अनुदान के भरोसे खिंच गई एक सदी, लेकिन भरतपुर में हिंदी साहित्य के खजाने पर अब लटक रही नीलामी की तलवार

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Rahul Garhwal
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अनुदान के भरोसे खिंच गई एक सदी, लेकिन भरतपुर में हिंदी साहित्य के खजाने पर अब लटक रही नीलामी की तलवार

मनीष गोधा, JAIPUR. पिछली एक शताब्दी से भी ज्यादा समय से पूरे उत्तर भारत में हिंदी साहित्य में ज्ञान के भंडार के रूप में पहचाने जाने वाली भरतपुर की हिंदी साहित्य समिति पर नीलामी की तलवार लटक रही है। कारण सिर्फ इतना है कि यहां के 2 कर्मचारियों को हिंदी साहित्य का ये खजाना वेतन नहीं दे पा रहा है। सरकार ने कोर्ट में समिति की सहायता का भरोसा देकर नीलामी एक महीने के लिए टाल तो ली है, लेकिन खतरा पूरी तरह टला नहीं है। हालांकि भरतपुर के साहित्य प्रेमियों को उम्मीद है कि अब क्योंकि मुख्यमंत्री भरतपुर से ही हैं, इसलिए कोई सकारात्मक हल निकल जाएगा।

हिंदी साहित्य समिति

हिंदी साहित्य समिति की स्थापना 13 अगस्त 1912 को पूर्व राजमाता मांजी गिर्राज कौर की प्रेरणा से की गई थी और इसे हिंदी भाषा एवं देवनागरी लिपि के उन्नयन, हिंदी साहित्य एवं भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं विकास और हिंदी के प्राचीन ग्रंथों को खोजकर उन्हें संग्रहित करने और उन्हें सुरक्षित रखने के प्रमुख उद्देश्य से की गई। समिति अपने जन्म के प्रारंभ से ही एक पुस्तकालय और एक वाचनालय का नियमित संचालन कर रही है। इस संस्था में हुए आयोजनों में सरोजनी नायडू, रविन्द्र नाथ टैगोर, मदन मोहन मालवीय, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, मोरारजी देसाई, जयप्रकाश नारायण, हरिभाऊ उपाध्याय, जैनेंद्र कुमार, रूस के हिन्दी विद्वान डॉ. बारान्निकोब, डॉ. सम्पूर्णानंद, मोहनलाल सुखाड़िया, हरिवंशराय बच्चन और डॉ. राममनोहर लोहिया जैसी विभूतियों की भागीदारी रही है।

साहित्य का खजाना

यहां 450 साल से भी पुरानी बेशकीमती 1500 पांडुलिपियां और तमाम साहित्य सुरक्षित हैं। समिति की जिस समय शुरुआत की गई, उस समय शहर के ही लोगों ने अपने घरों से 5 पुस्तक लाकर यहां पर रखी थी। बाद में धीरे-धीरे समिति का विस्तार होता गया और उत्तर भारत का प्रमुख पुस्तकालय बन गया। हिंदी साहित्य समिति पुस्तकालय में फिलहाल 44 विषयों की 33 हजार 363 पुस्तकें उपलब्ध हैं, जिनमें 450 साल पुरानी 1500 से ज्यादा बेशकीमती पांडुलिपियां शामिल हैं। समिति में वेद, संस्कृत, ज्ञान, उपनिषद, कर्मकांड, दर्शन शास्त्र, तंत्र मंत्र, पुराण, प्रवचन, रामायण, महाभारत, ज्योतिष, राजनीति शास्त्र, भूदान, अर्थशास्त्र, प्रश्न शास्त्र, पर्यावरण, ऋतिक ग्रंथ, काव्य, भूगोल, विदेशी इतिहास और भारतीय इतिहास से जुड़ी किताबें हैं।

अनुदान से चली समिति, अब वेतन का संकट

ये संस्था सालों तक दानदाताओं के सहयोग सरकार से मिल रहे अनुदान के भरोसे चलती रही। संस्था यहां आने वाले लोगों से साल का 100 रुपए सदस्यता शुल्क लेती थी। इसके अलावा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान और अन्य संस्थाओं से भी सहयोग मिलता था। बाद में राजस्थान सरकार के भाषा विभाग की ओर से भी अनुदान मिलने लगा था, लेकिन धीरे-धीरे इसमें कमी आती चली गई और अब संस्था आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है।

2 कर्मचारियों को 2003 से नहीं मिला वेतन

हिंदी साहित्य समिति के कर्मचारी त्रिलोकीनाथ शर्मा ने बताया कि यहां0 6 कर्मचारी कार्यरत थे, जिनमें से 4 कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वर्तमान में 2 कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनको 2003 से वेतन नहीं दिया गया था। इस वजह से कर्मचारियों को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। हालांकि कर्मचारियों को 2003 से अगस्त 2019 तक का वेतन न्यायालय के माध्यम से मिल गया था, लेकिन अब फिर सितंबर 2019 से 1.19 करोड़ रुपए का वेतन बकाया है। इसी को लेकर न्यायालय की ओर से नीलामी का नोटिस दिया गया था। कोर्ट ने नीलामी की तारीख 16 जनवरी तय की थी, जिसे सरकार ने एक महीने के लिए टाल दिया है।

कोर्ट ने दिया नीलामी का नोटिस

त्रिलोकीनाथ ने बताया कि पिछले साल सरकार ने समिति को टेकओवर तो कर लिया है और कर्मचारियों को भी सरकारी सेवा में शामिल करने का भरोसा दिया गया है, लेकिन इसे लेकर अभी तक आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई है। वेतन भी अटका हुआ है, इसी के चलते न्यायालय ने नीलामी का नोटिस दिया है।

सीएम भजनलाल शर्मा से उम्मीद

भरतपुर के साहित्य प्रेमी और वरिष्ठ पत्रकार पुनीत उपाध्याय का कहना है कि ये संस्था सिर्फ भरतपुर ही नहीं बल्कि पूरे देश में हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण संस्था है। इसे सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिए सरकार को जो भी कदम उठाना पड़े वो उठाना चाहिए। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भरतपुर से ही हैं। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि इस संस्था को संरक्षित रखने के वे पूरे प्रयास करेंगे।

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