5 महीने, आठ मौतें, एक ही सवाल - क्या मॉनिटरिंग के अभाव से MP में ''प्रोजेक्ट चीता'' फेल हो गया है?

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Ruchi Verma
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5 महीने, आठ मौतें, एक ही सवाल -  क्या मॉनिटरिंग के अभाव से MP में ''प्रोजेक्ट चीता'' फेल हो गया है?

BHOPAL: कूनो नेशनल पार्क में चीता प्रोजेक्ट शुरू होने 10 महीनों के अंदर 8 चीतों की मौत ने सरकार, NTCA और प्रोजेक्ट प्रबंधन के अधिकारियों की नींद उड़ा दी है। एक हफ्ते के अंदर प्रोजेक्ट अधिकारी वाइल्डलाइफ PCCF जसबीर सिंह चौहान को पद से हटाने और सीएम शिवराज सिंह की मंगलवार शाम बुलाई गई इमरजेंसी मीटिंग के बाद भी प्रोजेक्ट में अधिकारियों के द्वारा बरती गई लापरवाही के आरोप थमने का नाम नहीं ले रहें हैं। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को फटकार लगा दी कि इतने कम समय में 40 फीसदी चीतों की मौते ठीक नहीं हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत सरकार का प्रोजेक्ट चीता खतरे में पड़ गया है? अब इसी मामले में सूत्र के साथ बातचीत में वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे ने मृत चीतों की पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए प्रोजेक्ट की लचर मॉनिटरिंग पर सवाल उठाए हैं। अब एक्सपर्ट्स ऐसा क्यों कह रहे हैं जानने के लिए पढ़िए ये रिपोर्ट...





पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट में चीतों की मौत के कारण: किडनी फेलियर, हार्टअटैक, चोट, डिहाइड्रेशन और इन्फेक्शन





दरअसल, अभी तक जिन 8 चीतों की मौते हुई हैं, उन सभी मामलों में जो पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट आई हैं, उनमें चीतों की मौत का कारण किडनी फेलियर, हार्टअटैक, अंदरूनी अंगों का चोटिल/कमज़ोर होना, गर्मी की वजह से डिहाइड्रेशन होना, और इन्फेक्शन बताया गया है। और एक्सपर्ट्स का मानना है की अगर सरकार प्रोजेक्ट को लेकर सीरियस होती और अधिकारी चीतों की स्थिति की सही मॉनिटरिंग करते तो इन मौतों को रोका जा सकता था। 



चलिए पहले समझते हैं कौन सा चीता क्यों मरा और उनकी पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट क्या कहती हैं?





चीता साशा: सबसे पहले नामीबिया से लाइ गई 4 साल की मादा चीता साशा की मौत 27 मार्च को हुई।





मौत का कारण: वन विभाग ने बताया कि किडनी में संक्रमण के चलते साशा की मौत हुई। पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट में भी इसकी पुष्टि हुई।





चीता उदय: 23 अप्रैल को उदय चीता की मौत हो गई।





मौत का कारण: उसे बाड़े में लड़खड़ा कर अचानक बेहोश होते देखा गया था। कारण बताया गया हार्टअटैक, जो की पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट में भी कन्फर्म हुआ।





चीता दक्षा: 9 मई को बाड़े में दो नर चीतों अग्नि और वायु के साथ मेटिंग के दौरान संघर्ष में दक्षा घायल हो गई और बाद में उसकी मौत हो गई।





मौत का कारण: पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट के बाद कहा गया की दक्ष की मौत ट्रॉमेटिक शॉक से हुई।





ज्वाला चीता के शावक:  23 मई को एक चीता शावक की मौत हुई। इसे सियाया (ज्वाला) चीता ने जन्मा था। 25 मई को ज्वाला के दो अन्य शावकों की मौत हुई।





मौत के कारण: शावकों की मौत ज्यादा गर्मी, डिहाइड्रेशन और कमजोरी की वजह से होना बताई गई। पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट में भी ये बात साबित हुई।





