नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र और पूर्व विधायक आकाश विजयवर्गीय पांच साल बाद तमाम आरोपों से बाइज्जत बरी हो गए हैं। उनपर निगम कर्मियों को बल्ला मारने और मारपीट करने, जान से मारने की धमकी देने, सरकारी वाहनों में 80 हजार रुपए का नुकसान करने जैसे तमाम आरोप लगे थे।
जिला कोर्ट के 62 पन्नों के इस आर्डर को द सूत्र ने पढ़ा और इसे परखा। 26 जून 2019 को कमलनाथ सरकार के समय हुई इस घटना में किस तरह से कानून की गलियों का जमकर उपयोग हुआ और आरोपियों को बचाया गया, इसके लिए यह एक बेहतरीन केस स्टडी है।
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अब जब्त टूटे बल्ले का क्या होगा?
पहले यह बता देते है कि उस बल्ले का क्या होगा जिसने राजनीतिक हलचल मचा दी थी। न्यायाधीश देव कुमार ने अपने आदेश में लिखा है कि- बल्ला मूल्यहीन होने से अपीलीय अवधि में अपील नहीं होने पर नष्ट कर दिया जाए। पैनड्राइव अभिलेख का भाग है।
पहले देखते हैं क्या है मामला
26 जून 2019 की घटना है, तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। सुबह 11.30 बजे निगम की रिमूवल टीम जोन 3 में वार्ड 57 में जर्जर मकान हटाने के लिए पहुंची थी। इसमें आरोप थे कि पहले कई लोगों की भीड़ आई और रिमूवल नहीं करने के लिए कहा, फिर दस मिनट बाद विधायक आकाश विजयवर्गीय आए और भवन अधिकारी असित खरे से कहा कि 10-15 मिनट में चले जाओ वर्ना मारकर भगा देंगे। इसके बाद विजयवर्गीय ने बल्ला लिया और जोनल अधिकारी धीरेंद्र बायस के पैर पर मारा। इसके बाद इनके साथ दस लोगों ने मारपीट की और मुक्कों से मारा। पुलिस बायस को लेकर गई। इस घटना में आकाश 26 से 29 जून तक जेल में रहे। फिर जमानत हुई।
इन 11 को बनाया गया आरोपी
घटना में आकाश के साथ ही भरत खस, पंकज पांडे, जितेंद्र उर्फ जीतू खस, भैरूलाल श्रीवंश, सुमित पिपेल, अभिषेक गौड़, जयंत पांचाल, प्रेम विजयवर्गीय, नितिन शर्मा, मोनू कल्याणे (निधन हो गया इनका) पर केस बना। इन पर धारा आईपीसी 353. 294, 323, 506, 147, 148 धारा लगी।
कितने गवाह और क्या थे सबूत
घटना में कुल 23 गवाह थे। इसके साथ ही पुलिस ने तीन पैनड्राइव पेश की। इसमें घटना के दिन के वीडियो जिसमें बल्ले से आकाश विजयवर्गीय बायस को मारते हुए दिख रहे हैं। इसके अलावा 11 फोटो व अन्य वीडियो थे, जिसमें मारपीट की जा रही है। सबसे अहम वह हथियार बल्ला था, जिससे आकाश द्वारा पीटने के आरोप थे और वह बल्लेबाज के तौर पर चर्चित हुए थे।
सबसे पहले फरियादी की बहाने बाजी
फरियादी धीरेंद्र बायस- मैं मोबाइल पर था मैंने नहीं देखा किसने बल्ला मारा। आसपास तीन-चार लोग बल्ला लिए खड़े हुए थे। मैं नहीं कह सकता किसने मारा। वीडियो मैंने सोशल मीडिया पर जो चले थे, वह एकत्र कर पुलिस को दिए थे। आकाश विधायक है इसलिए जानता हूं, बाकी को नहीं पहचानता हूं।
वीडियो में किसी और की जगह आकाश का चेहरा लगाया
