सीनियर नेताओं के बीच में फंसे जीतू पटवारी, मिलेगा फ्री हैंड या बढ़ेगी मुश्किल?

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Vikram Jain
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सीनियर नेताओं के बीच में फंसे जीतू पटवारी, मिलेगा फ्री हैंड या बढ़ेगी मुश्किल?

BHOPAL. कांग्रेस का युवा चेहरा और एमपी के दिग्गज नेताओं में शामिल जीतू पटवारी जो कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष हैं। विधानसभा चुनाव में हारने के बावजूद पार्टी ने उनकी कीमत समझी है और उनका एहतराम कायम रखा है, एक तरफ दिग्विजय सिंह हैं और दूसरी तरफ कमलनाथ हैं।

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क्या ये तस्वीर आपके जेहन में कुछ सवाल नहीं जगाती, अगर आप आज भी कांग्रेस के वोटर हैं या कभी कांग्रेस के वोटर या शुभ चिंतक रहे हैं तो इस तस्वीर को देखकर क्या पहला ख्याल आपके मन में आता है, वो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताइए। तब तक मैं आपको बताता हूं कि इस तस्वीर की गहराई में क्या छिपा है। उसे राज कहेंगे या फिक्र कहेंगे ये आप ही तय करिएगा।

काश की ये तस्वीर किसी ऐसे मोबाइल फोन से ली गई होती जो एक साथ पूरे 360 डिग्री एंगल का नजारा कैप्चर कर पाता और उस गहराई को समझ पाना आपके लिए आसान हो जाता। खैर कैमरा जो देख पाया वही दिखा रहा है जो नहीं देख पाया, वो हम आपको बताते हैं।

कांग्रेस की पहली बैठक में शामिल हुए दिग्विजय सिंह और कमलनाथ

जीतू पटवारी के अध्यक्ष बनने के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी की राजनीतिक मामलों की समिति की यह पहली बैठक थी, तस्वीर उसी बैठक के समय ली गई है। ये तो आप जान ही गए कि जीतू पटवारी के एक तरफ दिग्गी राजा हैं तो दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ हैं। जिनकी प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी ही अब पटवारी संभाल रहे हैं। इन दोनों नेताओं के बीच जीतू पटवारी के अलावा राज्य के प्रभारी महामंत्री भंवर जितेन्द्र सिंह नजर आ रहे हैं, फिलहाल उनकी मुस्कान और जश्चर ये दिलासा तो दे ही रहा है कि उनके अलावा शेष तीनों नेताओं के बीच सब कुछ फील गुड ही चल रहा है, वैसे तीन को आप बखूबी जानते हैं। आपकी थोड़ा सी मुलाकात भंवर जितेंद्र सिंह से भी करवा देते है।

भंवर जितेंद्र सिंह बने प्रदेश प्रभारी

भंवर जितेन्द्र सिंह को गांधी परिवार के नजदीकी माना जाता है। वे राजस्थान के अलवर से सांसद रहे हैं, केन्द्र में कांग्रेस की सरकार रहते हुए स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। शाही राजपरिवार से आते हैं, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों के ही बेहद करीबी हैं। कर्नाटक में जब मुख्यमंत्री चयन की बात आई थी तब कांग्रेस पार्टी ने उन्हें ही पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था। कर्नाटक में इम्तिहान में वो कामयाब साबित हुए, अब मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी गई है, उन्हें पार्टी ने प्रदेश का प्रभारी बनाया है।

पहले सुरजेवाला को सौंपा गया था मध्यप्रदेश का प्रभार

ये जिम्मेदारी इस मायने में बड़ी है कि उन्हें दो पूर्व मुख्यमंत्री, दो पूर्व दिग्गज और प्रदेश में पैठ रखने वाले दो बड़े कांग्रेसी धुरंधरों के बीच तालमेल और संतुलन बनाना है। और ये भी सुनिश्चित करना है कि जीतू पटवारी, जो उन दोनों नेताओं के मुकाबले युवा ही कहे जा सकते हैं उन्हें फ्री हैंड भी दिलाए रखना है। इससे पहले यह जिम्मेदारी गांधी परिवार के ही करीबी रणदीप सिंह सुरजेवाला के पास थी। लेकिन, वे असफल हो गए, कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी हार के बाद सुरजेवाला अचानक पटल से अदृश्य हो गए, भंवर जितेंद्र सिंह उन्हीं की जगह प्रदेश की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

