इंदौर में एलआईसी ने एक महिला आवेदिका को सभी पात्रताएं होने के बावजूद नौकरी इसलिए नहीं दी कि बायोमेट्रिक मशीन से उसकी पहचान नहीं हो पाई। इस पर उसने हाईकोर्ट की शरण ली, तो कोर्ट ने महिला का पक्ष सही मानते हुए एलआईसी को आदेश दिए कि चार सप्ताह में महिला को नौकरी दें। साथ में यह भी कहा कि आज के समय में बायोमेट्रिक से किसी व्यक्ति की पहचान किया जाना एक विकल्प हो सकता है। अगर मशीन उसकी पहचान नहीं कर पा रही है तो फिर उसके पास पहचान के लिए अन्य दस्तावेज होते हैं। उन्हें देखा जा सकता है।
यह है पूरा मामला
हाईकोर्ट एडवोकेट राघवेंद्र रघुवंशी ने पीड़िता रचना इरवर की तरफ से हाईकोर्ट में पैरवी की। इसमें उन्होंने एलआईसी द्वारा जारी एक आदेश के खिलाफ याचिका लगाई थी। असल में उन्हें सहायक के पद पर नौकरी देने में एलआईसी ने इनकार कर दिया था। इसके पीछे उसने कारण बताया था कि सॉफ्टवेयर कंपनी द्वारा बायोमेट्रिक मशीन के जरिए की गई उनकी पहचान को लेकर सत्यापन नहीं हो पाया है और सक्षम अधिकारी द्वारा भी यह निर्णय दिया गया है।
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यह कहना है कोर्ट का
कोर्ट का मत है कि यद्यपि यह सत्य है कि रिकॉर्ड में किसी भी विसंगति को दूर करने और चयन की स्वतंत्र व निष्पक्ष प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए आजकल बायोमेट्रिक सत्यापन प्रक्रिया आवश्यक है। लेकिन यह भी सत्य है कि बायोमेट्रिक सत्यापन हमेशा विसंगतियों को दूर करने में सफल नहीं होता, जैसा कि इस मामले में हुआ है।
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मशीन की विफलता से दावा कैसे खारिज हो सकता है
ऐसे अवसर भी आते हैं, जब किसी उम्मीदवार का बायोमेट्रिक सत्यापन पार्टियों के नियंत्रण से परे असंख्य कारणों से नहीं किया जा सकता है। इन परिस्थितियों में क्या यह कहा जा सकता है? केवल मशीन की ओर से विफलता के कारण, किसी व्यक्ति के उचित दावे को कैसे खारिज किया जा सकता ? केवल मशीन द्वारा उसे पहचानने में विफल रहने के कारण उसके नौकरी के लिए किए गए दावे को कम नहीं कर सकते या दरकिनार नहीं किया जा सकता है।
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