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संजय गुप्ता, INDORE. आदिवासी बच्चियों के होस्टल में दौरा करने के दौरान गलत हरकत करने के आरोप में मंगलवार को गिरफ्तार और फिर बुधवार को जमानत पर रिहा हुए झाबुआ के एसडीएम सुनील कुमार झा को इस पूरे मामले में षड़यंत्र की बू आ रही है। उन्होंने 'द सूत्र' से चर्चा में कहा कि एसडीएम रहते हुए कई लोगों के काम आते हैं, कुछ कर पाते हैं और कई लोगों को मना भी करना होता है। किसने यह सब साजिश की, यह भी जांच का विषय है। पुलिस को इसकी भी जांच करना चाहिए। मेरा पक्ष तो किसी ने सुना ही नहीं और सीधे मंगलवार को एफआईआर की और गिरफ्तार कर लिया, कोर्ट ने मेरी बात सुनी और जमानत दी और आगे भी कोर्ट में अपनी बात रखूंगा।
एक घंटे में किया दौरा, इसके लिए लिखे थे नेगेटिव रिमार्क
द सूत्र को उन्होंने कहा कि शनिवार को कलेक्टर ने मुझे होस्टलों की जांच का आदेश दिया, इसके बाद रविवार को दोपहर साढ़े तीन से पांच बजे के बीच मैंने तीन होस्टलों का दौरा किया। एक होस्टल में बड़ी युवतियों का था, दूसरा किशोरियों का और तीसरा यह बच्चियों का था। बच्चियों के होस्टल में कई सुविधाएं उचित नहीं थी, जिस पर मैंने मौखिक तौर पर आपत्ति ली और पलंग आदि की सही व्यवस्था नहीं होने की नेगेटिव रिमार्क कर रिपोर्ट भी कलेक्टर को दी थी। अब किसी को किस बात का बुरा लगा इसकी मुझे जानकारी नहीं है।
साथ में गए अधिकारियों ने दिया शपथपत्र, जो बने जमानत के आधार
कोर्ट में झा के साथ निरीक्षण पर गए एपीसी ज्ञानेंद्र ओझा, ड्राइवर पंकज और होमगार्ड सैनिक अमरसिंह हुडवे के भी शपथपत्र पेश किए गए थे, जिसमें था कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई, हम पूरे निरीक्षण में साथ थे। यह भी बात आई कि जो एफआईआर में लिखा है कि बाल सूंघकर तेल का पूछा, सेनेटरी पैड का पूछा गया, इस पर उनके अधिवक्ता ने कोर्ट में बताया कि वह निरीक्षण में सभी सामग्रियों की क्वालिटी व अन्य जानकारी लेने गए थे और इसी के संबंध में यह सवाल पूछे गए थे। इसमें गलत कुछ भी नहीं है और गलत केस दर्ज हुआ है।
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सभी धाराओं में सात साल से कम की सजा, इसलिए भी जमानत
एसडीएम झा पर जो धाराएं लगी है, इसमें 354, 354 (क) के साथ ही पाक्सो की 11 व 12 धारा व एसटीएससी एक्ट की धाराएं लगी है। 354 व 354 क में अधिकतम पांच साल की और पाक्सो की इन धाराओं में अधिकतम तीन साल की सजा है। सात साल से कम की सजा वाली धाराओं के चलते भी उन्हें राहत मिल सकी है। वहीं जमानत के आधार यह भी कि वह बुरहानपुर ट्रांसफर होने के चलते अब सबूत को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं है और दूसरा सरकारी अधिकारी होने के चलते उनके भागने की आशंका भी नहीं है। इन सभी के चलते जमानत मिली है।