ग्वालियर में में जाति प्रमाण पत्र घोटाला; शासन के आदेश से बड़े ‘एसडीएम’, रोक के बावजूद बना रहे फर्जी कास्ट सर्टिफिकेट

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Jitendra Shrivastava
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ग्वालियर में में जाति प्रमाण पत्र घोटाला; शासन के आदेश से बड़े ‘एसडीएम’, रोक के बावजूद बना रहे फर्जी कास्ट सर्टिफिकेट

जितेंद्र सिंह, GWALIOR. मध्य प्रदेश, घोटाला और भ्रष्टाचार का गढ़ बन गया है। प्रदेश में पहले व्यापमं घोटाले के नाम पर योग्य छात्रों का हक मारा गया। फिर शिक्षक भर्ती में फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र घोटाला सामने आया, जिसे ‘‘द सूत्र’’ ने ही खोला था। अब सरकारी नौकरी और योजनाओं का लाभ पाने के लिए मोटी रकम लेकर फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाने का मामला सामने आया है। ग्वालियर जिला प्रशासन के एक एसडीएम माननीय उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय और राज्य शासन के आदेशों के ऊपर बैठकर उन जातियों के अनुसूचित जनजाति (एसटी) प्रमाण पत्र जारी कर रहे हैं, जिन पर विभिन्न आदेशों से स्पष्ट रोक है।



माझी नहीं फिर भी एसटी का प्रमाण पत्र



भारत सरकार द्वारा संपूर्ण मध्य प्रदेश में ‘‘माझी’’ जाति को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल किया गया है, लेकिन अन्य धीवर, केवट, कहार, भोई, मल्लाह, निषाद, नावड़ा, ढीमर, तुरहा, बाथम आदि सह-जातियां को अनुसूचित जनजाति आदेश 1950 के अंतर्गत जारी अधिसूचना में अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल नहीं किया गया है। यह जातियां 26 दिसंबर 1984 द्वारा जारी की गई अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल हैं। बावजूद इसके अन्य जातियों को पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में होने पर भी ग्वालियर से अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी हो रहे हैं। इसके आधार पर न सिर्फ वह सरकारी नौकरी में पात्र अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों का हक मार रहे हैं, बल्कि तमाम सरकारी योजनाओं को लाभ भी उठा रहे हैं।



शासन का आदेश, नहीं बनेंगे प्रमाण-पत्र



मध्य प्रदेश शासन के आदिम जाति, अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग ने 23 सितम्बर 1992 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि सामाजिक तथा शिक्षात्मक दृष्टि से पिछड़ा वर्ग जातियों की अनुसूची के सरल क्रमांक 12 पर अंकित जातियों में सम्मिलित ‘‘माझी’’ को इस सूची से विलोपित किया गया है। रायकवार, ढीमर, बाथम, कहार और भोई, मल्लाह आदि जातियों को नियमानुसार अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह जातियां जनजाति की सूची में शामिल नहीं हैं। 



1950 के राजस्व रिकॉर्ड सिद्ध करना होगा



जनवरी 2014 में मध्य प्रदेश शासन के सामान्य प्रशासन विभाग (आरक्षण प्रकोष्ठ) ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को जाति प्रमाण पत्र जारी करने संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए थे। आदेशानुसार अनुसूचित जाति या जनजाति के मामले में प्रमाण पत्र के लिए आवेदन पत्र के साथ उसकी जाति तथा आवेदक/ उसका परिवार की वर्ष 1950 या उससे पूर्व मध्य प्रदेश में निवास की पुष्टि संबंधी दस्तावेज संलग्न करना अनिवार्य है। अन्य पिछड़ा वर्ग के मामले में 1984 के राजस्व रिकॉर्ड या अन्य संबंधित दस्तावेज के बिना प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा सकता है। 5 फरवरी 2014 को शासन ने एक और आदेश जारी किया था, जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि जो राजस्व व शैक्षणिक अभिलेखों द्वारा अपने को माझी जनजाति को होना सिद्ध करते हैं तो उनके ही नवीन जाति प्रमाण पत्र जारी किए जाएं और ऐसे वे लोग जो सिद्ध नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें नवीन जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं किए जाएं।



माझी लिख बनवा रहे एसटी प्रमाण पत्र



भारत सरकार ने सिर्फ माझी जाति को पिछड़ा वर्ग की सूची से विलोपित कर अनुसूचित जनजाति में शामिल किया है। अन्य सह-जातियां अभी भी पिछड़ा वर्ग में ही शामिल हैं। ऐसे में सरकारी नौकरी और योजनाओं का लाभ लेने के लिए सह-जातियों ने अपने और अपने बच्चों के नाम के आगे माझी लिखना प्रारंभ कर दिया है। बिना किसी राजस्व रिकॉर्ड के आधार पर मात्र उपनाम बदलकर रायकवार, ढीमर, बाथम, कहार एवं भोई, मल्लाह आदि माझी समाज का अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र बनवा रहे हैं। यह प्रमाण पत्र भी ग्वालियर जिले के सिर्फ एक ही एसडीएम के कार्यालय से जारी हो रहे हैं। अभी तक सैकड़ों लोग फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाकर सरकारी नौकरी और योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं।



जिले में 01 एसडीएम बना रहे प्रमाण पत्र



ग्वालियर जिले में ग्वालियर, लश्कर, झांसी रोड, मुरार, डबरा, भितरवार और घाटीगांव एसडीएम हैं। वर्तमान में झांसी रोड एसडीएम सीबी प्रसाद को छोड़कर बाकी अन्य एसडीएम धीवर, केवट, कहार, भोई, मल्लाह, निषाद, नावड़ा, ढीमर, तुरहा, बाथम आदि जातियों के द्वारा माझी जाति के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने पर शासन के आदेश का हवाला देकर और भारत सरकार से अधिसूचना जारी न होने का कारण बता आवेदन खारिज कर देते हैं, लेकिन एसडीएम सीबी प्रसाद धड़ल्ले से अन्य जातियों को भी माझी समाज का अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र बनाकर दे रहे हैं। इससे पहले एसडीएम सीबी प्रसाद लश्कर क्षेत्र में एसडीएम रहे, वहां से भी उन्होंने धड़ल्ले से बिना दस्तावेजों की जांच किए अन्य पिछड़ा वर्ग में आने वाली जातियों को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र बनाकर दिए।



40 की जांच की एक में भी नहीं लगा रिकॉर्ड 



‘‘द सूत्र’’ की टीम ने एसडीएम सीबी प्रसाद के द्वारा लश्कर और झांसी रोड के पदस्थ रहने के दौरान माझी जाति के जारी करीब 40 जाति प्रमाण पत्र के आवेदन पत्रों की जांच की। जिसमें एक भी आवेदन के साथ 1950 का राजस्व रिकॉर्ड प्रस्तुत नहीं था। मात्र आवेदन, हाल के वर्षों में जारी अंकसूची और स्थानीय निवास प्रमाण पत्र के आधार पर ही एसडीएम महोदय द्वारा अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र जारी कर दिए गए, जबकि शासन का स्पष्ट आदेश है कि बिना 1950 के राजस्व रिकॉर्ड में उनकी जाति माझी होने पर ही जाति प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा अन्यथा नहीं।  



अन्य एसडीएम के क्षेत्र के भी बना रहे प्रमाण पत्र



प्रत्येक एसडीएम अपने-अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले वार्डों, कॉलोनियों, मोहल्लों के जाति प्रमाण पत्र जारी करते हैं। बकायदा पटवारी मौके पर जाकर निरीक्षण कर अपनी टीप प्रस्तुत करता है। पर एसडीएम सीबी प्रसाद उन क्षेत्रों में निवास करने वाले धीवर, केवट, कहार, भोई, मल्लाह, निषाद, नावड़ा, ढीमर, तुरहा, बाथम आदि जातियों के अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र भी जारी कर रहे हैं जो उनके क्षेत्राधिकार में भी नहीं आते हैं। अन्य एसडीएम के क्षेत्राधिकार में रहने वाले भी एसडीएम सीबी प्रसाद के क्षेत्र का वार्ड नंबर डालकर फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवा रहे हैं, जबकि उनका पता वास्तविक लिखा हुआ है। इससे साफ है कि जाति प्रमाण पत्र बनाने में कितना बड़ा घोटाला किया जा रहा है कि अधिकारी आंख बंद करके कारगुजारी का अंजाम देने में लगे हैं।



उच्च न्यायालय भी बोल चुका, नहीं आते एसटी में 




  • राधावल्लभ चौधरी बनाम भारत सरकार: माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर की डिवीजनल बैंच जनहित याचिका में अपने आदेश दिनांक 25 सितम्बर 1990 में स्पष्ट कर चुकी है कि केवट, मल्लाह, धीमर, निशाद, भोई, कहार आदि जातियां अनुसूचित जातियों में नहीं आते हैं।  


  • रामलाल कोल बनाम मोती कश्यप: माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर ने इलेक्शन पिटीशन की सुनवाई करते हुए आदेश दिनांक 10.04.2013 को कटनी जिले की बदवारा विधानसभा सीट के चुनाव को शून्य कर दिया था। मोती कश्यप धीमर जाति के होकर अपने को माझी बताकर अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र बनवाकर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीट बदवारा से चुनाव लड़े थे।

  • गीता बनाम स्टेट ऑफ एमपी: माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 16 मई 2007 से गीता माझी की याचिका खारिज कर दी। गीता, अपनी जाति माझी साबित करने में विफल रही थी। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि यह वह मामला है जहां एक अयोग्य उम्मीदवार उनके लिए आरक्षित कोटे में योग्य उम्मीदवार के पद पर कब्जा कर लेता है।



  • केंद्र सरकार के पास अन्य जातियों का प्रस्ताव लंबित



    वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश शासन ने धीवर, केवट, कहार, भोई, मल्लाह, निषाद, नावड़ा, ढीमर, तुरहा, बाथम आदि जातियों को भी अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए एक समिति की रिपोर्ट बनाकर केंद्र सरकार से अधिसूचना जारी करने की सिफारिश की है। विशेषज्ञ समिति जिसमें मंत्री लाल सिंह आर्य, मं.त्री अतर सिंह आर्य, विधायक मोती कश्यप और एक अन्य सदस्य ने अपने प्रतिवेदन में लिखा कि राज्य सरकार केंद्र सरकार से आग्रह करे कि धीमर, ढीमर, भोई, कहार, केवट, निषाद, मल्लाह जातियों को अनुसूचित जनजाति की अनुसूची की माझी जनजाति के समक्ष सम्मिलित की जाए एवं अधिसूचना जारी की जाए। बावजूद इसके केंद्र सरकार ने आज तक उस पर कोई रुख स्पष्ट नहीं किया है।



    कलेक्टर बोले- गलत जारी करेगा वो दोषी होगा



    ग्वालियर कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह का कहना है कि केस टू केस बेसिस पर देखना होता है। जो जारी करता है उसकी जिम्मेदारी होती है। यह उनकी संतुष्टि या असंतुष्टि का मामला है। अगर कोई गलत जारी करेगा तो वह दोषी होगा। गलत जारी करने के संबंध में जांच चल रही है जांच में अगर पाए जाएंगे गलती की है चाहें अधिकारी हो या प्राप्तकर्ता उसके विरुद्ध कार्यवाही होगी।


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