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MP NEWS: हैदराबाद से जबलपुर लाए गए 57 रेसिंग घोड़ों की एक के बाद एक हो रही मौतों का मामला अब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की कड़ी निगरानी में है। एनिमल एक्टिविस्ट सिमरन इस्सर ने इस मामले में जनहित याचिका दायर की थी।
गुरुवार को एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने सुनवाई की। याचिका में आरोप है कि घोड़ों को बिना चिकित्सा सुविधा और अनुमति के जबलपुर लाया गया। इसके चलते अब तक 12 घोड़े मर चुके हैं।
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800 पन्नों की याचिका पर 1600 पन्नों का जवाब
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता सिमरन इस्सर के वकील ने कोर्ट को जानकारी दी। उन्होंने बताया कि घोड़ों के साथ हो रही अमानवीयता पर 800 पन्नों की याचिका दायर की थी।
जवाब में राज्य सरकार और सचिन तिवारी ने कुल 1600 पन्ने दायर किए। इनमें से 800 पन्ने सचिन तिवारी और 800 पन्ने सरकार ने दायर किए। यह देश के हाईकोर्ट इतिहास में सबसे बड़े लिखित जवाबों में गिना जा रहा है।
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अदालत ने मांगी स्टेटस रिपोर्ट
हाईकोर्ट में सुनवाई से ठीक पहले सभी पक्षों ने अपने-अपने जवाब दाखिल किए। हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया कि वह अभी सिर्फ स्टेटस रिपोर्ट चाहती है, जिसमें वर्तमान में घोड़ों की हालत, इलाज की स्थिति और प्रशासन की निगरानी का विवरण हो।
कोर्ट ने हेथा नेट कंपनी को, जो कि कथित तौर पर इन घोड़ों की मालकिन है, जवाब दाखिल करने के लिए समय प्रदान किया। वहीं, हैदराबाद रेस कोर्स के घोड़ों की दौड़ कराने वाले सुरेश पलादुगु का जवाब भी अगली सुनवाई में पेश किया जाएगा।
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डॉक्टरों की टीम कर रही नियमित जांच
घोड़ों की जांच कर रही है। प्रत्येक रिपोर्ट शासन और राष्ट्रीय घोड़ा निगरानी समिति (National Horse Monitoring Committee) को भेजी जा रही है। सरकार ने यह भी बताया कि जबलपुर पहुंचने के बाद घोड़ों को एक बड़े फार्महाउस में रखा गया है, जहां उनके इलाज की पूरी व्यवस्था है।
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हैदराबाद से जबलपुर तक घोड़ों का विवादास्पद सफर
यह मामला 29 अप्रैल से 3 मई के बीच तब शुरू हुआ जब हैदराबाद के रेस कोर्स से 57 घोड़ों को जबलपुर लाया गया। इससे पहले, आरोप लगे थे कि हैदराबाद रेस कोर्स में इन घोड़ों का इस्तेमाल ऑनलाइन बेटिंग और सट्टेबाजी में किया जा रहा था। एनिमल एक्टिविस्ट कार्यकर्ताओं और कुछ स्थानीय संस्थाओं ने आरोप लगाए कि इन घोड़ों को सट्टे की मंडियों में झोंक कर बीमार हालत में जबलपुर लाया गया।
ग्लैण्डर बीमारी का साया
जबलपुर पहुंचने के बाद 8 घोड़ों की इलाज के दौरान मौत हो गई। प्रशासन ने संदेह जताया कि कुछ घोड़े 'ग्लैण्डर' नामक घातक संक्रामक बीमारी से पीड़ित हो सकते हैं, जो इंसानों में भी फैल सकती है। सभी मृत घोड़ों के ब्लड सैंपल जांच के लिए भेजे गए, लेकिन रिपोर्ट में इस बीमारी की पुष्टि नहीं हुई। इसके बावजूद, अब तक 12 घोड़े किसी न किसी वजह से दम तोड़ चुके हैं, जबकि बाकी का इलाज जारी है।
पशु प्रेमियों का आरोप
याचिकाकर्ता सिमरन इस्सर और उनके वकील का कहना है कि यह मामला लापरवाही का नहीं, बल्कि जानवरों के प्रति सुनियोजित क्रूरता और तस्करी जैसा है। बिना स्पष्ट मेडिकल परीक्षण और परिवहन अनुमति के घोड़ों को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाना कई नियमों और पशु संरक्षण कानूनों का उल्लंघन है।
अब कोर्ट की अगली सुनवाई का इंतजार
हाईकोर्ट ने सुनवाई के अंत में कहा कि अगली तारीख पर कोर्ट सभी पक्षों से एक फैक्ट-बेस्ड स्टेटस रिपोर्ट चाहता है। कोर्ट की टिप्पणी थी कि “जानवरों के जीवन की कीमत किसी रेसिंग या सट्टेबाजी से अधिक है”। अदालत इस पूरे प्रकरण को बहुत गंभीरता से ले रही है, और अगर घोड़ों की मौतों में किसी भी पक्ष की लापरवाही साबित होती है, तो सख्त कार्यवाही तय है।
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