इंदौर हुकुमचंद मिल मजदूरों की फिर टूटी आस, दो दिन सुनवाई के बाद भी खाली रहे हाथ, अब अगस्त में लगी तारीख

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Jitendra Shrivastava
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इंदौर हुकुमचंद मिल मजदूरों की फिर टूटी आस, दो दिन सुनवाई के बाद भी खाली रहे हाथ, अब अगस्त में लगी तारीख

संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर में दिसंबर 1991 को बंद हुई हुकमचंद मिल के कर्मचारी, मजूदरों की आस मंगलवार को एक बार फिर टूट गई। दो दिन हाईकोर्ट इंदौर बेंच में लगातार सुनवाई चली, उन्हें उम्मीद थी कि अब राहत मिल जाएगी, लेकिन सुनवाई आगे बढ़ गई और तारीख भी लंबी लगी है, अब सात अगस्त की तारीख मिली है। उधर मजदूरों को आशंका है कि जल्द निराकरण नहीं हुआ था फिर आचार संहिता लग जाएगी और इस मामले में शासन एक बार फिर चुप्पी साध लेगा। वहीं मप्र शासन हाईकोर्ट में यही कह रहा है कि हम इनके बकाया 174 करोड़ देने के लिए तैयार है, लेकिन ब्याज को लेकर बात चल रही है और बैंकों का भी निराकरण के लिए चर्चाएं हो रही है। वहीं मजदूरों का कहना है कि हम केवल 88 करोड़ ब्याज मांग रहे हैं और शहर व शासन हित में पहले ही 92 करोड़ का ब्याज छोड़ने के लिए तैयार है, लेकिन हमारा निराकरण तो हो।



बैंकों पर और कंपनी मालिक के बकाया पर लंबी चली बहस



मंगलवार को हुई बहस के दौरान मुंबई की एक कंपनी का मामला भी आ गया, जिसमें बताया गया कि उन्होंने हुकुमचंद मिल को 15 लाख का कपड़े पर रंग करने के लिए दिया था, इसका भी भुगतान बाकी है। वहीं बैंकों द्वारा दिए गए लोन में एक बैंक पूरी राशि लेने पर अड़ा हुआ है जिस पर लंबी बहस चली। ऐसे में मजूदरों के बकाया को लेकर अधिक बात ही नहीं हो सकी। मजूदर नेता नरेंद्र श्रीवंश ने कहा कि अब हम थकने लगे हैं, हजारों की जान चली गई है, कई आत्महत्या कर चुके हैं, क्या सरकार अब हमारे मरने की राह देख रही है क्या? आखिर इस राशि के लिए 32 साल का इंतजार हो गया है, कब देंगे हमें यह राशि? जल्द ही बैठक कर अब आंदोलन को लेकर बात करेंगे। 



करीब छह हजार मजूदरों का है बकाया



हुकुमचंद मिल मजदूर कर्मचारी अधिकारी समिति के अध्यक्ष नरेंद्र श्रीवंश ने बताया कि जब मिल बंद हुई तब मिल में 6000 श्रमिक, कर्मचारी कार्य करते थे। अभी तक 2200 से अधिक श्रमिक, कर्मचारियों का दुखद निधन हो गया तथा 69 श्रमिकों ने बेरोजगारी महंगाई से तंग आकर आत्महत्या कर चुके हैं। साथ ही  200 से अधिक बुजुर्ग श्रमिक पैरालिसिस व गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं और यहां तक की कुछ श्रमिक भीख मांगकर अपना गुजर बसर कर रहे हैं मिल बंदी के बाद शहर के किसी भी जनप्रतिनिधियों ने मिल श्रमिकों के लिए कुछ भी नहीं किया। श्रीवंश ने बताया की जब मिल चालू थी तब मिल मैनेजमेंट ने बैंकों से मात्र 17 करोड़ रुपए कर्ज लिया था किंतु मिल बंदी के बाद बैंकों ने ब्याज पर ब्याज यहां तक की चक्रवर्ती ब्याज लगाकर अगस्त 2007 तक 169 करोड़ उच्च न्यायालय से मंजूर करवाएं और सभी बैंक अभी तक का ब्याज भी मांग रहे हैं। जब बैंकों को ब्याज सहित पैसा मिल रहा है तो मजदूरों को क्यों जबकि उज्जैन की विनोद विमल मिल को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उनकी क्लेम राशि के साथ ब्याज भी दिया जा रहा है।



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अभी तक मिल मामले में यह हुआ



हुकुमचंद मिल पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश से दिनांक 20/7/2001 को शासकीय परिसमापक अधिकारी कि नियुक्ति हुई तथा 6 अगस्त 2007 को मिल के श्रमिकों की ग्रेजूटी की राशि 229 करोड़ों रुपए स्वीकृत हुई 3 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से 50 करोड़ रुपए का चेक शासकीय परिसमापक अधिकारी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के पास जमा किया गया अभी तक शासन की और से और सुप्रीम कोर्ट के आदेश से केवल 50 करोड़ रुपए ही श्रमिकों को मिल पाएं हैं। मिल की 42 एकड़ से अधिक जमीन जो आज बाजार मूल्य से 15 सौ करोड़ रुपए मूल्य की है शासन मिल की जमीन लेना चाहता है। हालांकि, सरकारी वैल्यूशन इसका करीब सवा पांच सौ करोड़ रुपए हुआ है।  इसके पहले निगम ने यहां आईटी पार्क बनाने का फैसला लिया था, इसमें जो राशि आएगी उससे मजदूरों को भुगतान होगा। लेकिन बाद में फिर हाउसिंग बोर्ड का प्रस्ताव आया यहां आवासीय टाउनशिप विकसित करने का। अभी हुकम चंद मिल श्रमिकों की देनदारियों के लिए मध्य प्रदेश गृह निर्माण और अधोसंरचना विकास मंडल भोपाल, आयुक्त चंद्रमौली शुक्ला ने हुकुमचंद मिल के श्रमिकों केवल श्रमिकों की मंजूर क्लेम राशि देने की है।


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