Lok Sabha की दौड़ में विधानसभा के हारे प्रत्याशी, किन पर लगेगी मुहर?

मध्यप्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की है। इसके बाद भी कुछ दिग्गज जीतने में नाकाम रहे। अब ऐसे चेहरों को ये उम्मीद है कि उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट जरूर मिलेगा और शायद जीत भी जाएं।

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Jitendra Shrivastava
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BHOPAL. जो प्रत्याशी दो महीने पहले विधानसभा चुनाव हार चुके हों क्या वो लोकसभा ( Lok Sabha ) चुनाव में जीत सकते हैं। इसका सवाल आप हां या ना मैं दे सकते हैं, लेकिन मैं ये मानता हूं कि इस सवाल का जवाब पार्टी टू पार्टी डिफर करता है। विधानसभा में हारा चेहरा लोकसभा चुनाव में जीत सकता है, बशर्ते वो पार्टी बीजेपी हो। सियासत का ताजा सिनेरियो तो यही नजर आता है कि हार या जीत किसी चेहरे की नहीं हो रही बल्कि, पार्टी की हो रही है। इस बार तो मोदी की आंधी 2019 से भी ज्यादा तेज नजर आ रही है। जिसके दम पर हारे हुए चेहरे लोकसभा चुनाव में जीत का दम भर रहे हैं। 

हारे दिग्गजों को भी Lok Sabha के टिकट की उम्मीद 

पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की है। इसके बाद भी कुछ दिग्गज जीतने में नाकाम रहे। अब ऐसे चेहरों को ये उम्मीद है कि उन्हें लोकसभा ( Lok Sabha ) चुनाव में टिकट जरूर मिलेगा और शायद जीत भी जाएं। इस उम्मीद की एक वाजिब वजह भी है। पिछले विधानसभा चुनाव में अनिल फिरोजिया हार गए थे। पार्टी ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिया और वो साल 2019 के चुनाव में जीत हासिल कर संसद पहुंचे। तो, अगर मैं ये कहूं कि ये बीजेपी का आजमाया हुआ फॉर्मूला होने के साथ-साथ कामयाब फॉर्मूला भी है तो कुछ गलत नहीं होगा। और, इसी लॉजिक का मैजिक हारे हुए प्रत्याशियों के लिए उम्मीद बन कर जगमगा रहा है।

जो जीत पक्की कर सकें ऐसे को ही टिकट

हालांकि, पीएम नरेंद्र मोदी ये साफ कर चुके हैं कि प्रत्याशियों को नहीं देखना है। सिर्फ कमल के फूल यानी कि बीजेपी के सिंबल की जीत की चिंता करनी है, लेकिन इस बात के भी मायने समझ लेना जरूरी है। क्या ये इशारा इस तरफ है कि हारे या जीते किसी भी चेहरे को टिकट दे दिया जाए बस जीत की फिक्र करना है या ये इस बात का इशारा है कि टिकट ऐसे चेहरों को दिया जाए जो कमल की जीत पक्की कर सकें। फिर चाहें वो पुराना चेहरा हो, उस सीट से लगातार जीत रहा चेहरा हो या फिर पार्टी का कोई कद्दावर नेता ही क्यों न हो, जो जीत की उम्मीद लगाए बैठा हो। टिकट का फैसला करते समय फोकस सिर्फ जीत पर ही करना है। जब तक ये इशारा पूरी तरह डिकोड नहीं होता तब तक हम यही कह सकते हैं कि हारे हुए चेहरों को टिकट मिलने के चांसेज 50-50 परसेंट हैं। पर ये तय है कि सिर्फ पार्टी के पुराने निष्ठावान होने का तर्क देकर या सीनियोरिटी का दम भरकर हारे हुए प्रत्याशियों को टिकट मिलना मुश्किल है। उनकी रिपोर्ट ही ये तय करेगी कि वो टिकट के हकदार हैं या नहीं। 

सर्वे के बाद 29 में से करीब 6 सीटों पर नाम तय

आपको याद दिला दूं बीजेपी टिकट देने से पहले एक नहीं कई बार सर्वे करती है। जिसमें संघ से लेकर संगठन के तक के प्रभारी इस काम की जिम्मेदारी संभालते हैं। कुछ अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक ये सर्वे तकरीबन पूरा हो चुका है और आलाकमान तक इसकी रिपोर्ट भी पहुंच चुकी है। 29 में से करीब 6 सीटें ऐसी बताई जा रही हैं जहां नाम तय हो चुके हैं, लेकिन कुछ सीटों पर गणित अब भी उलझा है और इन पर कुछ हारे चेहरे अपनी दावेदारी जता रहे हैं। मुरैना, मंदसौर, विदिशा, होशंगाबाद और सीधी जैसी सीटे हैं जहां चेहरों की तलाश तेज है और दावेदारों के हौसले भी बुलंद हैं। सबसे पहला बात करते हैं मंडला और सतना सीट की। मंडला के सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते और सतना सांसद गणेश सिंह को विधानसभा चुनाव में उतारा गया था, लेकिन दोनों ही हार गए। अब इन दो सीटों पर प्रत्याशी चुनने की कवायद तेज है। खासतौर से फग्गन सिंह कुलस्ते बड़े आदिवासी नेता हैं और लंबे समय से जीतते आ रहे हैं। तो, क्या उन्हें विधानसभा चुनाव में हार की सजा मिलेगी या फिर उनकी पकड़ को देखते हुए लोकसभा का टिकट दिया जाएगा। ये फैसला बीजेपी के लिए बड़ा अहम है।