बायस ने वीडियो में आकाश द्वारा मारपीट को लेकर कहा कि वीडियो में किसने क्या हिस्सा जोड़ा और काटा नहीं बता सकता, क्योंकि सोशल मीडिया से वीडियो लिया था। जब आरोपी के वकील ने पूछा कि यह वीडियो फैक है और संभव है कि किसी अन्य वीडियो में अन्य चेहरे पर आकाश का चेहरा फर्जी तरीके लगाकर उन्हें फंसाया गया हो, तो इस पर भी बायस ने कहा प्रामणकिता वीडियो की नहीं कह सकता, वीडियो में कुछ भी कांट-छांट हो सकती है।
अन्य गवाहों की भी बहानेबाजी देखिए
- सुनीय तायड़े- बेलदार हूं, घटना के समय मौजूदन हीं था, वीडियो वायरल हुए तो घटना की जानकारी लगी।
- राज ठाकुर- प्रभारी उपयंत्री सिविल। मारपीट करते नहीं देखा, यह जरूर आकाश विजयवर्गीय ने असित खरे से कहा था कि दस-15 मिनट में हट जाओ। फिर भीड़ आ गई मैं परिचित की दुकान पर चला गया। मैंने देखा पुलिस बायस को ले जा रही उसे चोट लगी। मैंने किसी को बल्ले से मारते नहीं देखा। पैनड्राइव कहां से आई मुझे नहीं पता। सोशल मीडिया पर वीडियो चल रहे थे। प्रामणिकता नहीं कह सकता।
- वीरेंद्र उपाध्याय- सहायक रिमूवल अधिकारी। सुलभ शौचालय के पास बल्ला पड़ा था जो पुलिस ने जब्त किया। नहीं बता सकता इसी बल्ले से मारपीट हुई।
- असित खरे- भवन अधिकारी जोन 3 में वार्ड 57. किराएदार-मकान मालिक विवाद था, भीड़ आ गई थी। मैं पुलिस बल के लिए अधिकारियों से कहा और इंतजार करने लगा। भीड़ आ गई, पलटा तो किसी ने धक्का मारा और कहा कि यहां से चले जाओ। मैं भीड़ देख चला गया।
- लालसिंह जामोद- घटना स्थल पर पहुंचने से पहले ही घटना हो गई थी जानकारी नहीं है
- अश्विन कल्याणे- जब घटना हुई मैं बाथरूम गया हुआ था इसलिए किसी को नहीं देखा।
- प्रह्लाद सिंह खंडाते- एमजी रोड थाना जांच अधिकारी व उपनिरीक्षक। घटना के दो घंटे बाद पहुंचा था। धीरेंद्र को लेकर आरोपियो की शिनाख्ती नहीं कराई। किसी व्यक्ति द्वारा पैनड्राइव किसी कम्प्यूटर से बनाकर दी गई, नहीं पता। बल्ला खुले में सार्वजनिक स्थल से मिला था। किसी व्यक्ति से जब्त नहीं हुआ।
- शिवम पाल- तोड़फोड़ से वाहनों में 80-90 हजार का नुकसान हुआ, इसकी जानकारी नहीं है, मैं तो वाहनों की कीमत भी नहीं जानता हूं।
पुलिस की ओर से क्या रही चूक
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वीडियो की फारेंसिंक जांच ही नहीं कराई। दूसरों से वीडियो पैनड्राइव में लिए, वह उसे साबित नहीं कर सके, साथ ही वीडियो पैनड्राइव देने वाले भी पलट गए
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पुलिस ने कभी भी फरियादियों से आरोपियों की शिनाख्ती ही नहीं कराई, जिससे अन्य 10 आरोपियों की तो कभी पहचान ही साबित नहीं हो सकी
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बल्ला आकाश की जगह खुले में पड़ा हुआ दिखाया गया।
यह भी हास्यापद, निगम ने ड्यूटी ही नहीं लगाई थी
लोकसेवक थे और अपनी ड्यूटी कर रहे थे, इस दौरान यह मारपीट की घटना हुई। मजेदार बात यह है कि इन सभी को लोकसेवक ही नहीं माना गया, क्योंकि निगम ने जो ड्यूटी चार्ट पेश किया। इसमें घटना वाले दिन बायस व अन्य फरियादियों की ड्यूटी घटनास्थल पर लगी नहीं बताई गई। कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जताया कि जब अन्य 32 की ड्यूटी थी तो उन्हें साक्ष्य क्यों नहीं बनाया गया।
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