छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज में भगवान राम से जुड़ी परंपराएं और मान्यताएं गहरी जड़ें जमाए हुए हैं। मान्यता है कि राम वनवास के दौरान छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों से गुजरे थे। इन पवित्र स्थलों पर आज भी आदिवासी समुदाय दीप जलाकर अपनी आस्था व्यक्त करता है। दीपावली के अवसर पर विशेष रूप से इन स्थानों पर दीप प्रज्वलन का आयोजन होता है, जो संस्कृति, परंपरा और धार्मिक भावनाओं का प्रतीक है।
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गांवों में दीप जलाने की परंपरा
छत्तीसगढ़ के बस्तर, सरगुजा, कोरिया, और अन्य वन क्षेत्रों में बसे आदिवासी समुदायों का मानना है कि राम ने अपने वनवास का कुछ हिस्सा यहीं बिताया था। यहां के गांवों में दीप जलाने की परंपरा इस विश्वास से जुड़ी है कि राम के मार्ग पर प्रकाश फैलाने से सुख-शांति और समृद्धि आती है। कई आदिवासी परिवार दीपावली पर अपने घरों और आसपास के राम-प्रभावित स्थलों पर दीपक जलाते हैं।
बस्तर में स्थित जगदलपुर, चित्रकूट, और शिवरीनारायण जैसे स्थानों का ऐतिहासिक महत्व भी रामायण से जोड़ा जाता है। खास बात यह है कि दीपावली के साथ-साथ रामनवमी और अन्य धार्मिक त्योहारों पर भी इन क्षेत्रों में दीप प्रज्वलन का आयोजन होता है।
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दीप जलाने का अनूठा तरीका
यह परंपरा सिर्फ धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समाज की सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा है। इससे पीढ़ी दर पीढ़ी रामायण की कथा जीवित रहती है और समाज में एकता और सामूहिकता का संदेश फैलता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि दीप जलाने से न केवल राम की स्मृति ताजा होती है, बल्कि उनके जीवन में सुखद बदलाव भी आते हैं। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय का यह दीप जलाने का अनूठा तरीका धार्मिक आस्था और संस्कृति का सुंदर समन्वय है।
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