चीता तेजस: 11 जुलाई को चीता तेजस की मौत हो गई। इसे दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था।





मौत के कारण: वन विभाग के प्रेस‌ नोट के मुताबिक तेजस की मौत गर्दन पर चोट और इन्फेक्शन से हुई।





चीता सूरज: 14 जुलाई को नामीबिया से ट्रांसफर किए गए चीते सूरज की मौत हो गई।





मौत का कारण: वन विभाग के प्रेस नोट के मुताबिक मौत की वजह गर्दन और पीठ पर घाव होना है।





प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग पर उठते सवाल







  • दरअसल, भारत लाने के पहले 15 अगस्त 2022 को ही नामीबिया में साशा चीता का ब्लड टेस्ट किया गया था, जिसमें भी क्रियेटिनिन का स्तर 400 से ज्यादा था। जब पहले ही पता था की चीता साशा की हेल्थ रिपोर्ट्स ठीक नहीं है तो उसे भारत क्यों लाने दिया गया? पहले से संक्रमण के बावजूद उसके इलाज के क्या इंतजाम हुए, इस पर भी प्रंबधन ने चुप्पी साढ़े रखी। बीमार चीता लाने का निर्णय क्यों लिया गया, इस पर भी वनाधिकारी कुछ भी कहने से बचते रहे हैं।



  • चीता दक्षा की मौत की बात करें तो उसकी मौत बाड़े में एक साथ दो नर चीते छोड़े जाने की चूक की वजह से हुई। इसके बावजूद मैटिंग के दौरान दक्षा पर हुए जनलेवा हमले की खबर प्रबंधन को तब लगी, जब उसके मादा चीता के पास चंद घंटे ही बचे थे। हमले के तत्काल बाद उसका इलाज नहीं हो पाया।


  • लगातार निगरानी के दावे के बाद भी चीता उदय पर भी प्रबंधन की नजर मौत से कुछ घंटे पहले ही पड़ी।


  • चीता शावकों की मौत देखें तो शावक बेहद गर्मी में पल रहे थे। सवाल उठता है कि यह बात पहले से पता थी की गर्मी का मौसम है तब उसे बात से उन्हें बचाने के क्या प्रयास किए गए? एक्शन तब लिया गया जब वो बीमार हो गए!


  • तेजस और सूरज की मौतों के बार में विशेषज्ञों का कहना है कि दरअसल, चीतों की गर्दन के चारों ओर पहने जाने वाले रेडियो कॉलर के कारण उनकी गर्दन के आसपास बैक्टीरिया पनप रहा है। और बारिश में अत्यधिक गीली स्थितियों के कारण रेडियो कॉलर संक्रमण पैदा कर रहे हैं। रेडियो कॉलर से चीतों को इन्फेक्शन होना एक बेहद ही गंभीर लापरवाही है।






  • एक्शन तब लिया गया जब चीतों की हालत गंभीर हो गई





    अब सरकार का दावा है कि कूनो नेशनल पार्क के पास एक टीम है, जो चीतों की 24 घंटे निगरानी के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर रही है। हाई-मास्ट कैमरों और रेडियो कॉलर से लेकर सैटेलाइट तक से निरंतर निगरानी की जा रही है। तो फिर क्यों ऐसा हो रहा है कि चीतों के बीमार होने के बाद जब वह अत्यंत गंभीर हो जाते हैं, सरकार और कूनो प्रबंधन की निगाह उन पर तभी पड़ती है? एक्सपर्ट्स का कहना है कि यही कारण है कि चीतों की जिंदगी बचाना मुश्किल हो गया है।





    'सीनियर अधिकारी की प्रोजेक्ट साइट से दूर, ग्राउंड स्टाफ सिंसेरिटी से काम नहीं कर रहा'





    इस बारे में वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे का कहना है कि दरअसल, प्रोजेक्ट की सही मॉनिटरिंग न हो पाने के पीछे ठोस कारण ये है कि प्रोजेक्ट के जिम्मेदार सीनियर अधिकारी प्रोजेक्ट साइट से काफी दूरी पर रहते हैं। सीनियर्स की गैरमौजूदगी में ग्राउंड स्टाफ इतनी सिंसेरिटी से काम नहीं करता। नतीजा ये होता है कि चीतों की सही मॉनिटरिंग ही नहीं हो पा रही है।  कब कोई चीता खाना छोड़ देता है या कब कोई बीमार हो जाता है, इसकी तुरंत जानकारी होने में देर हो रही है। जिससे इलाज में देरी हो रही है।





    'कूनो में अभी तक चीतों की स्पेशलिटी वाला वेटेरनरी हॉस्पिटल नहीं'





    अजय दुबे ने इस बात पर भी अचरज जताया कि भले ही सरकार बोल रही है कि कूनो में चीतों की देखभाल के लिए विशेषज्ञ पशु चिकित्स्क हैं, लेकिन इतने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट होने के बावजूद कूनो नेशनल पार्क में अभी तक चीतों की स्पेशलिटी वाला वेटेरनरी हॉस्पिटल नहीं बनाया गया है।  और शायद यही कारण है कि जब भी कोई चीता बीमार होता है तो उसके ट्रीटमेंट के लिए भोपाल और जबलपुर वेटनरी हॉस्पिटल से डॉक्टर्स जाते हैं और इसमें वक़्त लगता है। जिससे चीतों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा और उनकी मौत हो रही है।





    कूनो नेशनल पार्क में चीतों को लाने से पहले सरकार और अधिकारियों ने दावा किया था कि चीतों की निगरानी के लिए उनके पास निचले स्तर से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक बैठे विशेषज्ञ और अति सूक्ष्म स्तर की निगरानी टेक्नोलॉजी है। साथ ही चीतों के हाव भाव समझने के लिए अधिकारियों प्रशिक्षित किये गए हैं। जबकि जो स्थिति है उससे तो यही साबित होता है कि गंभीर रूप से बीमार होते चीतों पर भी प्रबंधन की नज़र तब जा रही है जब उनकी अंतिम सांस चलने लगती है। जिस तरह से पिछले 4-5 माह में एक के बाद एक 8 चीतों की मौत के मामले सामने आए हैं उससे ये सरकार अउ रकूनो प्रबंधन की तथाकथित निगरानी व्यवस्था पूरी तरह से सवालों के घेरे में है।





    मीडिया से दूरी का आदेश





    वहीं कूनो में चीतों की लगातार मौत के बाद उठ रहे सवालों के बीच कूनो नेशनल पार्क में मीडिया प्रोटोकॉल लागू कर दिया गया है। पार्क प्रबंधन से जुड़े लोग अब मीडिया से बात नहीं कर सकेंगे और केवल PCCF वाइल्डलाइफ, चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन और प्रोजेक्ट चीता से जुड़े अधिकारी ही मीडिया ब्रीफिंग कर सकेंगे। यही नहीं, अब कूनो से जुड़े सिर्फ लिखित बयान ही जारी होंगे।





    बता दें कि देश में चीतों की आबादी को फिर से बसाने के एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के तहत 8 चीतों को नामीबिया से कूनो नेशनल पार्क लाया गया था। और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल 17 सितंबर को इन्हे विशेष बाड़ों में छोड़ा था। इनमें 5 मादा और 3 नर चीते शामिल थे। इसके बाद 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते, 7 नर और 5 मादा कूनो पार्क लाए गए थे। इसके बाद चीता ज्वाला ने इसी साल मार्च में कूनो में चार शावकों को जन्म दिया। दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से लाए गए कुल 20 चीतों में पांच की मौत हो चुकी है। इसके अलावा यहां पैदा हुए चार शावक में से तीन शावक भी दम तोड़ चुके हैं। 



     



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