पन्ना केंद्रीय सहकारी बैंक घोटाले में छोटे कर्मचारी पर गाज,असली गुनहगार आजाद !

मध्य प्रदेश में सहकारी बैंकों को घाटे में पहुंचाने के लिए इनके कर्ताधर्ताओं को ही जिम्मेदार माना जाता है। हैरत की बात यह कि ऐसे मामलों में असल गुनहगार बच निकलते हैं।

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Ravi Awasthi
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            2 करोड़ के घोटाले की जांच पर उठे सवाल


पन्ना। जिला सहकारी केंद्रीय बैंक पन्ना में बीजीएल घोटाले की जांच सवालों के दायरे में है। इसमें असल गुनहगारों को बख्शते हुए सिर्फ दो कर्मचारियेां को दोषी ठहरा दिया गया। बैंक खातों में हेराफेरी कर किए गए 1.85 करोड़ के इस घोटाले ने बैंक की कमर तोड़ दी है।

पन्ना केंद्रीय सहकारी बैंक के खातों में इतनी बड़ी रकम की हेराफेरी का मामला दो साल पहले उजागर हुआ। शुरुआत में बैंक प्रबंधन ने इस मामले को दबाने का पूरा जतन किया,लेकिन आंतरिक विरोध और इसकी गूंज राज्य विधानसभा में होने पर आनन-फानन में मामले की जांच शुरू की गई।    

जांच से बड़े नाम हुए गायब

घोटाले की जांच शुरुआत से ही सवालों के दायरे में रही। जांच समिति में जांच समिति में पहले बैंक महाप्रबंधक मानवेंद्र सिंह को शामिल किया गया,लेकिन घोटाले में उनकी भूमिका पर सवाल उठे तो बाद में उन्हें जांच समिति से बाहर कर दिया गया। हैरत की बात यह कि इतनी बड़ी राशि के हेरफेर मामले में सिर्फ एक लिपिक पुष्पेंद्र सिंह बुंदेला को दोषी बताते हुए उसके खिलाफ एफआईआर कराई गई। वहीं लेखापाल राजेश कोरी की भी सहभागिता देखते हुए उसे नोटिस थमाया गया। 

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मां,भाई के खातों में जमा की रकम

पुष्पेंद्र पर आरोप लगा कि उसने बैंक के बीजीएल खातों से 1.85 करोड़ रुपए निकालकर अपनी मां और भाई के खातों में जमा कर दी। खास बात यह कि इससे पूर्व भी बैंक में आठ लाख रुपए के गबन का एक मामला सामने आया था,लेकिन बीजीएल खातों में हुई हेराफेरी के आपराधिक प्रकरण में इसका कोई जिक्र नहीं किया गया। सूत्रों का दावा है कि यह बात सिर्फ इस प्रकरण के एक अन्य आरोपी रविप्रताप सिंह को बचाने की मंशा से छिपाई गई।  

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बैंक महाप्रबंधक पर मेहरबान रही जांच समिति

घोटाले को लेकर गठित जांच समिति पर बैंक के तत्कालीन महाप्रबंधक और अन्य अन्य वरिष्ठ कर्मचारियों का बचाव करने के आरोप भी लगते रहे हैं। दरअसल,जांच समिति ने इस बात को नजरअंदाज किया कि  
केवाईसी और हस्ताक्षरों के बिना अपलोड हुए खातों से रकम की निकासी कैसे संभव हुई। जबकि केंद्रीय सहकारी बैंक होने से यहां समूचा सिस्टम आनलाइन है। इसमें सीबीएस प्रणाली के दुरुपयोग संबंधी बिंदु की भी अनदेखी हुई। इसमें कर्मचारियों की अनुपस्थिति के दौरान उनकी आईडी का उपयोग किया गया। 

तिमाही बैलेंस सीट की अनदेखी

बैकिंग कामकाज के दौरान प्रत्येक तिमाही में ब्रांच की रिकांसिलेशन रिपोर्ट यानी बैलेंस सीट तैयार होती है। यह रिपोर्ट शाखा प्रबंधक के माध्यम से ही जारी की जाती है।बताया जाता है तिमाही रिपोर्ट में फर्जी आहरित व जमा राशि के फर्जी आंकड़े पेश किए जाते रहे,लेकिन जांच में शाखा प्रबंधक,सीबीएस प्रभारी व आईटी इंजीनियर की भूमिका पर भी कोई सवाल नहीं उठाए गए। 

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बजट सत्र में भी सदन में उठा मामला

बीते माह राज्य विधानसभा के बजट सत्र में विधायक राजेश कुमार वर्मा ने एक बार पुन:इस मामले को उठाया। उन्होंने मामले की निष्पक्ष जांच नहीं होने के आरोप लगाए,लेकिन शासन की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं आया। इधर,सहकारिता आयुक्त मनोज पुष्प ने कहा कि जांच में किसी प्रकार की कमी है तो उसे संज्ञान में लिया जाएगा। 

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