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संजय गुप्ता, INDORE. जलूद सोलर प्लांट के लिए नगर निगम इंदौर ने देश में पहली बार ग्रीन बॉन्ड जारी कर फरवरी माह में 244 करोड़ रुपए जुटाए थे, लेकिन प्रोजेक्ट में देरी के चलते ये राशि कम पड़ रही है। इस प्लांट के लिए फाइनल हुए दिल्ली की कंपनी के टेंडर की राशि 356 करोड़ रुपए है। जो निगम पहले मान कर चल रहा था कि यह 300 से 310 करोड़ रुपए के करीब ही होगी। इस राशि के बढ़ने से निगम को अब करीब 30 करोड़ राशि अपनी जेब से लगानी होगी।
इस तरह जेब से लगेगी राशि
ग्रीन बॉन्ड के लिए भारी डिमांड रही और 244 करोड़ के बदले 3 गुना से ज्यादा आवेदन आ गए। यानी निगम चाहती तो आसानी से और अधिक राशि ले सकती थी। लेकिन निगम का गणित था कि 244 करोड़ बॉन्ड से, 42 करोड़ रुपए केंद्र से राशि मिलेगी और अन्य मदद इस तरह ये प्लांट 300 करोड़ के करीब में लग जाएगा और अधिक राशि की जरूरत नहीं होगी। लेकिन अब 42 करोड़ की केंद्र की मदद के साथ ग्रीन बॉन्ड से आई 244 करोड़ की राशि बैंक में रखने से आए करीब 20 करोड़ के ब्याज और अन्य राशि के बाद भी करीब 30 करोड़ की राशि कम पड़ेगी जो निगम को अपने फंड से देनी होगी।
सोलर प्लांट के लिए ये तय हुआ है
जलूद में 60 मेगावॉट का सोलर प्लांट दिल्ली की रेस्ट पॉवर का टेंडर मंजूर किया गया है। 356 करोड़ रुपए में टेंडर फाइनल हुआ है। कंपनी को 18 महीने में काम पूरा करना होगा। 10 साल तक मेंटेनेंस की जिम्मेदारी भी कंपनी के पास ही रहेगी। स्मार्ट सिटी कंपनी 90 फीसदी राशि 18 महीने में देगी। इसके बाद बची राशि 10 साल की अवधि में देंगे। प्लांट के लिए संभवत: सितंबर में भूमिपूजन हो सकता है।
हर महीने पानी लाने में 25 करोड़ की बिजली लगती है
जलूद का पंप 24 घंटे चलता है और हर महीने यहां से शहर में पानी सप्लाई के लिए 25 करोड़ रुपए की बिजली लगती है यानी साल भर में 300 करोड़ की बिजली लगती है। इस सोलर प्लांट के बाद हर महीने करीब 5 करोड़ की यानी सालभर में 60 करोड़ की बिजली बचेगी। लेकिन 60 मेगावाट स्थापित होने में समय लगेगा, इसलिए ऐसे में जरूरी होगा कि कम से कंपनी 15-15 मेगावाट पहले स्थापित करते चले और एक्टिव करते जाए, जिससे धीरे-धीरे बिजली बिल कम होने लगेगा।
निवेशकों का बॉन्ड में निवेश सुरक्षित
हालांकि इस देरी के बाद भी निवेशकों की निवेश राशि सुरक्षित है, वे चाहें तो अपने बॉन्ड खुले बाजार में बेच सकते हैं नहीं तो इस पर तय ब्याज दर तो निगम ने देने का वादा किया है। इस राशि को लौटाने का प्रावधान पहले ही कर दिया गया है और निगम के संपत्ति कर को लायबिलिटी से जोड़ दिया गया है यानी संपत्ति कर में से एक तय राशि जो निवेशकों को ब्याज के तौर पर देना है वो अलग ही रहेगी और इस पर निगम का अधिकार नहीं रहेगा। इस तरह निवेशकों का निवेश सुरक्षित रहेगा।