इंदौर विकास प्राधिकरण (IDA) के अहिल्या पथ में खेल करने के आरोपी प्लानर मयंक जगवानी की आखिरकार विदाई होना तय हो गया है। इस संवेदनशील योजना के सर्वे नंबर अपने वालों को लीक करने के आरोप उन पर लगातार लग रहे थे। इसके बाद से ही उच्च स्तर पर तय हो गया था कि इन्हें आईडीए से विदा करना जरूरी है। आखिरकार जगवानी ने इस्तीफा दे दिया।
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क्या बोलकर दिया गया इस्तीफा
सूत्रों के अनुसार जगवानी ने यह इस्तीफा पारिवारिक कारण बताकर दिया है। हालांकि यह सब तभी हो गया था जब जगवानी पर अहिल्या पथ की योजना बाहर लीक करने के आरोप लगे। द सूत्र ने इस मुद्दे को उठाया था। इसके बाद इंदौर से लेकर भोपाल तक हलचल मच गई। योजना की शुद्धता के साथ ही आईडीए की छवि को बचाए रखने के लिए जरूरी था कि जगवानी को विदा किया जाए। उनके कारनामे आईडीए के अधिकारियों को भी बेवजह अपनी चपेट में ले रहे थे। क्योंकि आखिरकार आईडीए में निचले स्तर पर कुछ भी हो तो जिम्मेदारी उच्च स्तर पर आती है। आखिरकार जगवानी को इस संबंध में संदेश दे दिया गया और फिर इस्तीफा हो गया।
क्या रही जगवानी की भूमिका
जगवानी करीब चार साल पहले महज 50 हजार रुपए प्रति माह के भुगतान पर आउटसोर्स के जरिए प्लानिंग सैक्शन में जुड़ा था। लेकिन धीरे-धीरे हालत यह हो गई कि योजनाएं का पूरा काम ही वही करने लगा। उसका जो नया कांट्रेक्ट हुआ था वह धीरे-धीरे बढ़ते हुए चार साल में ही 50 हजार से ढाई लाख रुपए प्रतिमाह पर हो गया।
आईडीए की जो योजनाएं तकनीकी तौर पर भू अर्जन शाखा विभाग से बनना थी वह मयंक जगवानी की टेबल से बनने लगी। वहीं जगवानी की निजी प्रैक्टिस भी थी। ऐसे में इन योजनाओं की जानकारी अपने वालों को लीक होन की आशंका सामने आई थी। अहिल्या पथ में तो खुलकर यह बात सामने आई कि कुछ लोगों को यह जानकारी लीक हुई और उन्होंने फिर इसका लाभ उठाते हुए इस स्कीम के आसपास जमीन खरीदी और पहले ले टीएंडसीपी पास कराने जैसे खेल किए। जगवानी के कारण अहिल्या पथ को भ्रष्टाचार का पथ का भी नाम दिया जाने लगा।
कांग्रेस ने भी लगातार लगाए आरोप
कांग्रेस के राकेश यादव ने लगातार इस मुद्दे को उठाकर जगवानी व आईडीए के अन्य अधिकारियों पर आरोप लगाए। साथ ही इस मामले में आईडीए में लगातार सक्रिय रहने वाले दो दलालों के नाम भी कहे और आरोप लगाए कि इन दलालों के जरिए जमीन के बाजार में खेल किए गए। इसमें कॉमन लिंक मयंक जगवानी थे। आखिरकार इन आरोपों से आईडीए की छवि खराब हुई।
कमिशनर दीपक सिंह और कलेक्टर आशीष सिंह ने इस मामले में गंभीरता बरतते हुए छह माह के सभी टीएंडसीपी ही रद्द करने के आदेश दिए औऱ् साथ ही विकास मंजूरी पर रोक लगाने के भी आदेश दिए, जिससे अहिल्यापथ को भ्रष्टाचार का पथ बनाने की मंशा काफी हद तक खत्म हुई।
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