BHOPAL. कोरोना काल... ये शब्द सुनकर आज भी कई परिवार सहम जाते हैं। डर जाते हैं। महामारी की इस सुनामी में हजारों लोगों ने अपनों को खोया। इस बीच पुलिस के साहसी जवानों ने संकट में लोगों की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा। अपने जीवन को भी दांव पर लगाने से नहीं चूके। जब लोगों को लॉकडाउन के नियमों का पालन कराना था, तब उन्होंने हर संभव प्रयास किए, ताकि समाज में अनुशासन बना रहे... इसके बदले उन्हें क्या मिला...कुछ नहीं। इन सरकारी मुलाजिमों के लिए भी लालफीताशाही हावी हो गई। स्थिति ये है कि अब तक पुलिस वाले कोरोना वीर पदक और सर्टिफिकेट का इंतजार कर रहे हैं।
दरअसल, कोरोना काल में पुलिस ने बड़ी भूमिका निभाई थी। मध्यप्रदेश सरकार ने उनके काम को सराहा भी। शिवराज सरकार में गृह मंत्री रहे डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने ऐसे साहसी पुलिस वालों को कोरोना वीर पदक और सर्टिफिकेट देकर सम्मानित कराने का ऐलान किया। मंत्रीजी की मंशा के हिसाब से काम हुआ। सरकार ने आदेश जारी किए। इसके बाद पुलिस मुख्यालय की प्रोविजनिंग शाखा ने 2 करोड़ रुपए से 40 हजार पदक और सर्टिफिकेट छपवा भी लिए, लेकिन तब पीएचक्यू की प्रोविजनिंग शाखा और एडमिन शाखा के बीच खींचतान के चलते पुलिस वालों को सम्मानित नहीं किया गया।
शिवराज का नाम छपा
इस बीच नई सरकार का गठन हुआ। डॉ.नरोत्तम मिश्रा भी चुनाव हार गए। फिर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव मुख्यमंत्री बने। फिर एक बार यह मुद्दा तो उठा, लेकिन एक बड़ी समस्या आन पड़ी है। असल में पीएचक्यू की ओर से तैयार कराए गए 40 हजार पदक और सर्टिफिकेट रद्दी में ही जाएंगे। वजह यह है कि इनमें तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम छपा है।
कमरे में बंद पदक और सर्टिफिकेट
अधिकारियों की मुसीबत यह है कि सूबे के मौजूदा मुख्यमंत्री और गृह मंत्री डॉ. मोहन यादव के हाथों कैसे शिवराज के नाम वाले पदक बंटवाएं। कुल मिलाकर 2 करोड़ रुपए पानी में चले गए हैं। मामला बाहर न आए, इसलिए पदक और सर्टिफिकेट पीएचक्यू के एक कमरे में बंद हैं। इस मामले में जिम्मेदार अधिकारी भी बात नहीं कर रहे हैं।
ये हैं जिम्मेदार...
विजय कटारिया :
एडमिन शाखा के एडीजी विजय कटियार जनवरी 2025 में रिटायर हो जाएंगे। यानी उनका कार्यकाल सिर्फ चार महीने का बचा है। ऐसे में वे बस रिटायरमेंट तक मामला टालना चाहते हैं।
आलोक रंजन :
प्रोविजनिंग शाखा के एडीजी रहे आलोक रंजन डेपुटेशन पर जा चुके हैं। इसलिए अब उनकी तो किसी तरह की चिंता ही नहीं है। पदक, सर्टिफिकेट बंटे या ना बंटे उनका सीधे तौर पर कोई लेना-देना नहीं बनता।
योगेश चौधरी :
प्रोविजनिंग शाखा में हाल ही में योगेश चौधरी ने आमद दी है। ऐसे में उनके लिए तो ये मामला पूरी तरह अनजान है। देखने वाली बात होगी कि वे इस प्रकरण में कितनी रुचि लेते हैं।
चक्कर काट रहे पुलिस वाले
इधर, कोरोना में अपनी जान दांव पर लगाकर ड्यूटी करने वाले पुलिस कर्मी पदक और सर्टिफिकेट के लिए चक्कर काट रहे हैं। वे दबी जुबान में पूछ रहे हैं कि आखिर हमें सम्मान कब मिलेगा। इतना ही नहीं कई पुलिस वाले कोरोना में डयूटी करते हुए शहीद हो गए। उनके परिजन भी इसी बात के इंतजार में हैं कि उनके पिता या माता ने लोगों की जान बचाने के लिए ड्यूटी करते हुए अपनी जान गंवाई है। इस पर सरकार उनका सम्मान करेगी, लेकिन वो भी नहीं हो सका।
'द सूत्र' व्यू ...
ये हैं सच्चे नायक...
जब चारों तरफ हाहाकार मचा था, अस्पतालों में भीड़ थी, तब पुलिस वालों ने हर संभव प्रयास किए। कठिनाइयां झेलीं। वे उन स्वास्थ्य कर्मियों की भी रक्षा कर रहे थे, जो दिन-रात इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में लगे हुए थे। इस कठिन समय में कई पुलिसकर्मियों ने अपनी जान भी गंवाई। उनके साहस और समर्पण ने साबित कर दिया कि सच्चे नायक वे होते हैं, जो अपने जीवन की परवाह किए बिना दूसरों की रक्षा करते हैं। महामारी में पुलिस ने जो काम किए, वे केवल ड्यूटी नहीं थे, बल्कि मानवता के प्रति एक सच्ची निष्ठा और सेवा का उदाहरण थे। ऐसे नायक हमेशा याद रखे जाएंगे। उनकी कर्तव्यनिष्ठा को हमेशा सराहा जाएगा, पर क्या ऐसे नायकों को सम्मान नहीं मिलना चाहिए। क्या इस मामले में देर करने वालों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? हे मोहन! सुनो योद्धाओं की पुकार...।
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