संजय शर्मा, BHOPAL. जनता के लिए जनता का शासन की भावना को अब हमारी सरकार भूलती जा रही है। हम ये यूं ही नहीं कह रहे बल्कि इसके पीछे ठोस तथ्य भी आपके सामने रख रहे हैं। सरकार जिस धन से व्यवस्था और जन कल्याण की योजनाओं को चलाती है वो राशि जनता के टैक्स से जमा की जाती है। यानी हमारी सरकार हमारे रुपए से चलती है, लेकिन सरकार जनता के धन की बेहिसाब बर्बादी करने पर उतर आई है। जनवरी में प्रदेश की कमान संभालने वाली सीएम मोहन यादव की सरकार भी इसमें पीछे नहीं है। विज्ञापनों पर 22 दिन में 15 करोड़ से ज्यादा खर्च कर चुकी है। वहीं विधायकों को हर महीने 10 हजार रुपए टेलीफोन भत्ता दिया जा रहा है।
विधायकों को टेलीफोन भत्ता
जनता द्वारा चुने गए विधायकों को हर महीने 10 हजार रुपए टेलीफोन भत्ता दिया जाता है। प्रदेश में हर महीने 230 विधायकों को दिए जाने वाले टेलीफोन भत्ते पर 23 लाख रुपए से ज्यादा राशि खर्च की जा रही है। हमारा इरादा केवल ये आंकड़े बताना नहीं है। हम बताना चाहते हैं कि टेक्नोलॉजी और डिजिटलाइजेशन की ओर दौड़ रही है फिर टेलीफोन जैसी पिछड़ी और सुस्त व्यवस्था पर इतनी राशि क्यों खर्च की जा रही है। जबकि इससे कहीं कम खर्च में बेहतर और मल्टीयूज कम्युनिकेशन प्लान मिल सकते हैं।
भत्ता लेना किसे बुरा लगता है !
वैसे विधायक और मंत्री भी इन सेवाओं के बारे जानकारी रखते हैं फिर भी भत्ता लेना किसे बुरा लगता है, इसलिए टेलीफोन कनेक्शन तो चाहिए ही चाहिए। अब इस पर भी गौर कर लीजिए कि प्रदेश में टेलीकॉम कंपनियां 2 से 5 हजार रुपए में मल्टीपल यूज के लिए टैरिफ प्लान दे रही हैं, जिससे टीवी, लैंडलाइन और मोबाइल फोन के लिए सिम कार्ड भी देती हैं। फिर न जाने क्यों 10 हजार मासिक वाली टेलीफोन सेवा ही हमारे माननीयों को क्यों भाती है।
मोहन सरकार ने यशगान पर उड़ाए करोड़ों
मोहन सरकार ने जनवरी महीने के 22 दिनों में अपने यशगान पर 15 करोड़ रुपए से ज्यादा धन खर्च किया है। ये राशि सरकार ने अखबार और न्यूज चैनल पर विज्ञापन प्रसारण पर खर्च की है। इसमें वो राशि शामिल नहीं है जो शहरों में फ्लेक्स-होर्डिंग्स लगवाने पर उड़ाई गई है। जनवरी महीने में सरकार के गठन के बाद 22 दिनों में सीएम मोहन यादव की सरकार ने दैनिक भास्कर को ढाई करोड़, पत्रिका को सवा करोड़ और अन्य अखबारों को 3 करोड़ सहित कुल 7 करोड़ रुपए प्रिंट मीडिया पर खर्च किए हैं। इस राशि से फुल पेज और जैकेट एडवरटाइजमेंट अखबारों में कराया गया है। विभागों और योजनाओं के प्रचार के लिए जारी विज्ञापन की राशि इससे अलग है। वहीं न्यूज चैनल्स पर करीब 8 करोड़ रुपए के विज्ञापन दिए गए हैं। यानी सरकार ने बिना किसी जरूरत के केवल अपने चेहरे को चमकाने के लिए जनता की गाढ़ी कमाई के 15 करोड़ रुपए बर्बाद कर दिए। अब आप ही सोचिए क्या ये लोकतंत्र की भावना के अनुरूप सरकार का उचित आचरण है।