इंदौर श्री गुरुसिंघ चुनाव के पहले मोनू और बंटी का अमृतधारी सिख होने का टेस्ट आज, कलेक्टर ने मॉनीटरिंग के लिए IAS को भेजा

इंदौर श्री गुरुसिंघ सभा के चुनाव में हाईकोर्ट के आदेश पर मोनू और बंटी का अमृतधारी सिख होने का टेस्ट होगा। अगर दोनों फेल होते हैं, तो रिंकू और इंदरजीत निर्विरोध निर्वाचित होंगे, जिससे खंडा पैनल का कब्जा हो जाएगा।

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Sanjay Gupta
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इंदौर श्री गुरुसिंघ सभा
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इंदौर श्री गुरुसिंघ चुनाव के पहले हाईकोर्ट के आर्डर पर मोनू उर्फ हरपाल सिंह भाटिया और बंटी उर्फ प्रितपाल सिंह भाटिया का अमृतधारी सिख होने का टेस्ट मंगलवार को होने जा रहा है। मामला संवेदनशील होने से कलेक्टर आशीष सिंह ने इसके लिए आईएएस अपर कलेक्टर गौरव बैनल को मॉनीटरिंग के आदेश दे दिए हैं और वह पूरे मामले में नजर रखेंगे।

मोनू और बंटी का ही होगा टेस्ट

हाईकोर्ट के आदेश पर चुनाव अधिकारी हरप्रीत सिंह सूदन (बक्शी) ने द सूत्र को बताया कि सिर्फ खालसा-फतेह पैनल के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार मोनू और सचिव पद के उम्मीदवार बंटी का ही टेस्ट किया जाएगा। यह किस तरह से होगा और कौन इसे लेगा इसे लेकर समाज के प्रबुद्धजन और ज्ञानियों से बात हो रही है, वह पांच-छह लोग ही तय करेंगे कि इसे कैसे किया जाए। गुरमुखी पढ़ना लिखना भी देखा जाएगा क्या? इस सवाल पर सूदन ने कहा कि यह प्रबुद्धजन ही तय करेंगे। उन्होंने साफ कर दिया कि दूसरी पैनल खंडा के उम्मीदवार रिंकू उर्फ मनजीत सिंह भाटिया का टेस्ट नहीं होगा, क्योंकि उनके लिए हाईकोर्ट का आदेश नहीं है, बल्कि उनकी याचिका पर आदेश है।

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अयोग्य हुए तो क्या होगा

यदि दोनों उम्मीदवार इस टेस्ट में फेल हो जाते हैं, तो मतलब साफ है कि चुनाव अधिकारी को उन दोनों को अयोग्य घोषित करना होगा। इस स्थिति में अध्यक्ष पद पर रिंकू भाटिया निर्विरोध आ जाएंगे क्योंकि सामने इकलौते उम्मीदवार मोनू ही है। इसी तरह सचिव पद पर भी इंदरजीत सिंह होरा निर्विरोध आ जाएंगे, उनके सामने इकलौते उम्मीदवार बंटी भाटिया ही है। यानी खंडा पैनल का एकतरफा कब्जा हो जाएगा। 
क्या है नियम में

इंदौर श्री गुरुसिंघ सभा के नियम

इंदौर श्री गुरसिंघ सभा फर्म्स एंड सोसायटी में रजिस्टर्ड संस्था भी है। सभा के सदस्य बनने के नियम 1 में लिखा है कि-

  • कम से कम 18 साल का हो
  • गुरुमुकी लिख-पढ़ सकता हो या पढ़ने का प्रण करें

चुनाव लड़ने के लिए नियम

वहीं कार्यकारिणी कमेटी के मेंबर के लिए नियम 19 में साफ है कि -

  • कैशधारी होकर अमृतधारी हो औऱ् रहित मर्यादा में पक्का हो
  • जो गुरुमुखी अच्छी तरह से लिख-पढ़ सकता हो
  • जो गुटका और तंबाकू इस्तेमाल नहीं करता हो 

क्यों नहीं हो सभी का सार्वजनिक टेस्ट?

जब अकाल तख्त से ही साफ नियम है कि अमृतधारी सिख हो और गुरमुखी-गुरबानी आती हो तो फिर इस मामले में चुनाव अधिकारी ने किसी भी उम्मीदवार की उम्मीदवारी की जांच ही नहीं की? सिर्फ नामांकन फार्म लिए गए और नामांकन फार्म में भरी जानकारी को ही सत्य मानते हुए उसे मान्य कर लिया और उनकी उम्मीदवारी को अंतिम रुप दे दिया। आपत्तियां लगी तो इसमें दोनों पक्षों से शपथपत्र पर जवाब ले लिया और इसे ही मान्य कर लिया गया, सभी ने दावा किया है कि वह अमृतधारी सिख है। 

क्या है दिल्ली हाईकोर्ट का सिरसा केस

दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के निर्वतमान अध्यक्ष मनजिंदर सिंह ने बैकडोर से इस कमेटी में फिर से आने का प्रयास किया। एसजीपीसी ने उन्हें इस कमेटी में सदस्य मनोनीत कर दिया। लेकिन इस पर शिरोमणि अकाली दल के हरविंदर सिंह सरना ने आपत्ति ली। उन्होंने कहा कि वह अमृतधारी सिख नहीं है और उन्हें तो गुरमुखी (पंजाबी) भी लिखना और पढ़ना नहीं आता है तो वह नियमों के तहत सदस्य नहीं बन सकते हैं। जब कमेटी ने यह कहा कि इसे लेकर स्पष्ट नियम नहीं है तो वह दिल्ली हाईकोर्ट चले गए।

इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने नियमों को देखने के बाद चुनाव अधिकारी को स्पष्ट आदेश दिए कि उनका गुरमुखी टेस्ट लिया जाए। जब यह टेस्ट हुआ तो सिरसा गुरमुखी और गुरबानी टेस्ट में फेल हो गए। वह ना पंजाबी पढ़ सके और जब लिखने का कहा गया तो उनके लिखे 46 शब्द में 27 शब्द गलत थे। इसके बाद उनका मनोनयन निरस्त कर दिया गया।

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