दो पुराने चेहरों को झटका, नए को मिली जिम्मेदारी

कांग्रेस ने बड़ा एक्सपेरिमेंट करते हुए दो पुराने चेहरों को एक झटके में दरकिनार किया है। उनकी जगह जीतू पटवारी सहित उमंग सिंगार और हेमंत कटारे को प्रदेश का चेहरा बना दिया है। उमंग सिंगार के पास विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी है। उमंग सिंघार यह उम्मीद कर सकते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पूरे समय विधानसभा में मौजूद नहीं रहेंगे। पिछली विधानसभा में भी कमलनाथ पूरे समय के लिए विधानसभा में मौजूद नहीं रहा करते थे। उनके बाद नेता प्रतिपक्ष बने गोविंद सिंह भी सरकार पर कोई बड़ा हमला बोलकर उसे घेर नहीं पाए थे। अब प्रतिपक्ष के नेता उमंग सिंघार हैं, उन्हें अपने दल के वरिष्ठ और नए सदस्यों को साधकर सरकार को घेरना है। ये काम तब भी आसान है, उन्हें राजनीतिक राह पर उनती मुश्किलों का सामना नहीं करना है। जितनी मुश्किलें प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी के सामन हैं।

कितनी मुश्किल जीतू पटवारी की डगर?

जीतू पटवारी के लिए मुश्किल ज्यादा हैं। वे पार्टी के अध्यक्ष हैं, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की गढ़ी हुई छवि से खुद को आजाद करना। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पिछले चार दशक से कांग्रेस को अपने हिसाब से चला रहे हैं, ये बात और है कि ये दोनों नेता सरकार बनाने और बचाने में साल 2018 के अलावा कोई महत्वपूर्ण योगदान नहीं दे पाए। मध्य प्रदेश कांग्रेस की राजनीति पर भी इन दोनों ही नेताओं का कब्जा रहा है। इस दौरान कांग्रेस की छवि गुटबाजी, परिवारवादी पार्टी की बन चुकी है। कांग्रेस सरकार पर बंटाधार की इमेज भारी है। कमनलाथ सरकार के 15 महीने भी कांग्रेस के लिए प्लस पॉइंट साबित नहीं हो सके हैं। गुटबाजी का आलम ये है कि टिकट वितरण में भी मतभेद छिप नहीं सके और चुनाव होने से पहले ही दिग्गज नेताओं का एकदूसरे से मनमुटाव सतह पर आ गया। दोनों नेता अपने समर्थकों को टिकट दिलाने की जिद पर अड़े रहे। अपना दबदबा साबित करने के लिए ऐनवक्त पर टिकट बदलने से भी गुरेज नहीं किया। अब जीतू पटवारी के सामने सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि सिर्फ तीन से चार माह बाद होने वाल चुनाव के लिए उन्हें जिताऊ चेहरे ढूंढने हैं। न सिर्फ इतना बल्कि उन्हें जनता के मुद्दे भी बहुत जोरशोर से उठाने हैं ताकि जनता के बीच विश्वास कायम कर सकें, गुटबाजी और मतभेदों को दूर कर ये जाहिर करना है कि अब कांग्रेस एक छत के तले है, कम से कम एकता का संदेश न दे सकें तो अनुशासन का संदेश तो देना ही होगा।

दोनों के प्रभाव से कैसे बाहर निकलेंगे पटवारी?

ये भी तय है कि ये दोनों नेता अपने अपने गुटों को आगे करने से बाज नहीं आएंगे। जबकि जीतू पटवारी का अपना कोई मजबूत गुट नहीं है। और अगर होता तो भी वो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के गुट का सामना नहीं कर पाते। मुश्किलें इतनी ही नहीं है। जीतू पटवारी को कुछ रटे रटाये जवाबों से अलग राह तलाशनी है। हार के बाद ईवीएम पर ठीकरा फोड़ना, ईडी और सीबीआई का रोना रोना या सबोटेज का रट्टा लगाए रखना अब कांग्रेस का पुराना ढर्रा हो चुका है। हार की भी असल वजह तलाशना उन्हीं की जिम्मेदारी होगी। आमतौर पर एंटी इंकंबेंसी सत्ता के खिलाफ होती है, लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस इस कदर एंटीइंकंबेंसी का शिकार है कि लाख कोशिशों का बावजूद सत्ता पर काबिज नहीं हो पा रही।

जीतू पटवारी के हर कदम पर होगी दिग्गज नेताओं की नजर?

अब एक बार फिर उसी तस्वीर का रुख करते हैं जिसकी चर्चा शुरुआत में हुई थी। ये तस्वीर जीतू पटवारी की इच्छा हो या न हो मजबूरी जरूरी है। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की वजह से भले ही इस बार कांग्रेस बड़े घाटे में रही हो लेकिन पटवारी उन्हें दरकिनार नहीं कर सकते, इस तस्वीर में भी दिग्विजय सिंह की निगाहें जीतू पटवारी पर ही जमी हैं। ये उन्हें मान लेना चाहिए कि उनके हर कदम पर ये दो जोड़ निगाहें लगी ही रहेंगी। उनकी एक गलती से राई का पहाड़ भी खड़ा हो सकता है, पर उन्हें तो खुद को साबित करना ही होगा। लोकसभा में कांग्रेस को आगे बढ़ाना या फिर कम से कम सीटें जस की तस रखना भी उनके लिए बड़ी उपलब्धि ही साबित होगा।

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