रियल एस्टेट कंपनी की मनमानी पर हाईकोर्ट सख्त, अनंतारा को ग्राहकों को लौटाने होंगे रुपए

अनंतारा रेजीडेंसी प्रोजेक्ट के विवादास्पद मामले में रियल एस्टेट कंपनी एक्सग्रीन डेलकॉम प्राइवेट लिमिटेड की याचिका खारिज कर दी। यह मामला कंपनी की ओर से समय पर फ्लैटों का कब्जा न देने और ग्राहकों के साथ किए गए अनुबंधों का उल्लंघन करने से जुड़ा था।

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Neel Tiwari
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Anantara
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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में जबलपुर स्थित अनंतारा रेजीडेंसी प्रोजेक्ट के विवादास्पद मामले में रियल एस्टेट कंपनी एक्सग्रीन डेलकॉम प्राइवेट लिमिटेड की याचिका खारिज कर दी। यह मामला कंपनी की ओर से समय पर फ्लैटों का कब्जा न देने और ग्राहकों के साथ किए गए अनुबंधों का उल्लंघन करने से जुड़ा था। इस संबंध में जबलपुर के श्री अभिजीत सी. ठाकुर द्वारा दाखिल शिकायत पर हाई कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कंपनी को ग्राहकों के हित में बड़ी राहत दी।

अनंतारा रेजीडेंसी प्रोजेक्ट का विवाद

जबलपुर के इस बहुचर्चित रियल एस्टेट प्रोजेक्ट का निर्माण एक्सग्रीन डेलकॉम प्रा. लि. के तहत किया जा रहा था, जिसके प्रमुख निदेशक पवन जयसवाल और करण जयसवाल हैं। यह प्रोजेक्ट कई वर्षों से विवादों में घिरा हुआ है, जहां सैकड़ों ग्राहकों ने निवास हेतु फ्लैट खरीदे थे, लेकिन समय पर कब्जा न मिलने के कारण ग्राहकों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

इस परियोजना में खरीदारों में से एक, अभिजीत ठाकुर ने फ्लैट नंबर 5 बी.ई. 6 और 5 ई.एफ. 6 की बुकिंग 1 अप्रैल 2016 को की थी, जिसके लिए उन्हें कंपनी की ओर से जल्द ही कब्जा देने का वादा किया गया था। हालांकि, कई वर्षों तक उन्हें उनका फ्लैट नहीं मिल पाया, और इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण (रेरा) में अपनी शिकायत दर्ज की। 

रेरा के आदेश और तहसीलदार की कार्रवाई

25 सितंबर 2019 को रेरा ने कंपनी को निर्देश दिया कि वह अभिजीत ठाकुर को 1,82,500 रुपए की राशि मुआवजे के रूप में लौटाए, जिसे कंपनी ने देने से इनकार कर दिया। इसके बाद 20 दिसंबर 2019 को जबलपुर के तहसीलदार ने रिकवरी प्रक्रिया शुरू करते हुए एक्सग्रीन डेलकॉम प्रा. लि. के बैंक खाते से उक्त राशि फ्रीज कर दी। इसके बाद कंपनी ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में रिट याचिका (डब्ल्यू.पी. 649/2020) दाखिल कर इस कार्रवाई को चुनौती दी। 

तहसीलदार की कार्रवाई को कोर्ट ने ठहराया सही

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में माननीय न्यायमूर्ति जी.एस. आहलूवालिया ने इस मामले की सुनवाई की। सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि कंपनी ने रेरा के आदेश के बावजूद भी अभिजीत ठाकुर को कोई राशि लौटाई नहीं थी। इसके साथ ही, यह भी पता चला कि तहसीलदार द्वारा बैंक खाते से धन की वसूली की कार्रवाई कानूनन सही थी और इसमें किसी प्रकार की गलती नहीं थी। अदालत ने पाया कि अभिजीत ठाकुर को मुआवजे के रूप में 8,09,975 रुपए का भुगतान होना था, जिसके लिए पहले ही  26 जुलाई 2022 को एक आदेश जारी किया जा चुका था। कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि कंपनी ने अदालत को गुमराह करते हुए पहले आदेश का पालन नहीं किया और अपने बैंक खाते को फ्रीज करने से बचने की कोशिश की। 

हाई कोर्ट ने की कंपनी की याचिका खारिज

जस्टिस अहलूवालिया ने मामले की अंतिम सुनवाई करते हुए कंपनी की याचिका को खारिज कर दिया और स्पष्ट आदेश दिया कि यदि कंपनी 30 अगस्त 2024 की शाम 5 बजे तक अभिजीत ठाकुर को पूरी राशि का भुगतान नहीं करती है, तो कंपनी के बैंक खाते से कोई लेन-देन नहीं हो सकेगा। इसके लिए बैंक प्रबंधक और यश बैंक, जबलपुर को जिम्मेदार ठहराया गया है।

बैंक खाता हुआ सीज

अदालत ने कहा कि यदि इस आदेश का पालन नहीं किया गया, तो कंपनी और बैंक दोनों ही पक्ष अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकेंगे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक कंपनी पूर्ण राशि का भुगतान नहीं कर देती, तब तक यश बैंक को कोई लेन-देन करने की अनुमति नहीं होगी।

ग्राहकों के लिए राहतभरी खबर

यह फैसला उन सैकड़ों ग्राहकों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन गया है, जो रियल एस्टेट कंपनियों की मनमानी के कारण अपने फ्लैटों के कब्जे के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह निर्णय न केवल अभिजीत ठाकुर को न्याय दिलाने में मददगार साबित हुआ है, बल्कि अन्य ग्राहकों के लिए भी यह एक मार्गदर्शक है, जो रियल एस्टेट कंपनियों के खिलाफ अपने हक के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। रेरा द्वारा पहले ही कंपनी पर कठोर कदम उठाने का प्रयास किया गया था, और अब हाई कोर्ट के इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि कानून के तहत किसी भी ग्राहक के अधिकारों का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

नहीं चलेगी रियल एस्टेट कंपनियों की मनमानी

वकील अभिजीत ठाकुर, जो इस मामले के याचिकाकर्ता भी हैं, ने कहा, "यह निर्णय न केवल मेरे लिए बल्कि उन सभी ग्राहकों के लिए महत्वपूर्ण है, जो वर्षों से न्याय की उम्मीद कर रहे थे। कोर्ट ने साबित कर दिया कि ग्राहक के अधिकार सर्वोपरि हैं और रियल एस्टेट कंपनियों की मनमानी नहीं चलेगी।" यह फैसला रियल एस्टेट उद्योग में पारदर्शिता और ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे भविष्य में अन्य रियल एस्टेट कंपनियों पर भी जिम्मेदारी का दबाव बनेगा ताकि वे अपने अनुबंधों का पालन सही समय पर करें और ग्राहकों को कोई परेशानी न हो।

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