मध्यप्रदेश में ये करीबी नेता बढ़ा रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मुश्किलें! आखिर क्यों आलाकमान की शरण लेने पर मजबूर सीएम ?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में ये करीबी नेता बढ़ा रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मुश्किलें! आखिर क्यों आलाकमान की शरण लेने पर मजबूर सीएम ?

BHOPAL. मध्यप्रदेश में अपनी ही पार्टी और अपनी ही सरकार में शिवराज सिंह चौहान का वन मैन शो अब संकट में है। संगठन पूरी ताकत लगाकर सत्ता के मद में चूर अश्वों की रफ्तार को रोकना चाहता है। बांधना चाहता है। दूसरी तरफ शिवराज सिंह चौहान हैं जो रुकने को तैयार नहीं हैं। ये सारा मामला जुड़ा है जनआशीर्वाद यात्रा से। सत्ता में आने के बाद से ये शिवराज सिंह चौहान के लिए सिर्फ यात्रा भर नहीं है, चुनावी युद्ध पर निकलने से पहले किया गया एक यज्ञ भी है। जब उनके अश्व विजय पताका लेकर चुनाव से तकरीबन 5 महीने पहले ही प्रदेशभर में निकल जाते हैं। मानो अश्वमेघ यज्ञ के अश्व हों। पिछले चुनाव से पहले ये अश्व निकले तो, लेकिन आधे यज्ञ से ही लौट आना पड़ा। इसके बाद 2018 का चुनाव क्या नतीजे लेकर आया सब जानते हैं। इस बार इन अश्वों को रोकने का दुस्साहस कोई और नहीं खुद शिवराज सिंह चौहान के साथी ही कर रहे हैं। बैठक पर बैठक और प्रेजेंटेशन पर प्रेजेंटेशन पर बात नहीं बन सकी है। अब खबर है कि शिवराज सिंह चौहान अपनी दरख्वास्त लेकर सीधे आलाकमान के दरबार में जाने की तैयारी कर सकते हैं।



2018 में पूरी नहीं हो सकी थी जनआशीर्वाद यात्रा



हर विधानसभा चुनाव से पहले सीएम शिवराज सिंह चौहान की जनआशीर्वाद यात्रा आयोजित होती है। इस यात्रा के तहत कोशिश होती है कि सीएम हर जिले, हर सीट तक पहुंच सकें। एक तरह से चुनाव से पहले प्रदेश में माहौल बनाने और नई ऊर्जा फूंकने का काम इस यात्रा के सहारे होता रहा है। यात्रा की तैयारी भी जोरशोर से होती है। सीएम के लिए हाईटेक रथ तैयार होते हैं। यात्रा में चलने वाले सीएम के खास सिपहसालार भी हाईटेक रथों पर ही सवार होते हैं। जिन्हें बकायदा पूजा पाठ करके ही यात्रा पर रवाना किया जाता है। हर बार यात्रानुमा यज्ञ पर निकले ये रथ जीत का पैगाम लेकर ही लौटे हैं। लेकिन पिछले चुनाव से पहले साल 2018 में ये यात्रा पूरी नहीं हो सकी थी। उस साल बीजेपी के दिग्गज नेता अमित शाह ने यात्रा के रथों को हरी झंडी दिखाई थी। 2018 में यात्रा अधूरी रह गई और इस बार इस यात्रा के निकल पाने पर ही संशय है। यात्रा को लेकर एक नहीं कई संशय और कई मत है। जो शिवराज की ख्वाहिश और संगठन के अड़ियल रवैये के चलते नए मतभेदों का कारण बन रहे हैं।



क्रेडिट की लड़ाई या कांग्रेस का खौफ ?



क्या ये क्रेडिट की लड़ाई है या कांग्रेस का खौफ है। दरअसल, हर बार यात्रा करके लौटे शिवराज सिंह चौहान जीत का सेहरा अपने सिर सजाते हैं। पिछली बार उनकी जनआशीर्वाद यात्रा के जवाब में कांग्रेस ने पोल खोल यात्रा चलाई। ये कांग्रेस की ऐसी ही किसी जवाबी यात्रा का खौफ होने की संभावना कम नजर आती है। क्योंकि, अब तक कांग्रेस ने ऐसी कोई तैयारी नहीं की है। मसला पार्टी के भीतर ही सिमटा हुआ है। जहां इस यात्रा के लिए नया फॉर्मूला सुझाया गया। हर अंचल का क्षत्रप अपने-अपने क्षेत्र में जनआशीर्वाद यात्रा निकालना चाहता है। इस प्रस्ताव के बाद शिवराज सिंह चौहान के वन मैन शो पर ब्रेक लगाने की तैयारी ज्यादा नजर आती है। हालांकि अब तक शिवराज सिंह चौहान को कोर कमेटी से ही यात्रा की मंजूरी नहीं मिली है। इसके फॉर्मेट को लेकर संशय बरकरार है।



