भारत की रक्षा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीई) ने एक स्वदेशी ऑटोमैटिक केमिकल एजेंट डिटेक्टर और अलार्म (एसीएडीए) तैयार किया है। यह डिवाइस हवा में जहरीली गैसों और रासायनिक युद्धक अभिकारकों का पता लगाएगा। डीआरडीई ग्वालियर में 4 साल की कड़ी मेहनत के बाद इसे विकसित किया गया।
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सेना कर सकेंगी इस तकनीक का इस्तेमाल
इस तकनीक का इस्तेमाल भारतीय सेना और वायुसेना करेंगे। पहले भारत को ऐसी तकनीक के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन अब देश ने इसे स्वदेशी रूप से विकसित किया है। यह डिटेक्टर 80 प्रतिशत स्वदेशी उपकरणों से बना है, जो इसे और भी खास बनाता है।
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यह डिटेक्टर हवा का सैंपल लेकर रासायनिक युद्धक अभिकारकों, विषैली गैसों और औद्योगिक रसायनों का पता लगाएगा। इस प्रकार की रासायनिक पहचान तकनीक अब तक केवल कुछ विकसित देशों के पास थी।
ऑटोमैटिक केमिकल एजेंट डिटेक्टर
ऑटोमैटिक केमिकल एजेंट डिटेक्टर और अलार्म आयन मोबिलिटी स्पेक्ट्रोमेट्री (Ion Mobility Spectrometry) सिद्धांत पर काम करता है। यह डिटेक्टर स्थिर बिंदु पर या वाहन में लगाया जा सकता है। इसमें रिमोट अलार्म यूनिट भी होती है, जिससे डेटा केंद्रीय नियंत्रण कक्ष में भेजा जा सकता है।
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डिटेक्टर सेना और सुरक्षा बलों के महत्वपूर्ण
इस डिवाइस की उपयोगिता को समझते हुए, इसे महाकुंभ जैसे महत्वपूर्ण आयोजनों में भी तैनात किया गया था। अब, भारत इस तकनीक के साथ दुनिया के उन देशों में शामिल हो गया है, जिनके पास ऐसी उन्नत रासायनिक पहचान प्रणाली है। ग्वालियर डीआरडीई के निदेशक डॉ. मनमोहन परिदा के अनुसार, यह डिटेक्टर सेना और सुरक्षा बलों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित होगा। कई वर्षों की शोध और विकास के बाद यह उत्पाद तैयार किया गया है।
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सेना खरीदेगी डिटेक्टर के 223 यूनिट्स
एलएनटी की बैंगलोर यूनिट इसे बनाने और सेना को सौंपने का कार्य करेगी। सेना ने इस डिटेक्टर के 223 यूनिट्स खरीदने का आर्डर दिया है। इसके लिए करीब 81 करोड़ रुपए का खर्च आएगा।