Jabalpur. जबलपुर में बीजेपी विधायक सुशील तिवारी इंदू द्वारा शराब सिंडिकेट की कलई खोलने के बाद आबकारी विभाग लगातार एक ही रट लगाए हुए था कि शराब सिंडिकेट का कोई अस्तित्व है ही नहीं। लेकिन सिंडिकेट बनाकर लोगों से मनमाने दाम वसूलकर शासन को करोड़ों के राजस्व की हानि पहुंचाने के इस खेल में ईओडब्ल्यू ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए भांजी मार दी है। ईओडब्ल्यू की टीमों ने एक साथ, एक ही समय पर जबलपुर की 5 शराब दुकानों पर एमआरपी से कहीं ज्यादा दामों पर शराब बिकते हुए पकड़ी। इसके बाद टीम ने मौके पर पंचनामा करते हुए पांचों शराब कारोबारियों पर एफआईआर दर्ज की है ।
ऑनलाइन किया शराब का पेमेंट
शराब सिंडिकेट पर अक्सर यही आरोप लगता था कि सिंडिकेट से जुड़ी दुकानों पर मनमाने दाम पर शराब तो बिकती ही है, वहीं इस पूरे खेल का खुलासा न हो इसके लिए गद्दीदार कभी ग्राहक को बिल ही नहीं देता। ईओडब्ल्यू की टीमें शराब दुकानों पर ग्राहक बनकर पहुंची और एमआरपी से ज्यादा दाम पर शराब खरीदकर बकायदा उसका ऑनलाइन पेमेंट भी किया गया, ताकि यह ट्रांजेक्शन पुख्ता सबूत का काम करे। इसके बाद टीम ने पंचनामे की कार्रवाई शुरू की तो शराब दुकान संचालकों और कर्मचारियों में हड़कंप मच गया।
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पहली बार ईओडब्ल्यू उतरा मैदान में
अक्सर ईओडब्ल्यू ऐसे मामलों में दखल नहीं देता, लेकिन यह पहली बार है कि ईओडब्ल्यू ने इस प्रकार की गफलत को आर्थिक अपराध मानते हुए कार्रवाई की है। जबकि बीजेपी विधायक के आवाज उठाने के बाद से ही आबकारी विभाग शराब सिंडिकेट के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगाता चला आ रहा था।
जांच हुई तो अधिकारी भी आएंगे लपेटे में
माना जा रहा है कि यदि ईओडब्ल्यू ने गहनता से पूरे मामले की जांच की, तो शराब सिंडिकेट से हर माह होने वाली करोड़ों रुपए की काली कमाई, आबकारी विभाग की शह पर चल रहे शराब में चल रहे मिलावट के खेल और मिलीभगत पर से पर्दा उठ सकता है। जिसमें आबकारी विभाग के कई अधिकारी लपेटे में आ सकते हैं।
इन दुकानों पर की कार्रवाई
ईओडब्ल्यू की टीमों ने जबलपुर के बिलहरी स्थित आकर्ष जायसवाल की दुकान, सदर गैरीसन ग्राउंड के सामने नर्मदा एसोसिएट की शराब दुकान, मालवीय चौक की संदीप यादव की दुकान, रानीताल चौक की नरेंद्र कुमार रजक की शराब दुकान और शारदा चौक की अमन जायसवाल की शराब दुकानों पर यह कार्रवाई की है। टीम ने हर दुकान से 100 पाइपर नामक विदेशी शराब की बोतल खरीदीं। जो इन सभी दुकानों पर एमआरपी से कहीं ज्यादा दाम पर बेची गई। सभी दुकानों पर टीम ने ऑनलाइन भुगतान किया। बताया जा रहा है कि एक अनुमान के मुताबिक शराब सिंडिकेट के जरिए शासन को हर माह करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि हो रही है, शायद इस पूरे गोरखधंधे पर से अब ईओडब्ल्यू पर्दा हटा दे।