Khandwa. 19 साल पहले की बात है, राजा हर्षवर्धन द्वारा बसाई गई नगरी हरसूद इंदिरासागर बांध के डूब क्षेत्र में आने के बाद पानी में समा गया था। इस घटना को यूं तो 19 साल बीत चुके हैं, लेकिन हरसूद से विस्थापित हुए लोगों के जख्म अब भी ताजा हैं। विस्थापितों को 267 हैक्टेयर की पथरीली जमीन पर नया हरसूद बनाकर बसाया गया। विस्थापितों ने पथरीली जमीन में भी हरियाली ला दी। लेकिन इन विस्थापितों को आज तक उनके प्लॉटों का मालिकाना हक नहीं मिल पाया है।
हर घर में लगाए पेड़
नए हरसूद में हर घर के आगे एक पेड़ लगाया गया। यह मुहिम रंग लाई और पथरीली जमीन भी हरी-भरी हो गई। लोगों की मूलभूत सुविधाओं को देखते हुए यहां स्कूल-कॉलेज और अस्पताल भी बनाया जा रहा है। जो पुराने हरसूद में नहीं था। इन विस्थापितों को जो प्लॉट दिए गए, उन पर मकान बनाकर ये लोग रहने लगे, लेकिन मालिकाना हक न मिल पाने के चलते ये लोग इनकी खरीद-बिक्री नहीं कर सकते। न ही इन्हें बैंक से लोन मिल पाता है।
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नए और पुराने हरसूद में इतना अंतर
पुराने हरसूद जो कि अब पानी में डूब चुका है, उसमें 5500 परिवार रहते थे, जिनकी आबादी 18 हजार के करीब थी। स्कूल और कॉलेज भी था, 4 निजी स्कूल भी मौजूद थे। बाजार में 400 दुकानें थीं, जहां 200 गांव के लोग व्यापार करने पहुंचते थे। स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र था। वहीं नए हरसूद में 5000 परिवार मौजूद हैं जिनकी आबादी 25 हजार है। शिक्षा के नाम पर 10 निजी स्कूल, कॉलेज, आईटीआई और पॉलिटेक्निक कॉलेज हैं। स्वास्थ्य के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं वहीं 100 बिस्तरों वाला अस्पताल बनकर तैयार हो रहा है। नए हरसूद में अब 1200 दुकानें हैं जहां 100 गांव के लोग आकर व्यापार करते हैं।
विस्थापित संघ के अध्यक्ष रमेशचंद्र बंसल ने बताया कि 30 जून को हरसूद के विस्थापन को 19 साल हो रहे हैं, लेकिन आवासीय भूखंडों के स्वामित्व, रोजगार के अवसर, भू अर्जन संबंधी मामलों का निराकरण समेत अन्य अधिकार शीघ्र दिए जाने चाहिए। व्यापारी राजेश पाठक ने कहा कि हरसूद अपने समतुल्य शहरों के मुकाबले पिछड़ा जरूर है लेकिन यहां व्यापार भी बढ़ा है। बैतूल और पुनासा तक से लोग यहां व्यापार करने आ रहे हैं।