सीएम शिवराज के गले नहीं उतर रहा पार्टी का फॉर्मूला



हर बार चुनावी साल में जुलाई के पहले पखवाड़े से सीएम की ये महत्वकांक्षी यात्रा शुरू हो जाती है। लेकिन इस बार पार्टी का फॉर्मूला शिवराज सिंह चौहान के गले नहीं उतर रहा है। नए फॉर्मूले में कहा गया है कि तोमर-सिंधिया ग्वालियर-चंबल में यात्रा निकालें। इसमें वहां के बाकी नेता शामिल हों। विजयवर्गीय मालवा में रहें। वीडी शर्मा बुंदेलखंड में जाएं। शिवराज सिंह मध्य भारत संभालने के साथ पूरे मध्यप्रदेश में बड़ी सभाओं को संबोधित करें। इसमें केंद्रीय लीडरशिप भी शामिल हो जाए। उम्मीद थी कि 4 जुलाई को हुई कोर कमेटी की बैठक में इस फॉर्मूले पर मुहर लग जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी जो प्रेजेंटेशन दिया वो खारिज कर दिया गया।



यात्रा निकाले बगैर मानेंगे नहीं सीएम शिवराज



मजबूरी ये है कि बिना कोर कमेटी की मर्जी के, सूबे का मुखिया होने के बावजूद शिवराज सिंह चौहान ये यात्रा नहीं निकाल सकते। लेकिन अंदरूनी हलकों में ये चर्चा भी तेज है कि इस यात्रा को निकाले बगैर शिवराज सिंह चौहान मानेंगे नहीं। उनके आने के बाद से ही ये दस्तूर शुरू हुआ है जिसे वो कायम भी रखेंगे। चुनाव से पहले खुद की और पार्टी की ब्रांडिंग करने का ये उनका अपना तरीका रहा है। अब माना जा रहा है कि सीएम सीधे आलाकमान का दरवाजा खटखटा सकते हैं ताकि उन्हें जनआशीर्वाद यात्रा निकालने की मंजूरी मिल सके।



क्या होगा जनआशीर्वाद यात्रा का भविष्य ?



कांग्रेस की नजरों में बीजेपी में पसरा ये असमंजस हार का डर तो है ही साथ ही तेज हो रही गुटबाजी का भी नमूना है। कांग्रेस ये भी दावा कर रही है कि गुटबाजी नहीं होती तो सीएम का फेस आगे रखने में क्या दिक्कत थी। अब हर दिग्गज नेता चाहता है कि शिवराज का वन मैन शो खत्म हो और सबकी मेहनत को पहचान मिले। इसलिए अंचलों में बीजेपी बंटती जा रही है। कोर कमेटी की बैठक से एक बार फिर खाली हाथ लौटे सीएम का अगला कदम क्या होगा। वही तय करेगा जनआशीर्वाद यात्रा का भविष्य क्या होने वाला है।



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जनआशीर्वाद यात्रा में किसका होगा चेहरा ?



अथ श्री जनआशीर्वाद यात्रा, ये कहने का वक्त अभी आया नहीं है। बैठक के चक्रव्यूह में अभी शिवराज उलझे जरूर हैं, लेकिन निकलने का मार्ग ढूंढ ही लेंगे। उसके बाद ही इस सस्पेंस से पर्दा उठेगा। जनआशीर्वाद यात्रा होगी या नहीं। होगी तो क्या सीएम शिवराज ही उसका फेस होंगे। अगर नहीं तो कौन-कौनसे चेहरे इस यात्रा के बहाने प्रदेशभर में चमकेंगे। इन सवालों के जवाब कुछ ही दिन में मिल सकते हैं, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से ये साफ नजर आने लगा है कि अब शिवराज सिंह चौहान के फेस को पीछे करने की कवायद तेज हो चुकी है। आलाकमान का रुख इस रथ की राह तय करेगा।


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