संजय गुप्ता, Indore. इंदौर गुरूसिंघ सभा के चुनाव 13 अगस्त को संभावित है इस चुनाव में पहली बार अमृतधारी सिख होने का मुद्दा गरमा गया है। यदि अकाल तख्त के नियमों का पालन हुआ तो मोनू (हरपाल सिंह) भाटिया और उनकी पैनल के सुरजीत सिंह टूटेजा जो सचिव पद की दावेदारी कर रहे हैं, खालसा पैनल से प्रधान पद के संभावित दावेदार प्रितपाल (बंटी) भाटिया सहित कई दावेदार बाहर हो जाएंगे। हालांकि वर्तमान प्रधान रिंकू भाटिया और सचिव जसबीर सिंह गांधी को इसका अप्रत्यक्ष तौर पर लाभ मिल सकता है। हालांकि रिंकू भाटिया शराब कारोबारी हैं, ऐसे में ये सवाल भी खड़ा होगा कि जब नियमों में शराब पीना प्रतिबंधित है तो शराब का कारोबार करना क्यों नहीं। वहीं दूसरा बड़ा सवाल ये है कि सहजधारी सिक्खों का क्या होगा, क्या वे कभी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे या फिर वे सिक्ख की जमात से ही बाहर हैं। इसे लेकर भी नई बहस छिड़ सकती है।
चरणजीत सिंह खनूजा ने फेसबुक वॉल पर एक पोस्ट डालकर कहा कि मैंने अमृतपान नहीं किया है, इसलिए मैं गुरूसिंघ सभा का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हूं। मैं घोषणा करता हूं कि जब तक मैं मर्यादा का पालन नहीं करता, तब तक मैं चुनाव नहीं लडूंगा। खनूजा ने द सूत्र को बताया कि जो रहत यानी अनुशासन मर्यादा का पालन नहीं करते, अमृतधारी नहीं, शराब गुटके का सेवन भी करते हैं, साबुत सूरत भी नहीं, वे श्री गुरुसिंघ सभा का चुनाव न लड़ें। समाज के काम में वही आगे आने चाहिए, जिन्होंने अमृतपान किया हो। जो इन नियमों का पालन नहीं करते, उन्हें चुनाव लड़ने का भी हक नहीं है।
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क्या होते हैं अमृतधारी सिख?
एक सिख जिसने अमृत पान किया है और सभी पांच ककार को खालसा (‘‘शुद्ध‘‘) या अमृतधारी सिख (‘‘अमृत संस्कार प्रतिभागी‘‘) के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि, पांच ककार धारण करने वाला ही पूर्ण सिख होता है। एक ऐसा सिख जिसने गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिए गए ‘खंडे बाटे’ का अमृत पान किया हो और नियमों के अनुसार सिख धर्म की मान्यताओं का पालन करता हो। साथ ही अमृतधारी सिख हमेशा पांच ककार धारण करता है, जो कि कंघा, कड़ा, कच्छहरा (कच्छा), किरपान (कृपाण), केस (बाल) है। ऐसा माना जाता है कि, गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था कि, एक सच्चे अमृतधारी सिख को इन सभी ककारों को धारण करना चाहिए। अमृतधारी सिख शराब, तंबाकू व अन्य नशे के सेवन से दूर रहते हैं, परस्त्री का हरण नहीं करते हैं, पांचों समय गुरुमुखी का वाचन करते हैं और अपने केशव की बेइज्जती (उन्हें रंगना, कटाना, ट्रीम करना आदि) भी नहीं करते हैं।
श्री अकाल तख्त साहिब श्री का दस साल पुराना आदेश भी है
श्री अकाल तख्त साहिब श्री द्वारा 28 नवंबर नंवबर 2013 में आदेश भी जारी किया था। इसमें है कि- गुरुद्वारा साहिबों की जो कमेटियां गुरूद्वारा साहिब का संपूर्ण प्रबंधन देखती हों, उन कमेटियों में वही सदस्य हो सकते हैं, जिनके नाम के बाद सिंह, सिद्ध और अमृतधारी लगे हों। गुरू नानक नाम लेवा की संगत को इस आदेश का पालन करना चाहिए। बीते चुनाव में यह आदेश नहीं आया था, क्योंकि उसके पहले ही चुनाव हो चुके थे। यदि चुनाव अधिकारी और कमेटी इस आदेश को पालन कराने की बात कहते हैं तो कई दावेदारों के लिए मुश्किल हो जाएगी, उन्हें या तो पीछे हटना होगा या फिर अमृतधारी होने की घोषणा करना होगा।