'राम मंदिर के लिए शहीद होना चाहते थे लालकृष्ण आडवाणी' उमा भारती ने सुनाए कार सेवा और आंदोलन से जुड़े संस्मरण

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Vikram Jain
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'राम मंदिर के लिए शहीद होना चाहते थे लालकृष्ण आडवाणी' उमा भारती ने सुनाए कार सेवा और आंदोलन से जुड़े संस्मरण

BHOPAL. अयोध्या में राम मंदिर आंदोलनों से जुड़ी रहीं मप्र की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने रविवार को सरकारी आवास पर कारसेवकों की मौजूदगी में आंदोलन से जुड़े संस्मरण सुनाए। उन्होंने कुछ यदि घटनाओं को भी शेयर किया जो अब तक सामने नहीं आयी थीं। इनमें लालकृष्ण आडवाणी के मंदिर के लिए शहीद होने का जुनून और पीएसी के जवानों द्वारा अपने ही अधिकारी पर बन्दूक तान देने की घटना शामिल हैं। संस्मरण के अंत में उन्होंने कहा मुझे लगा ये मेरी आखरी विदाई की मुलाकात है इसलिए आप सबको याद किया है।

गिरफ्तारी के बाद रेस्टहाउस को बनाया था जेल

आंदोलन की यादें ताजा करते हुए उमा भारती ने बाबरी ढांचा ढहाए जाने के बाद गिरफ्तारी के समय का एक वाक्या सुनाया जिसे अब तक किसी को नहीं बताया था। उन्होंने कहा कि दिल्ली से लालकृष्ण आडवाणी, विष्णुहरि डालमिया, अशोक सिंघल, विनय कटियार, मुरली मनोहर जोशी के साथ गिरफ्तार कर ललितपुर के पास माताटीला में एक रेस्टहाउस को जेल बनाकर एक महीने तक रखा गया। सुरक्षा कारणों से जज वहीं सुनवाई करने पहुंचते थे। रेस्टहाउस के सुरक्षा अधिकारी ने एक दिन मुझे बुलाकर कहा था की आडवाणी का बहार टहलना बंद कराईये, यहां तो सुरक्षा है लेकिन दूर किसी पेड़ पर चढ़कर कोई गोली मार दे तो क्या होगा। इस बात पर आडवाणी का कहना था अगर मैं यहां मर गया तो राम मंदिर जल्दी बन जाएगा, इसलिए मुझे मरने दो। रिहाई के बाद जब हम कार और ट्रेन से दिल्ली जा रहे तो सड़कों और स्टेशनों पर भारी भीड़ जुटती थी। जब कल्याण सिंह मिलने आए तो भीड़ को नियंत्रित करने गोली न चलाने के आदेश के बारे में पूछा तो उनका कहना था वो कोई आतंकवादी नहीं थे फिर मैं राम भक्तों पर कैसे गोली चलवा सकता था। ऐसी ही एक घटना कारसेवा के समय की भी उन्होंने बताई।

जब पुलिस जवानों ने मुझ पर तान दी थी बंदूक

उमा भारती आगे कहा कि पीएसी जब उन्हें अयोध्या में गिरफ्तार कर घसीटते हुए ठाणे ले गई तब कपड़े फट चुके थे और वे काफी जख्मी थीं। महिला डीएसपी कपड़े बदलवाना चाहती थीं तभी तत्कालीन एसएसपी वहां आए और मुझे इसी हालत में ले जाने का आदेश दिया। उसके इस अमानवीय आदेश से नाराज कारसेवक हरेन पाठक ने थप्पड़ जड़ दिया। एसएसपी ने गोली मारने का आदेश दिया तो पुलिस जवानों ने उस पर ही बंदूक तान दीं, महिला डीएसपी ने भी नियम विरुद्ध आदेश का विरोध किया। तब मौके की नजाकत देख वहां खड़े डीएम उन्हें बाहर ले गए। मैं इस घटनाक्रम से बहुत विचलित थी।

