भोपाल। परिवार के सदस्य के बीमार होने की स्थिति में उन्हें अच्छा इलाज मिल सके, इसके लिए लोग अपनी कमाई का एक हिस्सा खर्च कर मेडिक्लेम या हेल्थ इंश्योरेंस कराते हैं। हालांकि, ऐसे हालात बनने पर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां पल्ला झाड़ने की कोशिश में लग जाएं तो परिवारों को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, इसको वो ही समझ सकते हैं। लोगों को बीमार होने पर सरल और सुलभ इलाज का भरोसा दिलाने वाली हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां की क्लेम देने में टालमटोल की दास्तान की इस कड़ी में हम आपको बता रहे हैं, ऐसे ही पीड़ित व्यक्ति की आपबीती । स्टार हेल्थ इंश्योरेंस कम्पनी द्वारा क्लेम देने से मुकरने के बाद किस तरह उन्होंने बेटी का इलाज कराया और फिर कंजूमर फोरम में कम्पनी के खिलाफ 12 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ते रहे।
स्टार हेल्थ इंश्योरेंस कम्पनी द्वारा पॉलिसी होल्डर से की गयी चीटिंग से दुखी पॉलिसी होल्डर राजेंद्र प्रसाद शर्मा ने साल 2012 में कंज्यूमर फोरम में परिवाद दायर किया था। यहां भी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी से कानून की लड़ाई इतनी आसान नहीं थी। जब - जब तारीख आती शर्मा तो पहुंच जाते, लेकिन कम्पनी के वकील कभी सुनवाई के लिए मोहलत मांग लेते तो कभी किसी दस्तावेज का हवाला देकर पेशी टाल देते। कम्पनी महंगे वकीलों के सहारे टालती रही और केस 11 साल डिस्ट्रिक्ट फोरम में अटका रहा। तब भी शर्मा ने हार नहीं मानी। इलाज और पॉलिसी से जुड़े एक - एक दस्तावेज और इलाज करने वाले डॉक्टर की रिपोर्ट के साथ पेशी पर हाजिर होते रहे।
फोरम में वकील उर्वशी मिश्रा ने उनकी मजबूत पैरवी की और साबित करने में कामयाब रहीं की कम्पनी जिस बीमारी को छिपाने की सफाई देकर क्लेम का भुगतान करने से बचने की कोशिश कर रही है, वह कब हो जाती है इसका पता नहीं लगता। इन तथ्यों और डॉक्टर की रिपोर्ट ने इंश्योरेंस कम्पनी की नीयत से पर्दा उठा दिया और फोरम ने बीते साल यानी फरवरी 2023 में शर्मा के पक्ष में फैसला दिया। फोरम ने कहा कम्पनी क्लेम में मांगी गयी राशि यानी एक लाख बारह हजार रुपए क्लेम निरस्त करने की तारीख से 9 प्रतिशत ब्याज के साथ परिवादी को दे। साथ ही केस लड़ने में हुए खर्च और मानसिक कष्ट के लिए भी राशि का भुगतान 2 महीने में करने का आदेश दिया, लेकिन बीमा कम्पनी ने इसे भी नहीं माना और अब पूरे 12 महिने बीतने पर भी परिवादी राजेंद्र शर्मा फोरम के चक्कर ही काट रहे हैं।