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छत्तीसगढ़ कांग्रेस और गुटबाजी का आपस में पुराना नाता रहा है। या हूं कहें कि गुटबाजी और कांग्रेस का चोली-दामन का साथ है तो यह शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी। कांग्रेस की यहीं पुरानी बीमारी एक बार फिर लौट आई है। इसकी बानगी प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट के छत्तीसगढ़ दौरे के दौरान साफ तौर पर देखने को मिली। सोमवार को प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट की मौजूदगी में हुई पॉलटिकल अफेयर्स कमेटी की बैठक में जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बिफरे और उन्होंने अनुशासनहीनता का मामला उठाते हुए जिस तरह से अपनी संगठन को आड़े हाथों लिया उसने इस बात और थोड़ी और हवा दे दी। बघेल ने मीटिंग में सवाल उठाते हुए सीधे तौर पर सवाल उठाए थे कि अनुशासनहीनता के मामले में संगठन आखिर कर क्या रहा है। साथ ही उन्होंने अनुशासनहीनता के मामले में फौरन कार्रवाई की मांग भी कर डाली।
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मीटिंग में बिफरे बघेल
सूत्रों के मिली जानकारी के मुताबिक बैज पर सवाल खड़े करते हुए बघेल ने साफ तौर पर कहा कि जो भी व्यक्ति अनुशासन की सीमा लांघता है। तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती और प्रदेश अध्यक्ष उसके घर चाय पीने चले जाते हैं। इस दौरान पूर्व सीएम नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत पर भी सवाल खड़े किए। जिसपर पार्टी महासचिव और प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने बघेल की बात का समर्थन करते हुए कहा कि 'अनुशासनहीनता पर फौरन कार्रवाई होनी चाहिए'। बघेल ने ये सवाल भले ही प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को लेकर पूछे हों, लेकिन अगर सियासी सूत्रों को माने तो उनका इशारा कहीं और ही था । अब सवाल यह उठता है कि कहीं 'कका' बैज से बहाने 'बाबा' पर तो तंज नहीं कस रहे । दरअसल विधानसभा चुनाव हारने के बाद टीएस सिंहदेव संगठन में अलग-थलग पड़ गए थे। ऐसे में वो एक बार फिर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन तलाशने में जुट गए हैं। प्रदेश संगठन में अपनी दावेदारी मजबूत कर रहे हैं। वहीं दूसरी प्रदेश संगठन की चाबी सिंहदेव के हाथ में जाए, बघेल गुट को यह किसी भी सूरत में मंजूर नहीं होगा। क्योंकि इन दोनों नेताओं के बीच की अदावत किसी से छिपी नहीं है।
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संगठन में कद बढ़ाने की कवायद
2018 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनने के कुछ साल बाद ही इन दिग्गज नेताओं के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर अदावत शुरू हो गई थी। जो वक्त से साथ बढ़ती चली गई। और 2023 विधानसभा चुनाव तक तो यह इस कदर बढ़ गई कि प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता जाने की प्रमुख वजहों में से एक बन गई। ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री वाले फॉर्मूले को लेकर सिंहदेव मुखर होकर बयान दिए। जिसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा। पार्टी न सिर्फ सरगुजा संभाग की सभी 14 की 14 सीटें हार गई, बल्कि उसे प्रदेश की सत्ता से भी बाहर होना पड़ा। दबी जुबान में कांग्रेस के नेताओं ने यह बात मानी कि हो न हो सिंहदेव की बयानबाजी से पार्टी को बेहद नुकसान पहुंचा।
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बैज को लेकर संगठन में आक्रोश
सिंहदेव के साथ ही वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को लेकर भी पार्टी के नेताओं में जमकर आक्रोश है। विधानसभा, लोकसभा और निकाय चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार की जिम्मेदारी प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते बैज से सिर पर भी मढ़ी जा रही है। ऐसे में उन्हें बदलने की मांग तो उठ रही है। हलांकि बैज सक्रियता के मामले में टीएस पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद से वो लगातार सक्रिय हैं। और धरना-प्रदर्शन हो या आंदोलन वे किसी न किसी जरिए से सरकार पर सवाल खड़े करने का कोई मौका नहीं चूकते और शायद यहीं बात उनके पक्ष में जाती है।
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