ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने एक हाईकोर्ट जज की कथित टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। जज ने कहा था कि देश बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा, जिस पर ओवैसी ने आपत्ति जताई है। ओवैसी ने सोमवार को कहा कि भारत का संविधान न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता की अपेक्षा करता है, और ऐसे जज से न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती है जो विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं।
ओवैसी का आरोप
ओवैसी ने जज की टिप्पणी को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि ऐसे व्यक्ति से न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है, जो एक संगठन से जुड़ा हो जिसे कई बार बैन किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि यह बयान न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है और कॉलेजियम सिस्टम पर भी संदेह उत्पन्न करता है।
ओवैसी का संविधान की तरफ इशारा
ओवैसी ने अपने बयान में कहा कि भारत का संविधान बहुसंख्यकवाद को नहीं बल्कि लोकतंत्र को प्राथमिकता देता है, जहां अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जाती है। उन्होंने बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि बहुमत को शासन करने का दैवी अधिकार नहीं होता।
VHP और RSS से जुड़ा सवाल
ओवैसी ने आगे कहा कि विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संबंधों पर सवाल उठाते हुए यह भी कहा कि वीएचपी को कई बार बैन किया गया है। उन्होंने इसे 'नफरत और हिंसा की ताकत' बताते हुए जज के इस संगठन के सम्मेलन में शामिल होने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया।
ओवैसी का न्यायपालिका से अपील
ओवैसी ने कहा कि न्यायपालिका में निष्पक्षता, स्वतंत्रता और तर्कसंगतता महत्वपूर्ण हैं और जजों को इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अपने फैसले देने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जजों को यह याद रखना चाहिए कि भारत का संविधान न्यायिक स्वतंत्रता की उम्मीद करता है, और इसके विपरीत बयान देने से न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं।
thesootr links
द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें