JAIPUR. एक समय था जब भजनलाल शर्मा ने भरतपुर से पार्टी के खिलाफ बगावत की थी और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था। 2018 के चुनाव में भी वे टिकट न मिलने से काफी ज्यादा निराश हुए थे। लेकिन जब फैसला ले लिया जाता है तब धीरे-धीरे उस फैसले के पीछे की भूमिका नजर आने लगती है। वो भजनलाल ही थे जो 2018 में अमित शाह की हर रैली में उनके साथ हुआ करते थे, और इन चुनावों में वे पीएम मोदी के साथ हर रैल में दिखाई दे रहे थे, इसलिए अब कहा जा रहा है कि बीजेपी नेतृत्व ने अनायास ही भजनलाल को सीएम बनाने का फैसला नहीं लिया है, यह तलाश तो काफी समय पहले ही पूरी हो चुकी थी।
जमीनी कार्यकर्ता, संघ के भी करीबी
भजनलाल बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ता रहे हैं, वे 4 प्रदेशाध्यक्षों के साथ विभिन्न पदों पर संगठन का काम देख चुके हैं। पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की बात को अक्षरशः पालन करते हैं जिस वजह से उनके करीबी भी हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और संघ की पसंद की मुहर भी उन पर लगी हुई है। खास बात यह है कि जयपुर में विधायक दल की बैठक से पहले वे इसकी तैयारियों में एक कार्यकर्ता के नाते जुटे थे।
भजनलाल ही क्यों पसंद?
बीजेपी ने सांगानेर विधानसभा सीट से विधायक अशोक लाहोटी का टिकट काटकर भजनलाल शर्मा को प्रत्याशी बनाया था। यह फैसला यहां के लोगों के लिए अप्रत्याशित था। सितंबर के महीने में भी पीएम की सभा में शर्मा पीएम मोदी और वसुंधरा राजे के ठीक पीछे बैठे हुए थे, हर सभी में पीएम के मंच पर उनकी मौजूदगी काफी कुछ कह रही थी, यह बात और है कि इसे कोई देख नहीं पाया।
भजनलाल को कितना अनुभव है?
भजनलाल सरपंच से लेकर पंचायत समिति के सदस्य रह चुके हैं। बीजेपी ने 4 प्रदेश अध्यक्ष बदले लेकिन उनकी महामंत्री की भूमिका को नहीं बदला। इस लिहाज से उन्हें संगठन का अच्छा खासा अनुभव है। वसुंधरा राजे के विकल्प के तौर पर बीजेपी को ऐसे ही चेहरे की तलाश थी जो संघ की भी पसंद हो। दूसरी तरफ वे पार्टी के आला नेताओं के भी विश्वस्त हैं।
शर्मा के जरिए बीजेपी की किस पर नजर?
सवाल यह उठता है कि भजनलाल शर्मा को सीएम बनाकर बीजेपी ने किस वर्ग को लुभाने का प्रयास किया है। तो बता दें कि बीजेपी का कोर वोट बैंक है सामान्य वर्ग, जिसे बीजेपी ने खुश कर दिया है। 33 साल बाद राजस्थान में किसी ब्राम्हण को कमान सौंपी गई है। भजनलाल मुख्यतः भरतपुर के हैं, उनके सीएम बनने से पूर्वी राजस्थान में बीजेपी का प्रभाव भी बढ़ेगा।
राजधानी को भी मिला सीएम
जयपुर बीजेपी का गढ़ रहा है कि लेकिन कई दशकों से यहां से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना था। ऐसे में जयपुर से सीएम बनाकर बीजेपी ने कई गणित साध लिए हैं। वहीं राजपूत समुदाय को भी जयपुर राजघराने की दीया कुमारी को डिप्टी सीएम बनाकर वसुंधरा का स्थान भरने का प्रयास किया गया है।
दलित चेहरे बैरवा से साधा जातिगत समीकरण
इधर दलित समुदाय के प्रेमचंद बैरवा को उपमुख्यमंत्री बनाकर 36 कौमों के जातिगत समीकरण को साधने का प्रयास किया गया है। हालांकि बैरवा वसुंधरा राजे के समर्थक हैं। यह पहली बार है जब राजस्थान में बीजेपी ने ब्राम्हण, राजपूत और दलित वर्ग का पत्ता खेला है।
अजमेर को भी दिया बड़ा स्थान
अजमेर में काफी मजबूत बीजेपी ने कभी यहां से कोई सीएम या विधानसभा अध्यक्ष नहीं बनाया था। पहली बार यहां से विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है। वासुदेव देवनानी के जरिए सिंधी समाज को भी प्रतिनिधित्व दिया गया है, जो कि बीजेपी समर्थक समाज है।
लोकसभा चुनाव की क्या है रणनीति?
दरअसल राजस्थान में वसुंधरा राजे का काफी प्रभाव है। आलाकमान यह बात जानता है। बीजेपी को राजस्थान में 25 सीटें जीतने का रिकॉर्ड तीसरी बार कायम रखना है। बीजेपी ने इसके लिए संघ का पूरा समर्थन पाने उसकी पसंद के व्यक्ति को सीएम के पद पर बैठाया है। इससे संघ और संगठन में नई ऊर्जा आने का मार्ग प्रशस्त कर दिया गया है। वहीं राजपूत और दलित दोनों वर्ग को भी साधा गया है।
क्या भजनलाल होंगे कठपुतली?
भजनलाल शर्मा के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता। उन्होंने सरपंच के तौर पर ग्रास रूट लेवल पर काम किया है। तो बीजेपी के संगठन में सभी बड़े पदों पर वे रह चुके हैं। हां पहली मर्तबा के सीएम के तौर पर उन्हें काफी चुनौतियों का सामना जरूर करना पड़ेगा।
सरकार में संघ का दखल बढ़ जाएगा?
बता दें कि राजस्थान में वसुंधरा राजे की संघ के साथ खींचतान जगजाहिर है। कई दशक बाद संघ का कोई व्यक्ति सीएम की कुर्सी तक पहुंचा है। ऐसे में यह निश्चित है कि राजस्थान में संघ का दबदबा बढ़ने वाला है। वैसे तो तीनों ही राज्यों में संघ की पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को सीएम बनाया गया है।