतरण जैसी समस्याओं से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उन्होंने कहा कि आरएसएस का जमीनी स्तर पर कार्य करने का अनुभव और आदिवासी समुदायों के साथ मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता इस दिशा में सकारात्मक बदलाव ला सकती है।

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औद्योगीकरण और आदिवासियों का विस्थापन

नेताम ने बस्तर के विकास के लिए औद्योगीकरण को आवश्यक बताया, लेकिन साथ ही यह भी चेतावनी दी कि इसके दुष्परिणामों पर ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि औद्योगीकरण के बिना बस्तर का आर्थिक विकास संभव नहीं है, लेकिन इस प्रक्रिया में आदिवासियों के विस्थापन और उनकी आजीविका पर पड़ने वाले प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि औद्योगीकरण की योजनाओं में जनजातीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। नेताम ने जोर दिया कि आदिवासियों की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को संरक्षित करते हुए उनके हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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पेसा कानून पर सवाल

नेताम ने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) के कार्यान्वयन पर भी सवाल उठाए। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले 25 वर्षों में पेसा कानून के तहत बस्तर में एक भी औद्योगिक लाइसेंस का आवंटन नहीं किया गया है। यह कानून आदिवासी क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने और उनकी जमीन व संसाधनों पर उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए बनाया गया था। नेताम ने कहा कि इस कानून का प्रभावी ढंग से लागू न होना बस्तर के विकास में एक बड़ी बाधा है। उन्होंने सरकारों से इस पर उचित और प्रभावी  कदम उठाने की मांग की।

आरएसएस और आदिवासियों का सहयोग

नेताम ने अपने संबोधन में बार-बार इस बात पर जोर दिया कि बस्तर की समस्याओं का समाधान तभी संभव है, जब आरएसएस और आदिवासी समुदाय मिलकर काम करें। उन्होंने कहा कि आरएसएस का सामाजिक कार्य और आदिवासियों की सांस्कृतिक जड़ों के प्रति सम्मान एक साझा मंच प्रदान कर सकता है, जिसके जरिए माओवादी हिंसा और मतांतरण जैसी समस्याओं का स्थायी समाधान निकाला जा सकता है। उन्होंने आदिवासी समुदायों से भी अपील की कि वे अपनी परंपराओं और संस्कृति को संरक्षित करते हुए विकास की मुख्यधारा में शामिल हों।

नेताम के विचारों से नई ऊर्जा का संचार

अरबिंद नेताम का यह बयान बस्तर के जटिल सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर एक नई बहस छेड़ सकता है। उनके इस कथन ने न केवल माओवादी हिंसा और मतांतरण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया है, बल्कि यह भी रेखांकित किया है कि बस्तर के विकास के लिए सामाजिक संगठनों और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग आवश्यक है। नेताम का यह संदेश कि आरएसएस और आदिवासी समुदायों को एकजुट होकर काम करना चाहिए, बस्तर में शांति, स्थिरता और विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इस समारोह में आरएसएस के कार्यकर्ताओं, आदिवासी प्रतिनिधियों और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया। नेताम के विचारों ने उपस्थित लोगों में एक नई ऊर्जा का संचार किया और बस्तर के विकास के लिए एक समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया।

 

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