संजय गुप्ता, INDORE
इंदौर में श्री वैष्णव ट्रस्ट के ट्रस्टी और शिक्षाविद पुरूषोत्तम पसारी को जिला कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। उन्होंने एक याचिका कोर्ट में दायर की थी जिसमें अन्य लोगों ने श्री वैष्णव के नाम का उपयोग करने को लेकर रोक लगाने की मांग की थी। लेकिन कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी यह शब्द तो पुरातन हिंदूवादी है। ऐसे में इसे प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
पसारी ने यह लगाई थी याचिका-
पसारी ने याचिका दायर की थी कि ट्रेडमार्क एक्ट के तहत श्री वैष्णव नाम मप्र लोक न्यास एक्ट 1951 में साल 2004 से रजिस्टर्ड है। श्री वैष्णव के नाम से ट्रस्ट द्वारा 13 शैक्षणिक संस्थाओं का संचालन किया जा रहा है। वहीं अन्य द्वारा श्री वैष्णव का नाम का उपयोग किया जा रहा जो गलत है और इन्हें प्रतिबंधित किया जाए, इनके खिलाफ ट्रस्ट द्वारा पूर्व में जाहिर सूचना भी जारी की थी। इनके नाम के उपयोग के कारण कई छात्र भ्रमित हो रहे हैं और वह इनके पास चले जाते हैं।
प्रतिवादियों ने यह दिया जवाब-
वहीं एक प्रतिवादी सीताराम वौष्णव ने कहा कि वह वैष्णव बैरागी समाज का अध्यक्ष है। यह पुरातन शब्द है और हम 1998 से ही वैष्णव विद्यापीठ का और पत्रिका का संचालन कर रहे हैं। ऐसे में उनके दावे सभी गलत है।
जिला कोर्ट ने यह दिया फैसला-
इस मामले में जिला कोर्ट ने साफ कहा कि वैष्णव शब्द एक निश्चित व्यक्ति या वस्तु विशेष से संबंधित नहीं होकर प्राचीन हिंदू वैदिक धर्म एक विशिष्ट सम्प्राय से संबंधित है। हिंदुओं के प्रमुख भगवान विष्णु के उपसकों को वैष्णव कहा गया है। वहीं श्री शब्द भी हिंदू संस्कृति में सम्मान सूचक है और देवी लक्ष्मी को भी श्री कहा गया है। यह अनादिकाल से उपयोग में आ रहे हैं। श्री वैष्णव साधारण वर्ग या शब्द समूह नहीं होकर हिंदू धर्म की धार्मिक व आध्यात्मिक आस्था व विश्वास का प्रतीक है। इसलिए इनके वैधानिक उपयोग पर प्रतिबंध लगाना संवैधानिक तौर पर संभव नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह तर्क कि इससे छात्र भ्रमित होते हैं, गलत है, क्योंकि आजकल नेट पर सभी जानकारी उपलब्ध है। वहीं जब ट्रस्ट ने साल 2004 में नाम रजिस्टर्ड कराया था तो फिर साल 2011 में जाकर केस क्यों नहीं लगाया, वहीं सामने वाले के दस्तावेज से भी साबित है कि वह 1998 से इस शब्द का उपयोग कर रहा है।