इंदौर एसडीएम धनगर की बाल आश्रम सील करने की कार्रवाई उलझी, हाईकोर्ट ने हैबियस कॉर्पस याचिका पर प्रशासन से दो दिन में मांगा जवाब

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Pooja Kumari
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इंदौर एसडीएम धनगर की बाल आश्रम सील करने की कार्रवाई उलझी, हाईकोर्ट ने हैबियस कॉर्पस याचिका पर प्रशासन से दो दिन में मांगा जवाब


संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर जिला प्रशासन जूनी इंदौर एसडीएम घनश्याम धनगर द्वारा विजय नगर स्थित ‘वात्सल्यपुरम बाल आश्रम’ सील करने की कार्रवाई उलझ गई है। हाईकोर्ट में इस मामले में आश्रम की ओर से बंदीप्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) याचिका दायर हुई, जिस पर रविवार को अर्जेंट सुनवाई हुई। इसमें हाईकोर्ट ने प्रशासन से दो दिन के भीतर इस कार्रवाई का आधार, जांच रिपोर्ट व अन्य सभी दस्तावेज मांगे हैं। सुनवाई 17 जनवरी को फिर होगी।

यह बताते हुए प्रशासन ने की कार्रवाई

जिला प्रशासन ने शहर में बिना अनुमति और बिना रजिस्ट्रेशन के संचालन की जानकारी मिलने पर शुक्रवार को एसडीएम जूनी इंदौर घनश्याम धनगर के नेृतत्व में महिला एवं बाल विकास विभाग, शिक्षा विभाग, बाल कल्याण समिति एवं बाल संरक्षण अधिकारियों की टीम ने वहां निरीक्षण किया। निरीक्षण में पाया गया कि संस्था में 25 बच्चियां रजिस्टर्ड हैं जो 12 वर्ष से कम आयु की है। इसमें पांच बच्चियां अनाथ हैं। एसडीएम ने बताया कि संस्था का जेजे एक्ट की धारा-41 के तहत रजिस्ट्रेशन का कोई भी दस्तावेज नहीं पाया गया और न ही बाल आश्रम संचालित करने की कोई अनुमति पाई गई। संस्था में सुरक्षा तथा दस्तावेजों में कई कमियां पाई गई। अधिकारियों द्वारा संस्था के सभी दस्तावेज जब्त कर संस्था को सील कर दिया गया है। इसके साथ ही आश्रम की सभी बच्चियों को रेस्क्यू कर मेडिकल कराने के बाद राजकीय बाल आश्रम एवं जीवन ज्योति बालिका गृह में भेजा गया है।

निगम में रजिस्टर्ड है आश्रम, धारा 41 के दायरे में ही नहीं

वहीं याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विभोर खंडेलवाल ने जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की बेंच में बताया कि आश्रम पर धारा 41 लागू ही नहीं होती है इसलिए इसके तहत रजिस्ट्रेशन की जरूरत ही नहीं है। आश्रम निगम में रजिस्टर्ड है और उसका रजिस्ट्रेशन भी पेश किया गया। साथ ही बताया गया कि आश्रम में गरीब बच्चों को और जिनके कोई नहीं हैं गार्जियन है उन्हें रखा गया है ना कि अनाथ बच्चों को, सभी से मासिक पांच रुपए फीस ली जाती है। संस्था के देश भर में 13 आश्रम इस तरह गरीबों की मदद के लिए चल रहे हैं। सभी अभिभावक अपने बच्चों के लिए परेशान हो रहे हैं और यह सीधे-सीधे किडनैपिंग है। कार्रवाई से पहले कोई नोटिस नहीं दिया गया है, ना जांच की गई है। बच्चों से अभिभावकों को मिलने नहीं दिया जा रहा है। सभी तर्क सुनने के बाद बेंच ने अभिभावकों को बच्चों से मिलने देने के निर्देश दिए और साथ ही प्रशासन से पूरी कार्रवाई का आधार, जांच रिपोर्ट व अन्य दस्तावेज मांगे हैं।

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