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जबलपुर में अधारताल के तहसीलदार हरि सिंह धुर्वे और पटवारी जागेन्द्र पिपरे का एक ऐसा कारनामा सामने आया है। जिसमें इन्होंने एक 95 वर्षीय बुजुर्ग की जमीन अपने कंप्यूटर ऑपरेटर के परिवार के नाम पर कर दी। हैरानी की बात यह थी कि इस जमीन के नामांतरण के लिए जिस व्यक्ति का वसीयतनामा लगाया गया था उसका इस जमीन से कभी कोई लेना-देना ही नहीं रहा है। आपको बता दें कि पटवारी संघ का अध्यक्ष जागेंद्र पिपरे वही गलीबाज़ पटवारी है। जिसकी हरकतों का खुलासा द सूत्र में होने के बाद निलंबन का आदेश जारी कर जांच भी बैठाई गई थी।
बुजुर्ग की जमीन का हो गया नामांतरण
अधारताल तहसील अंतर्गत आने वाले गांव रैगवां में शिवचरण पांडे की 1.01 एक हेक्टेयर भूमि है। जिसमें वह पिछले 50 सालों से खेती करते चले आ रहे हैं। इस जमीन के मामले में अधारताल तहसील में एक नामांतरण प्रकरण दर्ज हुआ और किसी महावीर प्रसाद पांडे की 1970 की वसीयत के आधार पर यह जमीन अन्य लोगों के नाम कर दी गई। जमीन के असली मालिक शिवचरण पांडे को इस आदेश की भनक तक नहीं पड़ी।
जांच के बाद सामने आया फर्जीवाड़ा
इस मामले की जानकारी जब जमीन के असली मालिक को लगी तो उसके परिजनों ने अधारताल एसडीएम शिवाली सिंह से शिकायत की। मामले की जांच में यह खुलकर सामने आ गया कि तहसीलदार हरि सिंह धुर्वे और जागेन्द्र पिपरे ने मिलकर अपनी ही तहसील में काम करने वाली कंप्यूटर ऑपरेटर दीपा दुबे और उसके भाइयों के नाम पर यह जमीन गैर कानूनी ढंग से ट्रांसफर कर दी है।
पटवारी ने लगाए फर्जी दस्तावेज और तहसीलदार ने दिया आदेश
इस मामले में हद दर्जे का भ्रष्टाचार करते हुए पटवारी और तहसीलदार ने महावीर प्रसाद पांडे की 14 फरवरी 1970 की वसीयत के आधार पर यह जमीन नामांतरित कर दी। महावीर प्रसाद पांडे जो तहसील कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारी का ही पिता था। उसने अपनी जमीन श्याम नारायण चौबे के नाम वसीयत में लिख दी जो तहसीली की ही कंप्यूटर ऑपरेटर दीपा दुबे का पिता था। इस तरह एक ऐसी जमीन जिसमें कभी भी महावीर प्रसाद पांडे का कोई अधिकार या दस्तावेजों में नाम नहीं था उसे महावीर पांडे की वसीयत पर कंप्यूटर ऑपरेटर के पिता के नाम पर नामांतरित कर दिया गया। इसके बाद पूर्व सुनियोजित षड्यंत्र के अनुसार कंप्यूटर ऑपरेटर दीपा दुबे के पिता की मृत्यु प्रमाण पत्र लगाकर यह जमीन दीपा दुबे के भाइयों के नाम पर ट्रांसफर हुई और उसके बाद बेच दी गई।
वसीयत से लेकर मृत्यु प्रमाण पत्र तक था झोल
जमीन हड़पने के लिए साक्ष्य के तौर पर दिखाया गया वसीयतनामा 3 रुपए के स्टांप पेपर में बनाया गया था जिसके साथ एक नोटरी किया शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया गया था। इस शपथ पत्र में भी किसी भी गवाह की उम्र नहीं लिखी थी साथ ही इस स्टांप को खरीदने वाले क्रेता का नाम पता सब गायब था। वहीं दूसरी और महावीर प्रसाद का मृत्यु प्रमाण पत्र पेश किया गया था उसमें महावीर प्रसाद की मृत्यु तो साल 1971 में होना दर्शी गई पर उसकी मृत्यु प्रमाण पत्र साल 2016 में जारी हुआ । जिस जमीन का नामांतरण किया गया उसमें कभी भी महावीर प्रसाद का नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज नहीं रहा है। उसके बाद भी इस जमीन के नामांतरण का आदेश जारी करते हुए तहसीलदार ने इन सभी तथ्यों की अनदेखी की और एक पक्षीय कार्यवाही करते हुए यह जमीन अपने गैंग के सदस्यों के नाम कर दी। इस मामले में यह भी बात सामने आई है कि जबलपुर जिला कलेक्टर के द्वारा अधारताल तहसील कार्यालय में कार्य विभाजन किया गया था और यह मामला अतिरिक्त तहसीलदार के न्यायालय में था उसके बाद भी हरि सिंह धुर्वे ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाते हुए अतिरिक्त तहसीलदार के न्यायालय में दर्ज प्रकरण का निराकरण कर दिया।
तहसीलदार,पटवारी सहित 7 लोगों पर दर्ज हुआ मामला
अनुभागिक अधिकारी के द्वारा की गई जांच में यह साबित हो गया कि तहसीलदार पटवारी और कंप्यूटर ऑपरेटर सहित अन्य लोगों की मिली भगत से इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया है। इसके बाद जबलपुर के विजयनगर थाने में तहसीलदार हरि सिंह धुर्वे, पटवारी जागेंद्र पिपरे, कंप्यूटर ऑपरेटर दीपा दुबे सहित रवि शंकर चौबे, अजय चौबे,हर्ष पटेल और अमिता पाठक सहित अन्य पर भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 229, 318, 336, 338 के तहत मामला पंजीबद्ध किया गया है।
सरकारी कर्मचारियों से ही सुरक्षित नहीं रह गई जमीन
हालांकि इस मामले में जांच के बाद कार्रवाई तो हो गई है पर एक बात जो खुलकर सामने आ रही है कि जी कार्यालय के पास आपकी जमीन के पूरे अभिलेख और दस्तावेज रख जमीन मालिकों को न्याय दिलाने का कर्तव्य है इस कार्यालय के भ्रष्ट कर्मचारी यदि इस तरह से गरीब व्यक्तियों को लूटने पर उतारू हो जाएंगे तो आखिर एक आम इंसान की जमीन कैसे सुरक्षित रहेगी।
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