नरोत्तम मिश्रा को मंदसौर से टिकट की आस

रेस में पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी पीछे नहीं है। जो दतिया सीट से विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। अब इस कोशिश में हैं कि उन्हें मुरैना से टिकट मिल जाए। इस सीट से नरेंद्र सिंह तोमर सांसद थे जो अब विधानसभा अध्यक्ष का पद संभाल रहे हैं। इस नाते नरोत्तम मिश्रा के पास भी मौका है। अब उनकी रिपोर्ट बताएगी कि उनके मुकद्दर में क्या है। नरोत्तम मिश्रा के अलावा यशपाल सिंह सिसोदिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के नेता राजवर्धन सिंह दत्तीगांव भी कतार में लग चुके हैं। दोनों मंदसौर सीट से टिकट मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। अब दोनों में से किसी को मौका मिलता है या दोनों ही नाम ड्रॉप हो जाते हैं, ये देखना भी दिलचस्प होगा। 

बड़ा सवाल- शिवराज सिंह के भविष्य का क्या

अब बात करते हैं विदिशा सीट की। इस सीट पर वैसे तो पूर्व मंत्री रामपाल सिंह भी टिकट की भागदौड़ में शामिल हो चुके हैं, लेकिन एक नाम और है जो इस सीट के लिए मुफीद माना जा रहा है, वो है शिवराज सिंह चौहान का। जिनका बीजेपी में क्या भविष्य होने वाला है। ये सवाल बार बार पूछा जा रहा है। वैसे तो उन्हें दक्षिण में सेंध लगाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। तो, अगर खुद चुनाव लड़ेंगे तो फिर दक्षिण में कैसे एक्टिव रह सकेंगे, लेकिन दूसरा पहलू ये भी है कि विदिशा में कोई और चेहरा न मिलने पर क्या उन्हें फिर विदिशा संसदीय सीट की कमान सौंप दी जाएगी। कुछ अटकलें इस ओर इशारा भी करती हैं कि शिवराज सिंह चौहान को संसद का चुनाव लड़वाकर उन्हें मंत्री पद से नवाजा जाएगा।लेकिन इस बात का अटकलों तक सीमित रह जाने के आसार ही ज्यादा नजर आते हैं। वैसे भी विदिशा बीजेपी की सबसे सेफ सीट है तो यहां चेहरे का रिस्क ना के बराबर है।

प्रहलाद पटेल की दमोह पर नए चेहरे की तलाश 

अब रुख करते हैं विंध्य, महाकौशल और मध्य की सीट का। हारे हुए कुछ नेताओं की फेहरिस्त भी अभी बाकी है। चुरहट से इस बार हार का मुंह देखने वाले शरदेंदु तिवारी सीधी से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। कमल पटेल को भी होशंगाबाद सीट से टिकट मिलने की उम्मीद नजर आ रही है। वैसे तो राकेश सिंह के विधानसभा पहुंचने के बाद जबलपुर की सीट खाली है और प्रहलाद पटेल की दमोह पर भी नए चेहरे की तलाश है। इन सीटों पर भी चेहरों की तलाश हैं।

बीजेपी की हार-जीत में चेहरे के सवाल नहीं

इसके अलावा चुनाव हारे अरविंद सिंह भदौरिया, गौरी शंकर बिसेन जैसे नेता भी राजनीतिक पुनर्वास की उम्मीद लगाए बैठे हैं। अब जिस क्षेत्र से इनका कोई नाता नहीं रहा। उस क्षेत्र की किसी सीट से इन्हें टिकट मिल जाए। ये बात जरा दूर की कौड़ी नजर आती है, लेकिन एक बार फिर से कहूंगा कि इस बार बीजेपी के सामने ज्यादा टफ फाइट नहीं है। पूरा चुनाव मोदी की गारंटी और राम मंदिर पर लड़ा जाना है। चेहरे का सवाल, फिलहाल इसके आड़े आता दिखाई नहीं देता। तो ये कहा जा सकता है कि ग्वालियर चंबल के अरविंद भदौरिया अगर महाकौशल या मध्य की किसी सीट से चुनाव लड़ते दिख भी जाएं तो हैरानी नहीं होगी।

देखना होगा कि बीजेपी 29 सीटें जीतेगी या कांग्रेस पुरानी सीटें बचा पाएगी 

इस चुनाव में बीजेपी का सिर्फ एक फोकस है। उसे 370 सीटों पर जीत हासिल करनी है। हो सकता है जीत का आंकड़ा इससे बड़ा भी हो जाए। पर, सबसे ज्यादा दिलचस्प ये देखना होगा कि प्रदेश में कांग्रेस बाउंसबैक करती है या नहीं, अपनी पुरानी सीटें बचा पाती है या नहीं। या कि इस बार बीजेपी प्रदेश की पूरी 29 सीटें जीतने में कामयाब हो जाती है।

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