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BHILAI. आईआईटी भिलाई के वैज्ञानिकों ने ऐसा आविष्कार किया है। जिससे अब डायबिटीज के मरीजों को 12 घंटे में नहीं बल्कि 2 दिनों के अंतर में इंसुलिन ले सकेंगे, इस इंसुलिन का नाम स्मार्ट इंसुलिन है, डायबिटीज के मरीजों की इंसुलिन लेने में होने वाली दिक्कतों को देखते यह दवा बनाई है। इसे जेल फार्म में बनाया गया है, जो बाजार में उपलब्ध दवा के रेट से आधे दाम में मिलेगी। बाजार में उपलब्ध एक इंसुलिन का एंपुल (इंजेक्शन) 12 घंटे चलता है। यह दवा 48 घंटे तक चलेगी। इसमें नैनो पार्टिकल चाइटोसेम मिलाई गई है। यह दवा को बराबर मात्रा में लेकिन धीरे-धीरे शरीर में रिलीज करता है। इससे दवा की अवधि चार गुना बढ़ जाती है। यह शोध आईआईटी भिलाई, एचडीएफसी-सीएसआर अनुदान, डीएसटी और डीबीटी इनोवेटिव यंग बायोटेक्नोलॉजिस्ट अवार्ड द्वारा किया गया है।
ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन पर निर्भर रहते हैं मरीज
इस भागदौड़ की जिंदगी में ज्यादातर लोग अपने दिनचर्या और शरीर को वह जरूरी आहार नहीं दे पाते, जिसकी वजह से हमारे शरीर में कई तरह की बीमारियां जन्म लेने लगती है। उन्हीं बीमारियों में से एक बीमारी डायबिटीज है, डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जिससे राहत पाने के लिए हर 12 घंटे में इंसुलिन लेने की जरूरत पड़ती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार डायबीटीज लोगों कि मौत का प्रमुख कारणों में से एक हो सकता है और आने वाले दशकों में यह एक वैश्विक महामारी बन सकती है. टाइप 1 और उन्नत चरण के टाइप 2 डायबीटीज के सभी मरीज ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन पर निर्भर रहते हैं। एक हार्मोन जो आम तौर पर अग्न्याशय द्वारा स्रावित होता है, अक्सर यह इंजेक्शन के माध्यम से किया जाता है जिसे रोज लगाने की जरूरत होती है।
वैज्ञानिकों ने किया स्मार्ट इंसुलिन का आविष्कार
यह प्रक्रिया रोगी के लिए असुविधाजनक और दर्दनाक है और इससे हाइपोग्लाइसीमिया या लो ब्लड शुगर लेवल का खतरा भी होता है, जो घातक हो सकता है। आईआईटी भिलाई के रसायन विज्ञान विभाग के डॉ. सुचेतन पाल के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने शिव नादर विवि के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर नई दवा की खोज की है। उन्होंने बताया कि अभी तक एंपुल लिक्विड फार्म में है। उसे हमने जेल फार्म में बनाया है। इससे उसकी गुणवत्ता और अवधि दोनों बढ़ गई है। इससे डायबिटीज के उपचार में काफी संभावनाएं बढ़ गई हैं।
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आईआईटी ने दवा को 'स्मार्ट इंसुलिन' नाम दिया
इस अध्ययन में विकसित सामग्री दो दिनों के लिए इंसुलिन जारी करती है। जबकि नियमित इंसुलिन 12 घंटे तक काम करता है। वहीं मानव परीक्षण में जाने से पहले इसे डायबीटिक चूहों में परीक्षण कर के देखा गया था। यदि मानव परीक्षण सफल होता है तो रोगियों के इंसुलिन इंजेक्शन की आवृत्ति कम हो जाएगी और उनके स्वास्थ्य में सुधार की संभावना होगी। इस फॉर्मूलेशन का मूल्यांकन कम लागत और लंबे समय तक काम करने वाले इंसुलिन और मनुष्यों में संभावित कृत्रिम अग्न्याशय के लिए किया जाएगा।
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