कटनी की झिन्ना खदान एक बार फिर चर्चाओं में है। इस बार इसकी कहानी थोड़ी अलग है। क्या है कि अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने वन विभाग के पूर्व एसीएस वन जेएन कंसोटिया के उस आदेश को पलट दिया है, जिसमें कटनी जिले के ढीमरखेड़ा के गांव झिन्ना की खदान के मामले में सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी वापस लेने का आदेश दिया गया था।
अब इसकी इनसाइड स्टोरी यह है कि वन मंत्री रहे नागर सिंह चौहान (अब एससी कल्याण मंत्री) ने इसी खदान से जुड़ी फाइल पर लिखा था कि एसएलपी वापस ली जाए। अब नए अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने मंत्री के फैसले वाली फाइल पर एसएलपी वापस न लेने को लिखा है।
अपने आदेश को तत्काल अमल में लाने के लिए कंसोटिया ने बाकायदा कटनी डीएफओ को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। अब वर्णवाल के आदेश के बाद वन महकमे में सवाल उठ रहा है कि आखिर किस दबाव में आकर पूर्व एसीएस कंसोटिया ने एसएलपी वापस लेने का आदेश जारी किया था।
एसएलपी वापस लेने को लेकर आदेश जारी करने के पहले 13 अक्टूबर 2023 को कंसोटिया की अध्यक्षता में एक विशेष बैठक बुलाई गई थी। इसमें कई बड़े अधिकारी मौजूद रहे थे। बैठक में ग्राम झिन्ना और हरैया में स्वीकृत खनिज पट्टे विवाद के निराकरण पर चर्चा की गई थी। आपको बता दें कि उक्त खदान के वन भूमि में आने के कारण इस पर रोक लगाई गई थी, लेकिन खदान स्वामी हाईकोर्ट में जीत गया था, जिस पर वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी।
क्या है पूरा मामला
शिकायती पत्र के मुताबिक, कटनी के खनन कारोबारी आनंद गोयनका, मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका को मध्यप्रदेश की तत्कालीन दिग्विजय सरकार के कार्यकाल में 1994 से 2014 तक की अवधि के लिए 48.562 हेक्टेयर भूमि पर खनन का पट्टा मिला था। पट्टा आवंटित होने के पीछे भी बहुत कुछ छिपा है। इस वन भूमि को राजस्व की बताकर पट्टा आवंटित किया गया था।
दरअसल, सरकार ने ग्राम झिन्ना वन क्षेत्र की 48.562 हेक्टेयर भूमि, पुराना खसरा नं. 310, 311, 313, 314/1, 314/2, 315, 316, 317, 318, 265, 320 में खनि के लिए 1 अप्रैल 1991 से लेकर 2014 तक की अवधि के लिए निमेष बजाज के पक्ष में खनिज पट्टा स्वीकृत किया था, जिसे वर्ष 1999 में खनिज विभाग के आदेश से 13 जनवरी 1999 को उक्त खनि पट्टा मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका, प्रोपराईटर आनंद गोयनका के पक्ष में हस्तांतरित किया गया, लेकिन वर्ष 2000 में वन मंडल अधिकारी के पत्र के आधार पर कलेक्टर ने आदेश पारित कर लेटेराइट, फायर क्ले और अन्य खनिजों के खनन पर रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट में 2017 से लंबित है मामला
- सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में प्रकरण केन्द्रीय साधिकार कमेटी (सीईसी) को जांच रिपोर्ट देने के लिए निर्देशित किया।
- सीईसी ने अपने जांच प्रतिवेदन में उल्लेख किया कि आवंटित खनिज पट्टे की भूमि वन भूमि है।
- सीईसी के आदेश के बाद सितंबर 2019 में कलेक्टर के समक्ष डीएफओ ने भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 17 के अंतर्गत अपील की।
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