सितंबर 1989 में पहली बार हुई थी नरेंद्र मोदी से मुलाकात

आंदोलन से जुड़ने की यादों को ताजा करते हुए उमा भारती कहतीं है की राजमाता विजयाराजे सिंधिया द्वारा राजनीति में लाए जाने से पहले ही उनका जुड़ाव विश्व हिन्दू परिषद् से हो गया था। वे बाल अवस्था से ही कथा- प्रवचन करती थीं इसलिए संतों के साथ मिलना जुलना होता था। 1985 में आगे बढ़ो जोर से बोलो जन्मभूमि का ताला खोलो आंदोलन से राम मंदिर के संघर्ष से जुड़ी। तब विहिप के आह्वान पर उत्तरप्रदेश की चरखारी विधानसभा क्षेत्र के कुल पहाड़ पर पहली सभा को संबोधित किया। फिर तमिलनाडू में धर्म परिवर्तन के मामलों को रोकने के लिए भी वहां संगठन के लिए काम किया। सितंबर 1989 को शिलापूजन का काम शुरू हुआ। शिलापूजन कार्यक्रम में ही पहली बार नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई। कारसेवा से 6-7 दिन पहले अयोध्या में जाने से पाबंदी लगा दी। मुलायम सिंह ने घोषणा की थी की अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा। कार सेवक किसी भी स्थिति में अयोध्या जाने आतुर थे।

सच हुई थी देवरहा बाबा की भविष्यवाणी

अयोध्या के माहौल को लेकर उमा भारती ने आगे कहा कि 6 दिसंबर को कारसेवकों को पुराने स्थान से एक-एक मुट्ठी लेकर जाना था। अयोध्या में इतनी भीड़ जमा हो चुकी थी की मुझे कुछ अंदेशा होने लगा। कार सेवा के दिन सभा चल रही थी तभी भीड़ ढांचे पर चढ़कर तोड़फोड़ करने लगी। मैंने ढांचे तक पहुंचकर लोगों को समझाने की कोशिश की। वहां राम और शरद कोठारी की मां मौजूद थीं,उन्होंने कहा ढांचा बेटों का हत्यारा है गिराने तक नहीं रुकेंगे। कोई रुकने को तैयार नहीं था और उत्साही कार्यकर्त्ता मुझे जय श्री राम के जय घोष के साथ हाथों पर उठाकर मंच तक छोड़ गए। तभी ढांचा भरभराकर ढह गया और लोग एक- एक ईंट उठाकर ले गए। देवराहा बाबा ने अशोक सिंघल के सामने यह भविष्वाणी की थी जो हमारे सामने सच हो गई थी। जिन सुरक्षा बलों को कार सेवकों पर गोली चलाने भेजा गया था वे भी चबूतरे पर बैठे रामलला के दर्शन कर जयकारे लगा रहे थे।

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कार सेवकों पर गोली चलाने के बाद भड़का आक्रोश

31 अक्टूबर को अयोध्या में कारसेवक वासुदेव अग्रवाल की गोली लगने से मौत की खबर ने विचलित कर दिया। तब बांदा के बजरंगदल अध्यक्ष राजकुमार की मदद से रेस्ट हाउस से अयोध्या के लिए निकल गई। कोई पहचान न सके इसके लिए अपने सिर का मुंडन कराया था। बांदा से फतेहपुर, प्रतापगढ़ के रास्ते पुलिस बैरियर पार करते हुए फैजाबाद तक पहुंच गए। जब अयोध्या पहुंचे तो वह दृश्य कल्पना से परे था। कारसेवकों को लेकर जब 2 नवंबर को आगे बढ़े तो हनुमान गढ़ी के पास भारी पुलिस बल तैनात था। आगे बढ़े तो सुरक्षा बलों ने आंसू गैस और लाठी चार्ज कर दिया। कार सेवाओं को निर्दयता से पीटा गया। इस बीच पुलिस की गोली से रामकुमार और शरद कुमार कोठारी की मौत की सूचना मिली जिसने विचलित कर दिया। पीएसी की टुकड़ी मुझे घसीटते हुए थाने ले गयी। मुझे लग रहा था की बहुत बड़ा अन्याय देश की अस्मिता के साथ हुआ हैं। संसद में मैंने कहा था इतने बड़े नरसंहार के लिए उसी तरह ट्रायल चलना चाहिए जिस तरह नजीओं पर बेकसूरों की हत्या के लिए चला था। यह सदन के रिकॉर्ड में है। आस्था की अनदेखी का खामियाजा ही आज कांग्रेस उठा रही है।

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