2 हजार करोड़ की आस्था फांउडेशन में उलझे बिल्डर संघवी, डॉ. बदलानी, LNCT का चौकसे परिवार

श्री आस्था फाउंडेशन फॉर एजुकेशन सोसायटी में विवाद की शुरुआत हुई जब पूर्व प्रेसीडेंट अनिल संघवी ने शिकायत दर्ज कराई कि एलएनसीटी ग्रुप के चौकसे परिवार और 20 अन्य लोगों ने फर्जीवाड़ा किया।

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Sanjay gupta
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श्री आस्था फाउंडेशन फॉर एजुकेशन सोसायटी की हाईप्रोफाइल लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट से लेकर अब पुलिस की भी एंट्री हो गई है। पांच अप्रैल को इस मामले में पूर्व प्रेसीडेंट अनिल संघवी की शिकायत पर इस ग्रुप पर पूर्व में काबिज एलएनसीटी ग्रुप के चौकसे परिवार के कई सदस्यों के साथ कुल 21 लोगों पर पंढ़रीनाथ थाने में चार सौ बीसी की एफआईआर हो गई। यह ग्रुप पूर्व में डॉ. रमेश बदलानी से जुड़ा रहा है।

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क्यों उठा अभी यह विवाद

पुलिस पर भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह एफआईर कैसे हुई। जब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट तक के आदेश हैं और केस चल रहे हैं। पुलिस की एंट्री के बाद मामला और विवादित हो गया है। कारण साफ है एलएनसीटी विद्यापीठ, सेवाकुंज अस्पताल और ग्रुप की करीब दो हजार करोड़ की संपत्तियों का है। 

पुलिस ने अभी यह किया

पंढरीनाथ पुलिस में अनिल संघवी ने साल 2021 में शिकायत की थी, जिसमें पुलिस ने पांच अप्रैल को रात 12 बजकर 16 मिनट पर 21 लोगों पर यह केस दर्ज किया। इसमें संस्था के 21 सदस्यों के खिलाफ चुनाव में फर्जीवाड़ा किए जाने को लेकर धारा 420, 467, 468, 471, 34 के तहत एफआईआर कराई है। इसमें बताया गया है सदस्यों की वोटर लिस्ट आदि में फर्जीवाड़ा किया गया था।

श्वेता चौकसे ने फर्जी संस्था कागज जमा किए

संस्था का अध्यक्ष बताते हुए अनिल संघवी ने शिकायत की कि संस्था की सचिव रहेत हुए श्वेता चौकसे ने फर्जी संस्था बनाकर सरकारी दफ्तरों में फर्जी कागजात जमा किए। जनरल मीटिंग में वर्ष 2016 में उन्हें सचिव और रमेश बदलानी को अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। साल 2016 के बाद संस्था में कोई चुनाव नहीं हुआ। बावजूद इसके, डॉक्टर रमेश बदलानी ने अन्य गैर-सदस्यों के साथ मिलकर फर्जी जानकारी दी और नए सदस्य जोड़कर कार्यकारिणी बना ली। इस दौरान सरकारी सील और पंजीयक के हस्ताक्षर की भी नकल की गई।

इन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज

16 जनवरी 2021 को संस्था की दो अलग-अलग चुनावी सूचियां तैयार की गईं। एक सूची पंजीयक कार्यालय में जमा हुई, जबकि दूसरी में फर्जी सील लगाकर अन्य सरकारी कार्यालयों में प्रस्तुत की गई। पुलिस ने जांच के बाद श्वेता पति अनुपम चौकसे, धर्मेंद्र गुप्ता, पूजा चौकसे, आशीष जायसवाल, अशोक राय, बीएल राय, विशाल शिवहरे, संदीप शिवहरे, ललीत मंदनानी, राकेश सहदेव, धनराज मीणा, वेद प्रकाश भार्गव, भूपेंद्र बघेल, विराट जायसवाल उपेंद्र तोमर, मनोज, राजेश अग्रवाल, विजेंद्र ओझा, रत्नेश मिश्रा, सागर शिवहरे और संजीव उपाध्याय के खिलाफ कूटरचित दस्तावेज बनाने और उनके दुरुपयोग का मामला दर्ज किया।

FIR में पुलिस ने की भारी चूक

यह एफआईआर पुलिस ने अनिल संघवी की शिकायत पर पांच अप्रैल को की है, जबकि इस दौरान संघवी संस्था में किसी पद पर नहीं है। इस मामले में किसी और ने नहीं बल्कि सीधे सुप्रीम कोर्ट ने ही पूरी संस्था को अभी भंग करते हुए हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस शांतनु केमकर को प्रशासक नियुक्त किया हुआ है। उनके साथ ही केमकर को अन्य सदस्य नियुक्ति के भी अधिकार सुप्रीम कोर्ट ने चार फरवरी 2025 को आदेश जारी किए। यानी तय है कि यदि इस संस्था की ओर से किसी भी तरह की एफआईआर होनी थी तो इसके लिए प्रशासक पूर्व जस्टिस शांतुन केमकर से मंजूरी ली जाना थी जो नहीं ली गई है। यानी वर्तमान प्रशासक से इस बारे में कोई मंजूरी नहीं ली गई है। साल 2021 से 2023 के बीच का मामला बताते हुए केस दर्ज केस किया गया है। 

सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट तक चल रही सुनवाई 

इस मामले में संस्था के चुनाव को लेकर केस लगे, अनिल संघवी की याचिका पर हाईकोर्ट ने 30 जनवरी 2016 की स्थिति में वोटर लिस्ट (21 सदस्य) के आधार पर चुनाव कराने के आदेश दिए। इस पर मामला सुप्रीम कोर्ट गया और सुप्रीम कोर्ट ने इसमें साफ कहा कि 30 जनवरी 2016 की वोटर लिस्ट पर चुनाव नहीं होंगे, हाईकोर्ट फिर से पक्ष सुनकर इसमें आदेश जारी करे। हाईकोर्ट ने फिर 4 अक्तूबर 2024 को ही आदेश जारी फिर से 30 जनवरी 2016 की ही लिस्ट से ही 15 दिन में चुनाव जारी कराने के आदेश दे दिए। इसमें 8 अक्तूबर 2024 को ही फर्म एंड सोसायटी से चुनाव हो गए और संघवी प्रेसीडेंट बन गए व उनके गुट के अन्य सचिव व मेंबर बन गए।

इस पर चौकसे ग्रुप (श्वेता पति अनुपम चौकसे व अन्य) सुप्रीम कोर्ट गए। वहां हाईकोर्ट के आदेश पर गहरी नाराजगी जाहिर की गई और साफ कहा कि जब 30 जनवरी 2016 की लिस्ट पर चुनाव नहीं होने थे फिर कैसे हुए, उन्होंने संघवी व अन्य चुने गए पदाधिकारियों के चुनाव को खारिज कर दिया और रिटायर्ड जस्टिस केमकर को प्रशासक बना दिया। यह आदेश चार फरवरी 2025 को हुए। इसके बाद वहां प्रशासक है।

हाईकोर्ट ने सुनवाई कर रिजर्व रखा है आदेश

इस मामले में हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और आदेश के बाद फिर इस केस में नए सिरे से सुनवाई की और आदेश रिजर्व रख लिया है, अभी इसमें नया फैसला नहीं आया है और प्रशासक की टीम संस्था को औपचारिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से संभाल रही है। यानी कायदे से संघवी के आवेदन पर एफआईआर होना ही नहीं थी।

सेवाकुंज अस्पताल, सोसायटी की संपत्ति की ख्वाईश

संस्था में 2016 की स्थिति में बदलानी प्रेसीडेंट थे। इसमें अनिल संघवी, चंदन सिंघवी, मनीष खतवानी और भारती नवलानी 4 जनवरी 2016 को नए मेंबर बने। अभय सुराणा, विमल छजलानी, विमल सुराणा और दिलीप रिटायर्ड हुए। फिर 30 जनवरी को चुनाव हुए और बदलानी प्रेसीडेंट और संघवी सचिव, खतलानी कोषाधय्क्ष बने। इसके बाद इसमें 2020 में ग्वालियर के पुनिल अग्रवाल व अन्य की एंट्री होती है। वह इस ग्रुप को टेकओवर करते हैं। लेकिन 2021 में वह बाहर होते हैं और इसमें जयनारायण चौकसे, उनके पुत्र अनुपम चौकसे, अनुपम की पत्नी श्वेता चौकसे व उनके करीबी इंटर होते है, अग्रवाल ग्रुप और उनके बीच के समझौते से यह होता है और यह ग्रुप बदलवानी, अग्रवाल से होते हुए चौकसे के पास पहुंच जाता है। लेकिन इसमें सदस्यता सूची को संघवी चैलेंज करते हैं और कहते हैं कि यह सदस्यता सूची ही गलत थी।

चौकसे ने लगाए 200 करोड़ रुपए

वहीं चौकसे का कहना है कि उन्होंने इस ग्रुप में 200 करोड़ लगाए और इसे फिर से खड़ा किया है, जब तक बदलानी, संघवी थे इस ग्रुप की माली हालत खराब थी। मेरे एंट्री होने के बाद इसमें ग्रोथ हुई और अब यह सभी इसमें अपना हक जता रहे हैं। साल 2016 की मतदाता सूची को इसलिए मान्य कराया जा रहा है क्योंकि मैं था ही नहीं और मेंरा ग्रुप तो 2021 में ही इसमें आया। यह चुनाव पूरी तरह से अवैध थे जिसे सुप्रीम कोर्ट ने माना है। 

संघवी क्या बोल रहे हैं

उधर संघवी का कहना है कि मैं निर्वाचित प्रेसीडेंट बना हूं, हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अभी प्रशासक नियुक्त है। लेकिन मेरी शिकायत पहले की है, जब चौकसे ग्रुप संस्था पर काबिज था और उन्होंने हाईकोर्ट में अलग सूची और फमर्स एंड सोसायटी में अलग सूची पेश की। इसमें कूटरचित दस्तावेज बनाए गए और सील लगाई गई। इसी आधार पर पुलिस ने जांच के बाद इन पर केस दर्ज किया है।

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